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________________ १२० आराधना कथाकश अम्हादो णत्थि भयं दोहादो दीसदे भयं तुम्हे ति । अर्थात्-मुझे मेरे आत्माको तो किसीसे भय नहीं है। भय है, तो तुम्हें । बस, यम मुनिने जो ज्ञान सम्पादन कर पाया, वह इतना था । वे इन्हीं तीन खण्ड गाथाओंका स्वाध्याय करते, पाठ करते और कुछ उन्हें आता नहीं था। इसी तरह पवित्रात्मा और धर्मानुयायी यम मुनिने अनेक तीर्थों की यात्रा करते हुए धर्मपुरकी ओर आ निकले। वे शहर बाहर एक बगीचेमें कायोत्सर्ग ध्यान करने लगे। उनके पोछे लौट आनेका हाल उनके पुत्र गर्दभ और राजमंत्री दीर्घको ज्ञात हुआ। उन्होंने समझा कि ये हमसे पीछा राज्य लेनेको आये हैं। सो वे दोनों मुनिके मारनेका विचार कर आधीरातके समय वनमें गये । और तलवार खींचकर उनके पीछे खड़े हो गये । आचार्य कहते हैं कि धिकाज्यं धिमूर्खत्वं कातरत्वं च धिक्तराम् । निस्पृहाच्च मुनेर्येन शंका राज्येऽभवत्तयोः ।। अर्थात्-ऐसे राज्यको, ऐसी मूर्खता और ऐसे डरपोकपने को धिक्कार है, जिससे एक निस्पृह और संसारत्यागी मुनिके द्वारा राज्यके छिन जानेका उन्हें भय हआ। गर्दभ और दीर्घ, मुनिको हत्या करनेको तो आये पर उनकी हिम्मत उन्हें मारनेको नहीं पड़ो। वे बार-बार अपनी तलवारोंको म्यानमें रखने लगे और बाहर निकालने लगे। उसी समय यम मुनिने अपनी स्वाध्यायकी पहली गाथा पढ़ो, जो कि ऊपर लिखी जा चुकी है। उसे सुनकर गर्दभने अपने मंत्रोसे कहा-जान पड़ता है मुनिने हम दोनोंको देख लिया। पर साथ ही जब मुनिने आधो गाथा फिर पढ़ी तब उसने कहा-नहीं जी, मुनिराज राज्य लेनेको नहीं आये हैं। मैंने जो वैसा समझा वह मेरा भ्रम था। मेरी बहिन कोणिकाको प्रेमके वश कुछ कहनेको ये आये हुए जान पड़ते हैं। इसके बाद जब मुनिराजने तीसरी आधी गाथा भी पढ़ी तब उसे सुनकर गर्दभने अपने मन में उसका यह अर्थ समझा कि "मंत्री दीर्घ बड़ा कूट है, और मुझे मारना चाहता है," यही बात पिताजी, प्रेमके वश हो तुझे कहकर सावधान करनेको आये हैं। परन्तु थोड़ी देर बाद ही उसका यह सन्देह भी दूर हो गया। उन्होंने अपने हृदयकी सब दुष्टता छोड़कर बड़ी भक्तिके साथ पवित्र चारित्रके धारक मुनिराजको प्रणाम किया और उनसे धर्मका उपदेश सुना, जो कि स्वर्ग-मोक्षका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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