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________________ वशिष्ठ तापसोको कथा २१९ हिल गया। अमरांगनाओंने समझा कि हमारे यहाँ मेहमान आते हैं, सो वे उनके सत्कारके लिए हाथों में कल्पवृक्षोंके फूलोंकी मनोहर मालाएं ले-लेकर स्वर्गोके द्वार पर उनकी अगवानीके लिए आ डटीं। स्वर्गोंके दरवाजे उनसे ऐसे खिल उठे मानों चन्द्रमाओंकी प्रदर्शनी को गई है। थोड़ी ही देर में दोनों ओरसे युद्ध छिड़ गया। खब मारकाट हुई। खूनकी नदो बहने लगो। मृतकोंके सिर और धड़ उसमें तैरने लगे। दोनों ओरकी वीर सेनाने अपनेअपने स्वामोके नमकका जो खोलकर परिचय कराया। जिसे न्यायकी जीत कहते हैं, वह किसीको प्राप्त न हई। पर वसूदेवने जो पोदनपुरके कुछ लोगोंको अपने मोमें कर लिया था, उन स्वाथियों, विश्वासघातियोंने अन्त में अपने मालिकको दगा दे दिया । सिंहरथको उन्होंने वसुदेवके हाथ पकड़वा दिया। सिंहरथका रथ मौकेके समय बेकार हो गया। उसी समय वसुदेवने उसे घेरकर कंससे कहा-जो कि उसके रथका सारथी था, कंस, देखते क्या हो? उतर कर दात्रको बाँध लो। कंसने गुस्सेके साथ रथसे उतर कर सिंहरथको बाँध लिया और रथमें रखकर उसी समय वे वहाँसे चल दिये। सच है, अग्नि एक तो वैसे हो तपी हुई होती है और ऊपरसे यदि वायु बहने लगे तब तो उसके तपनेका पूछना हो क्या ? सिंहरथको बाँध लाकर वसुदेवने जरासन्धके सामने उसे रख दिया । देखकर जरासन्ध बहुत ही प्रसन्न हुआ। अपनो प्रतिज्ञा पूरी करनेके लिए उसने वसुदेवसे कहा-में आपका बहत ही कृतज्ञ है। अब आप कृपाकर मेरो कुमारीका पाणिग्रहण कर मेरी इच्छा पूरी कीजिये। और मेरे देशके जिस प्रदेशको आप पसन्द करें मैं उसे भी देनेको तैयार हूँ। वसुदेवने कहा-प्रभो, आपकी इस कृपाका मैं पात्र नहीं। कारण मैंने सिंहरथको नहीं बाँधा है । इसे बाँधा है मेरे प्रिय शिष्य इस कंसने, सो आप जो कुछ देना चाहें इसे देकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कोजिए। जरासन्धने कंसकी ओर देखकर उससे पूछा-भाई, तुम्हारी जाति-कुल क्या है ? कंसको अपने विषयमें जो बात ज्ञात थी, उसने वही स्पष्ट बतला दी कि प्रभो, मैं तो एक मालिनका लड़का हूँ। जरासन्धको कंसकी सुन्दरता और तेजस्विता देखकर यह विश्वास नहीं हुआ कि वह सचमुच हो एक मालिनका लड़का होगा। इसका निश्चय करनेके लिए जरासन्धने उसकी माँको बुलवाया। यह ठीक है कि राजा लोग प्रायः बुद्धिमान् और चतुर हुआ करते हैं । कंसको माँको जब यह खबर मिली कि उसे राजदरबारमें बुलाया है, तब तो उसको छाती धड़कने लग गई। वह कंसको शैतानीका हाल तो जानती हो थो, सो उसने सोचा कि जरूर कंसने कोई बड़ा भारी गुनाह किया है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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