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________________ पात्रकेसरी की कथा अभिमान है, उनपर ही आपका विश्वास है, इसलिये आपकी दृष्टि सत्य बातकी ओर नहीं जाती। पर मेरा विश्वास आपसे उल्टा है, मुझे वेदोंपर विश्वास न होकर जैनधर्मपर विश्वास है, वही मुझे संसारमें सर्वोत्तम धर्म दिखता है । मैं आप लोगोंसे भी आग्रहपूर्वक कहता हूँ कि आप विद्वान् हैं, सच झूठकी परीक्षा कर सकते हैं, इसलिए जो मिथ्या हो, झूठा हो, उसे छोड़कर सत्यको ग्रहण कीजिये और ऐसा सत्य धर्म एक जिनधर्म हो है; इसलिये वह ग्रहण करने योग्य है। पात्रकेसरीके इस उत्तरसे उन ब्राह्मणोंको सन्तोष नहीं हुआ। वे इसके विपरीत उनसे शास्त्रार्थ करने की तैयार हो गये। राजाके पास जाकर उन्होंने पात्रकेसरीके साथ शास्त्रार्थ करनेकी प्रार्थना को । राजाज्ञा के अनुसार पात्रकेसरी राजसभामें बुलवाये गये। उनका शास्त्रार्थ हुआ। उन्होंने वहाँ सब ब्राह्मणोंको पराजित कर संसारपूज्य और प्राणियोंको सुख देनेवाले जिनधर्मका खूब प्रभाव प्रगट किया और सम्यग्दर्शनको महिमा प्रकाशित की। __उन्होंने एक जिनस्तोत्र बनाया, उसमें जिनधर्मके तत्त्वोंका विवेचन और अन्यमतोंके तत्वोंका बड़े पाण्डित्यके साथ खण्डन किया गया है। उसका पठन-पाठन सबके लिये सुखका कारण है। पात्रकेसरी के श्रेष्ठ गुणों और अच्छे विद्वानों द्वारा उनका आदर सम्मान देखकर अवनिपाल राजाने तथा उन ब्राह्मणोंने मिथ्यामतको छोड़कर शुभ भावोंके साथ जैनमतको ग्रहण कर लिया। इस प्रकार पात्रकेसरोके उपदेशसे संसारसमुद्रसे पार करनेवाले सम्यग्दर्शनको और स्वर्ग तथा मोक्षके देनेवाले पवित्र जिनधर्मको स्वीकार कर अवनिपाल आदिने पात्रकेसरीकी बड़ी श्रद्धाके साथ प्रशंसा की कि द्विजोत्तम, तुमने जैनधर्मको बड़े पाण्डित्यके साथ खोज निकाला है, तुम्हींने जिन भगवान्के उपदेशित तत्त्वोंके मर्मको अच्छी तरह समझा है, तुम ही जिन भगवान्के चरणकमलों की सेवा करनेवाले सच्चे भ्रमर हो, तुम्हारी जितनी स्तुति की जाय थोड़ी है । इस प्रकार पात्रकेसरीके गुणों और पाण्डित्य की हृदयसे प्रशंसा करके उन सबने उनका बड़ा आदर सम्मान किया। जिस प्रकार पात्रकेसरीने सुखके कारण, परम पवित्र सम्यग्दर्शनका उद्योतकर उसका संसारमें प्रकाशकर राजाओंके द्वारा सम्मान प्राप्त किया, उसी प्रकार और भी जो जिनधर्मका श्रद्धानी होकर भक्तिपूर्वक सम्यग्दर्शन का उद्योत करेगा वह भी यशस्वी बनकर अंतमें स्वर्ग या मोक्षका पात्र होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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