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________________ १९२ आराधना कथाकोश तप करते रहे और केवल वायु का आहार करते रहे । ब्रह्माजीकी यह कठिन तपस्या निष्फल न गई । इन्द्रादिकोंका आसन हिल गया । उन्हें अपने राज्य नष्ट होनेका बड़ा भय हुआ। तब उन्होंने ब्रह्माजीको तप भ्रष्ट करनेके लिये स्वर्गकी एक तिलोत्तमा नामकी वेश्याको, जो कि गन्धर्व देवोंके समान गाने और बड़ो सुन्दर नाचनेवाली थी, भेजा। तिलोत्तमा उनके पास आई और अनेक प्रकारके हाव-भाव-विलास बतला-बतलाकर नाचने लगी। तिलोत्तमाका नृत्य, तिलोत्तमाको भुवन मनोहारिणी रूपराशि और उसका हाव-भाव-विलास देखकर ब्रह्माजी तपसे डगमगे। उन्होंने हजारों वर्षोंको ' तपस्याको एक क्षणभरमें नष्ट कर अपनेको कामके हाथ सौंप दिया। वे आँखें फाड़-फाड़कर तिलोत्तमाकी रूपराशिको बड़े चावसे देखने लगे। तिलोत्तमाने जब देखा कि हाँ योगिराज अब अपने आपमें नहीं हैं और आँखें फाड-फाड़कर मेरी ही ओर देख रहे हैं, तब उनकी इच्छाको और जागृत करनेके लिये वह उनकी बायीं ओर आकर नाचने लगो । ब्रह्माजीने तब अपनी हजारों वर्षों की तपस्याके प्रभावसे अपना दूसरा मुंह बायीं ओर बना लिया। तिलोत्तमा जब उनकी पीठ पीछे आकर नाचने लगी। ब्रह्माजीने तब तीसरा मुंह पीछेकी ओर बना लिया। तिलोत्तमा फिर उनकी दाहिनी ओर जाकर नाचने लगी, ब्रह्माजीने उस ओर भी मह बना लिया । अन्तमें तिलोत्तमा आकाशमें जाकर नाचने लगी। तब ब्रह्माजीने अपना पांचवाँ मुँह गधेके मुखके आकारका बनाया। कारण अब उनकी तपस्याका फल बहुत थोड़ा बच रहा था। मतलब यह कि तिलोत्तमाने जिस प्रकार ब्रह्माजीको नचाया वे उसी प्रकार नाचे। इस प्रकार उन्हें तपसे भ्रष्ट कर और उनके हृदयमें कामकी आग धधकाकर चालाक तिलोत्तमा अछुतीकी अछुती स्वर्गको चली गई और बेचारे ब्रह्माजी कामके तीव्र वेग से मूर्छा खाकर पृथ्वी पर आ गिरे। तिलोत्तमाने सब हाल इन्द्रसे कहकर कहा-प्रभो, अब आप अनन्त काल तक सुखसे रहें । मैं ब्रह्माजीकी खूब ही गति बना आई हूँ। तब इन्द्रने बहुत खुश होकर उससे पूछाहाँ तिलोत्तमा, तु ब्रह्माजीके पास ठहरी नहीं ? तिलोत्तमा बोली-वाह ! प्रभो, भली उस बूढ़ेकी और मेरो आपने जोड़ी मिलाई ! मैं तो कभी उसके पास खड़ी तक नहीं रह सकती। यह सुन इन्द्रको ब्रह्माजीकी हालत पर बड़ी दया आई। उसने फिर दयाके वश होकर ब्रह्माजीकी शान्तिके लिये उर्वशी नामकी एक दूसरी सुन्दर वेश्याको उनके पास भेजा। इन्द्रको माज्ञा सिर पर चढ़ाकर उर्वशी ब्रह्माजीके पास आई। उनके पाँवोंको छूकर उन्हें उसने सचेत किया। ब्रह्माजो पांव तले एक स्वर्गीय सुन्दरीको For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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