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________________ आराधना कथाकोश वहीं दो शूद्र रहते थे। उनके नाम कल्पपाल और पूर्णचन्द्र थे। उनके पास कुछ धन भी था। उनमें पूर्णचन्द्रकी स्त्रोका नाम था मणिप्रभा । उसके एक सुमित्रा नामकी लड़की थी। पूर्णचन्द्रने उसके विवाहमें अपने जातीय भाइयोंको जिमाया और उसका राज पुरोहितसे कुछ परिचय होनेसे उसने उसे भी निमंत्रित किया। पर पुरोहित महाराजने उसमें यह बाधा दी कि भाई, तुम्हारा भोजन तो मैं नहीं कर सकता। तब कल्पपालने बोचमें ही कहा-अस्तु । आप हमारे यहाँका भोजन न करें। हम ब्राह्मणोंके द्वारा आपके लिये भोजन तैयार करवा देंगे तब तो आपको कुछ उजर न होगा। पुरोहितजो आखिर थे तो ब्राह्मग हो न? जिनके विषयमें यह नीति प्रसिद्ध है कि "असन्तुष्टा द्विजा नष्टाः" अर्थात् लोभमें फंसकर ब्राह्मण नष्ट हुए। सो वे अपने एकबारके भोजनका लोभ नहीं रोक सके। उन्होंने यह विचार कर, कि जब ब्राह्मण भोजन बनानेवाले हैं, तब तो कुछ नुकसान नहीं, उसका भोजन करना स्वाकार कर लिया। पर इस बातपर उन्होंने तनिक भी विचार नहीं किया कि ब्राह्मगोंने हो भोजन बना दिया तो हुआ क्या ? आखिर पैसा तो उसका है और न जाने उसने कैसे-कैसे पापों द्वारा उसे कमाया है। जो हो, नियमित समयपर भोजन तैयार हुआ। एक ओर पुरोहित देवता भोजनके लिये बैठे और दूसरी ओर पूर्णचन्द्रका परिवारवर्ग । इस जगह इतना और ध्यानमें रखना चाहिए कि दोनोंका चौका अलग-अलग था। भोजन होने लगा । पुरोहितजोने मनभर माल उड़ाया। मानों उन्हें कभी ऐसे भोजनका मौका ही नसीब नहीं हआ था। पूरोहितजीको वहाँ भोजन करते हुए कुछ लोगोंने देख लिया। उन्होंने पुरोहितजीको शिकायत महाराजसे कर दो। महाराजने एक शूद्र के साथ भोजन करनेवाले, वर्णव्यवस्थाको धूलमें मिलानेवाले ब्राह्मणको अपने राज्यमें रखना उचित न समझ देशसे निकलवा दिया। सच है-"कुसंगो कष्टदो ध्रुवम्" अर्थात् बुरी संगति दुःख देनेवालो हो होतो है। इसलिए अच्छे पुरुषोंको उचित है कि वे बुरोंको संगति न कर सज्जनों को संगति करें, जिससे वे अपने धर्म, कुल, मान-मर्यादाको रक्षा कर सकें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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