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________________ श्रीभूति-पुरोहितको कथा १४९ श्रीभूतिने रत्नका नाम सुनते हो अपने चेहरेपरका भाव बदला और त्यौरी चढ़ाकर जोरके साथ कहा-रत्न ! अरे दरिद्र ! तेरे रत्न और मेरे पास ? यह तू क्या बक रहा है ? कह तो सही वास्तव में तेरी मंशा क्या है ? क्या मुझे तू बदनाम करना चाहता है ? तू कौन, और कहाँका रहनेवाला है ? मैं तुझे जानता तक नहीं, फिर तेरे रत्न मेरे पास आये कहाँसे ? जा-जा, पागल तो नहीं हो गया है ? ठीक ध्यानसे विचार कर । किसी औरके यहाँ रखकर उसके भ्रमसे मेरे पास आ गया जान पड़ता है। इसके बाद हो उसने लोगोंको ओर नजर फेरकर कहा-देखिये साहब, मैंने कहा था न ? कि यह मेरेसे कोई बड़ी भारी याचना न करे तो अच्छा। ठीक वही हुआ। बतलाइए, इस दरिद्रके पास रत्न आ कहाँसे सकते हैं ? धन नष्ट हो जानेसे जान पड़ता है यह बहक गया है। यह कहकर श्रीभूतिने नौकरों द्वारा समुद्रदत्तको घर से बाहर निकलवा दिया। नीतिकारने ठीक लिखा है-जो लोग पापी होते हैं और जिन्हें दूसरोंके धनकी चाह होती है, वे दुष्ट पुरुष ऐसा कौन बुरा काम है जिसे लोभके वश हो न करते हों ? श्रीमति ऐसे ही पापियोंमेंसे एक था, तब वह कैसे ऐसे निंद्य कर्मसे बचा रह सकता था ? पापो श्रीभूतिसे ठगा जाकर बेचारा समुद्रदत्त सचमुच पागल हो गया। वह श्रीभूतिके मकानसे निकलते हो यह चिल्लाता हुआ, कि पापी श्रोभूति मेरे रत्न नहीं देता है, सारे शहर में घूमने लगा। पर उसे एक भिखारीके वेशमें देखकर किसीने उसकी बातपर विश्वास नहीं किया। उलटा उसे ही सब पागल बताने लगे । समुद्रदत्त दिनभर तो इस तरह चिल्लाता हुआ सारे शहर में घूमताफिरता और जब रात होती तब राजमहलके पीछे एक वृक्षपर चढ़ जाता और सारी रात उसी तरह चिल्लाया करता। ऐसा करते-करते उसे कोई छह महिना बीत गये । समुद्रदत्तका इस तरह रोज-रोज चिल्लाना सुनकर एक दिन महारानी रामदत्ताने सोचा कि बात वास्तवमें क्या है, इसका पता जरूर लगाना चाहिए । तब एक दिन उसने अपने स्वामीसे कहाप्रागनाथ, मैं रोज एक गरीबको पुकार सुनती हूँ। मैं आज तक तो यह समझतो रही, कि वह पागल हो गया है और इसीसे दिन-रात चिल्लाया करता है, कि श्रीभूति मेरे रत्न नहीं देता । पर प्रतिदिन उसके मुंहसे एक ही वाक्य सुनकर मेरे मनमें कुछ खटका पैदा होता है । इसलिए आप उसे बुलाकर पूछिये तो कि वास्तवमें रहस्य क्या है ? रानीके कहे अनुसार राजाने समुद्रदत्तको बुलाकर सब बातें पूछीं। समुद्रदत्तने जो यथार्थ घटना थी, वह राजासे कह सुनाई। सुनकर राजाने रानीसे कहा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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