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________________ १८६ आराधना कथाकोश न किसी ज्ञान-नेत्रवालेकी समझमें ये बातें आवेंगी हो। क्योंकि वे समझते हैं कि समझदार कभी ऐसी असंभव बातें जो कहते; किन्तु भक्तिके आवेशमें आकर असतत्त्व पर विश्वास लानेवालोंने ऐसा लिख दिया है । इसलिए बुद्धिवानोंको उचित है कि वे उन विद्वानोंकी संगति करें जो जैनधर्मका रहस्य समझने वाले हैं, और जैनधर्मसे हो प्रेम करें और उसीके शास्त्रोंका भक्ति और श्रद्धाके साथ अध्ययन करें, उनमें अपनी पवित्र बुद्धिको लगावें, इसीप्ते उन्हें सच्चा सुख प्राप्त होगा। ३७. सात्यकि और रुद्रकी कथा केवलज्ञान ही जिनका नेत्र है, ऐसे जिनभगवान्को नमस्कार कर शास्त्रोंके अनुसार सात्यकि और रुद्रकी कथा लिखी जाती है। गन्धार देशमें महेश्वरपुर एक सुन्दर शहर था। उसके राजा सत्यन्धर थे। सत्यन्धरको प्रियाका नाम सत्यवती था । इनके एक पुत्र हुआ उसका नाम सात्यकि था। सात्यकिने राजविद्यामें अच्छी कुशलता प्राप्त की थो और ठीक भी है, राजा बिना राजविद्याके शोभा भी नहीं पाता। __ इस समय सिन्धुदेशको विशाला नगरीका राजा चेटक था। चेटक जैनधर्मका पालक और जिनेन्द्र भगवान्का सच्चा भक्त था । इसको रानीका नाम सुभद्रा था। सुभद्रा बड़ी पतिव्रता और धर्मात्मा थी। इसके सात कन्याएँ थीं। उनके नाम थे-पवित्रा, मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती चेलिनी, ज्येष्ठा और चन्दना । सम्राट श्रेणिकने चेटकसे चेलिनीके लिए मँगनी की थी, पर चेटकने उनकी आयु अधिक देखकर लड़की देनेसे इन्कार कर दिया। इससे श्रेणिकको बहुत बुरा लगा। अपने पिताके दुःखका कारण जानकर अभयकुमार उनका एक बहुत ही बढ़िया चित्र बनवा कर विशालामें पहुंचा । उसने वह चित्र चेलिनोको बतलाकर उसे श्रेणिक पर मुग्ध कर लिया। पर चेलिनीके पिताको उसका ब्याह श्रेणिकसे करना सम्मत नहीं था। इसलिए अभयकुमारने गुप्त मार्गसे चेलिनीको ले जानेका विचार किया। जब चेलिनी उसके साथ जानेको तैयार हुई तब ज्येष्ठाने उससे अपनेको भी ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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