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________________ १८८ आराधना कथाकोश साथ नहीं थी, इससे इसके स्वभावमें कठोरता अधिक आ गई । यह अपने साथके खेलनेवाले लड़कोंको रुद्रताके साथ मारने-पीटने लगा। इसकी शिकायत महारानीके पास आने लगी। महारानीको इस पर बड़ा गुस्सा आया । उसने इसका ऐसा रौद्र स्वभाव देखकर नाम भी इसका रुद्र रख दिया । सो ठीक ही है जो वृक्ष जड़से ही खराब होता है तब उसके फलोमें मीठापन आ भी कहाँसे सकता है। इसी तरह रुद्रसे एक दिन और कोई अपराध बन पड़ा । सो चेलिनीने अधिक गुस्से में आकर यह कह डाला कि किसने तो इस दुष्टको जना और किसे यह कष्ट देता है । चेलिनीके मुंहसे, 'जिसे कि यह अपनी माता समझता था, ऐसी अचम्भा पेदा करनेवाली बात सुनकर बड़े गहरे विचारमें पड़ गया । इसने सोचा कि इसमें कोई कारण जरूर होना चाहिए। यह सोचकर यह श्रेणिकके पास पहुँना और उनसे इसने आग्रहके साथ पूछा-पिताजी, सच बतलाइए, मेरे वास्तव में पिता कौन हैं और कहाँ हैं ? श्रेणिकने इस बातके बतानेको बहुत आनाकानी की। पर जब रुद्रने बहुत ही उनका पीछा किया और किसी तरह वह नहीं मानने लगा तब लाचार हो उन्हें सब सच्ची बात बता देनी पड़ी। रुद्रको इससे बड़ा वैराग्य हुआ और वह अपने पिताके पास जाकर मुनि हो गया। ___ एक दिन रुद्र ग्यारह अंग और दश पूर्वका बड़े ऊँचेसे पाठ कर रहा था। उस समय श्रुतज्ञानके माहात्म्यसे पाँचसौ तो कोई बड़ी-बड़ो विद्याएँ और सात सौ छोटी-छोटो विद्याएं सिद्ध होकर आईं। उन्होंने अपनेको स्वीकार करनेकी रुद्रसे प्रार्थना की। रुद्रने लोभके वश हो उन्हें स्वीकार तो कर लिया, पर लोभ आगे होनेवाले सुख और कल्याणके नाशका कारण होता है, इसका उसने कुछ विचार न किया। ___ इस समय सात्यकि मुनि गोकर्ण नामके पर्वतको ऊंची चोटी पर प्रायः ध्यान किया करते थे। समय गर्मीका था। उनकी वन्दनाको अनेक धर्मात्मा भव्य-पुरुष आया जाया करते थे। पर जबसे रुद्रको विद्याएँ सिद्ध हुई, तबसे वह मुनि-वन्दनाके लिए आनेवाले धर्मात्मा भव्य-पुरुषोंको अपने विद्याबलसे सिंह, व्याघ्र, गेंडा, चीता आदि हिंस्र और भयंकर पशुओं द्वारा डराकर पर्वत पर न जाने देता था। सात्यकि मुनिको जब यह हाल ज्ञात हुआ तब उन्होंने इसे समझाया और ऐसे दुष्ट कार्य करनेसे रोका। पर इसने उनका कहा नहीं माना और अधिक-अधिक यह लोगोंको कष्ट देने लगा । सात्यकिने तब कहा-तेरे इस पापका फल बहुत बुरा होगा। तेरो तपस्या नष्ट होगी । तू स्त्रियों द्वारा तपभ्रष्ट होकर आखिर मृत्यु का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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