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________________ परिग्रहसे डरे हुए दो भाइयोंकी कथा १९३ बैठी देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें मानों आज उनकी कड़ी तपस्याका फल मिल गया । ब्रह्माजी अब घर बनाकर उर्वशीके साथ रहने लगे और मनमाने भोग भोगने लगे, तबसे वे लौकिक ब्रह्मा कहलाने लगे। बड़े दुःखकी बात है कि असमझ लोग देव या देवके सच्चे स्वरूपको जानते नहीं और जैसा अपनो इच्छामें आता है उन्मत्तकी तरह झूठा ही कह दिया करते हैं। क्या कोई हठ करके इन्द्रादिकोंका पद छीन सकता है ? और क्या स्वर्गकी देवांगनाएँ व्यभिचार कर सकती हैं ? और जो ब्रह्मा तीन लोकका स्वामो देव कहा जाता है वह क्या ऐसा नीच कर्म करेगा? समझदारों को ये बातें झूठी समझना चाहिए । और जिसमें ऐसी बातें हैं वह कभी ब्रह्मा नहीं हो सकता । जैनशास्त्रोंमें ब्रह्मा उसे कहा है। जो मोक्षमार्गका बतानेवाला, सच्चे ज्ञान और सच्चे चारित्रकी प्राप्ति करानेवाला और आत्माको निजस्वरूपमें स्थिर करनेवाला है। वह अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन अवस्थाओंसे पाँच प्रकारका है। इनके सिवा संसारमें और कोई ब्रह्मा नहीं है। क्योंकि राग, द्वष, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि दोषोंसे युक्त कभी ब्रह्मा-देव हो ही नहीं सकता। किन्तु जो इन रागादि दोषोंसे रहित हैं, लोक और अलोकके जानने वाले हैं और केवलज्ञानरूपी नेत्रसे युक्त हैं वे ही ऋषभ भगवान् मेरे सच्चे ब्रह्मा हैं। वे परम पवित्र आदिनाथ जिनेन्द्र मझे संसारके दुःखोंसे छुटाकर शांति प्रदान करें, जो भव्यजनरूपो कमलोंको प्रफुल्लित करनेके लिए सूरजके समान हैं, संसार-समुद्रसे पार करनेवाले हैं, गुणोंके समुद्र हैं, स्वर्ग और मोक्षका पवित्र सुख देनेवाले हैं, इंद्रादि देवों द्वारा पूज्य हैं और केवलज्ञान द्वारा सारे संसारके जानने और देखने वाले हैं। ३६. परिग्रहसे डरे हुए दो भाइयोंकी कथा धन, धान्य, दास, दासी, सोना, चाँदी आदि जो संसारके जीवोंको तृष्णाके जालमें फंसाकर कष्ट पर कष्ट देनेवाले हैं, ऐसे परिग्रहसे माया, १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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