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________________ नागदनमुनिको कथा ९७ करूं। जिस पापीका तुम जिकर कर रहे हो, वह मेरा ही पुत्र है । जिसे मैंने नौ महीने कुंखमें रक्खा और बड़े-बड़े कष्ट सहे उसीने मेरे साथ इतनी निर्दयता की कि मेरे पूछनेपर भी उसने मुझे रास्तेका हाल नहीं बतलाया। तब ऐसे कुपुत्रको पैदाकर मुझे जीते रहनेसे ही क्या लाभ ? नागदत्ताका हाल जानकर सूरदत्तको बड़ा वैराग्य हआ ! वह उससे बोला-जो उस मुनिकी माता है, वह मेरी भी माता है। माता, क्षमा करो ! यह कहकर उसने उसका सब धन असबाब उसी समय पीछा लौटा दिया और आप मुनिके पास पहुँचा। उसने बड़ी भक्तिके साथ परम गुणवान नागदत्त मुनिकी स्तुति की और पश्चात् उन्हींके द्वारा दीक्षा लेकर वह तपस्वी बन गया। साधु बनकर सूरदत्तने तपश्चर्या और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र द्वारा घातिया कर्मोंका नाश कर लोकालोक का प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त किया और संसार द्वारा पूज्य होकर अनेक भव्य जीवोंको कल्याणका रास्ता बतलाया और अन्तमें अघातिया कर्मोंका भी नाश कर अविनाशी, अनन्त, मोक्षपद प्राप्त किया। श्रीनागदत्त और सूरदत्त मुनि संसारके दुःखोंको नष्ट कर मेरे लिए शान्ति प्रदान करें, जो कि गुणों के समुद्र हैं, जो देवों द्वारा सदा नमस्कार किये जाते हैं और जो संसारी जीवोंके नेत्ररूपो कुमुद पुष्पोंको प्रफुल्लित करनेके लिये चन्द्रमा समान हैं जिन्हें देखकर नेत्रोंको बड़ा आनन्द मिलता है, शान्ति मिलती है। १५. शिवभूति पुरोहितकी कथा मैं संसारके हित करनेवाले जिनभगवान्को नमस्कार कर दुर्जनोंकी संगतिसे जो दोष उत्पन्न होते हैं, उससे सम्बन्ध रखनेवाली एक कथा लिखता हूँ, जिससे कि लोग दुर्जनोंकी संगति छोड़नेका यत्न करें। यह कथा उस समयकी है, जब कि कोशाम्बीका राजा धनपाल था। धनपाल अच्छा बुद्धिमान् और प्रजाहितैषी था। शत्रु तो उसका नाम सुनकर काँपते थे। राजाके यहाँ एक पुरोहित था। उसका नाम था शिवभूति । वह पौराणिक अच्छा था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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