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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-यन्त्र शब्द | ७१ अस्त्री-(पुल्लिग और नपुंसक) माना जाता है और उसके भी चार अर्थ होते हैं--१. निश्चल (स्थिर) २. दम्भ (आडम्बर) ३. कैतव (छल) और ४. लौह मुद्गर (लोहे का बनाया हुआ मुद्गर)। मूल : यन्त्रेऽनृते भग्नशृङ्ग षण्डे-पुजेऽपिकीर्त्यते । कूपः पुंस्युदपाने स्याद् गर्तमृण्मानयोरपि ॥ ३८० ॥ हिन्दी टोका-१. यन्त्र (मशीन वगैरह) २. अनृत (मिथ्या प्रचार) ३. भग्न-शृङ्ग (टूटा हुआ सींग) ४. षण्ड (नपुंसक) और ५. पुञ्ज (समूह)। इन पाँच अर्थों में भी कूट शब्द का प्रयोग किया जाता है। कूप शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. उदपान (कूआ) २. गर्त (गड्ढा) और ३. मृण्मान (परिमित मिट्टी) को भी कूप कहते हैं। __कूपको गुणवृक्षे स्यात् तैलपात्रे ककुन्दरे । चिताया मुदपानेऽथ कूपी पात्रान्तरे स्मृता ॥ ३८१ ॥ हिन्दी टोका-कूपक शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं -१. गुण वृक्ष (नौका के मध्य बन्धन रज्जु का काष्ठ, नौ बन्धन कीलक जोकि मस्तूल शब्द से प्रसिद्ध है) २. तैल पात्र (कुप्पी) को भी कूपक कहते हैं। इसी प्रकार ३. ककुन्दर को भी कूपक कहते हैं। एवं ४. चिता (शव को जलाने की चिता) तथा ५. उदपान (कूवाँ) को भी कूपक कहते हैं। कूपी शब्द स्त्रीलिंग माना आता है और उसका पात्रान्तर (पात्र विशेष कुप्पी) अर्थ होता है ।। मूल : कू!ऽस्त्री कठिने दम्भे कुशमुष्टौ विकत्थने । मयूरपुच्छमुष्टौ च श्मश्रुणि भ्र युगान्तरे ॥ ३८२ ॥ हिन्दी टोका-कूर्च शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके सात अर्थ होते हैं१. कठिन (कठोर) २ दम्भ (आडम्बर) ३. कुशमुष्टि (दर्भ की मुष्टि) ४. विकत्थन (आत्म-प्रशंसा) ५. मयूरपुच्छमुष्टि (मोर के पाँख की मुष्टि - गुच्छा) एवं ६. श्मश्रु (दाढ़ी मूंछ) और ७. भ्र युगान्तर (दोनों भौं का मध्य भाग) इस प्रकार सात अर्थ जानना।। मूल : बीजे कैतवे क्षिप्रोपरिभागे च शीर्षके । कूचिका क्षीरविकृति-सूचिका-तूलिकास्वपि ।। ३८३ ॥ हिन्दी टोका-१. हुंबीज (हुं नाम का बीज मन्त्र को) २. कैतव (छल को) ३. क्षिप्रोपरिभाग (क्षिप्रा नदी के ऊपर का भाग) ४. शीर्षक (मस्तक भाग) को भी कूर्चक शब्द से व्यवहार किया जाता है। कूर्चिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसका अर्थ क्षीरविकृति सूचिका तूलिका (दुग्ध के विकार का सूचक कूची) को भी कूचिका कहते हैं। मूल : कुञ्चिकायां कुड्मलेऽथ कूर्पासः कञ्चुके पुमान्। कूर्मो मुद्रान्तरे बाह्यवायु भेदेऽपि कच्छपे ॥ ३८४ ॥ हिन्दी टे'का १ कुञ्चिका (चाभी) और २. कुड्मल (कली) अर्थ में भी कूचिका शब्द का प्रयोग होता है । कूर्पास शब्द पुल्लिग माना जाता है, और उसका अर्थ कञ्चुक (कुर्ता) होता है । कूर्म शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मुद्रान्तर (कूर्म नाम का मुद्रा विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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