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________________ ७० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कुशा शब्द (पढ़ा हुआ)। किन्तु शिक्षित अर्थ में कुशल शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी शिक्षित हो सकते हैं। मूल : मधुकर्कटिकारज्जु बलासु च कुशा स्त्रियाम् ।। कुशिको मुनिभेदे स्यात् जरणद्रुमफालयोः ॥ ३७५ ॥ हिन्दो टीका-कुशा शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. मधुकर्कटिका (मीठी काकड़ी) २. रज्जु (रस्सी) और ३. बला (बलियारी सोंफ)। कुशिक शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. मुनिभेद (मुनिविशेष विश्वामित्र ऋषि) २. जरणद्रुम (सफेद जीरा का वृक्ष) और ३. फाल (हल में लगाया हुआ लोहे का फाल-फार) को भी कुशिक कहते हैं। मूल : बिभीतके तैलशेषे सर्जेऽपि त्रिषु केकरे । कुशूलो व्रीह्यगारे स्यात् तुषवह्नावपि स्मृतः ।। ३७६ ॥ हिन्दी टोका-१. बिभोतक (बहेड़ा) २. तैलशेष, और ३. सर्ज (सखुआ) इन तीन अर्थों में भी कशिक शब्द का प्रयोग होता है। किन्तु १. केकर (ऐचकर देखने वाला - एक भौं को ऊंचा कर एक भौं को नीचा कर देखने वाला)। इस अर्थ में तो कुशिक शब्द त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री साधारण सभी भ्र को ऊँचा-नीचा करके देखने वाले हो सकते हैं । कुशूल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. व्रीह्यगार (धान्य रखने की बुखारी कोठी इत्यादि) और २. तुष वह्नि (भुस्से की आग) जो कि धीमे-धीमे सुलगती रहती है। कुष्ठं विषान्तरे रोगे-भेदे-भेषजभेदयोः । कुष्माण्डोऽस्त्रीभ्र ण भेदे कारु-गण भेदयोः ॥ ३७७ ।। हिन्दी टीका - कुष्ठ शब्द नपुंसक माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विषान्तर (जहर विशेष) २. रोगभेद (गलित-श्वेत-कुष्ठ रोग विशेष) और ३. भेषजभेद (औषध विशेष) को भी कष्ठ कहते हैं । कुष्माण्ड शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. भ्र ण भेद (गर्भस्थ बालक) २. कर्कारु (कोहड़ा) और ३. गणभेद (गणविशेष) को भी कुष्माण्ड शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : कुष्माण्ड्युमा घृणावास-यज्ञ कर्मान्तरौषधे । कसुमं स्त्रीरज: पुष्प-फल-नेत्राऽऽमयान्तरे ॥ ३७८ ॥ हिन्दी टीका-कुष्माण्डी शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. उमा (पार्वती, भांग) २. घृणावास (घृणित स्थान) ३. यज्ञकर्मान्तर (याग क्रिया विशेष) और ४. औषध (दवा) कुसुम शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. स्त्रीरज (मासिक धर्म) २. पुष्प, ३. फल और ४. नेत्राऽऽमयान्तर (नेत्र का रोग विशेष) को भी कुसुम शब्द से व्यवहार किया जाता है। कुहरं विवरे कर्णे कण्ठशब्दे गलेऽन्तिके । कूटोऽस्त्री निश्चले दम्भे कैतवे लौहमुद्गरे ।। ३७६ ॥ हिन्दी टोका-कुहर शब्द नपुंसक माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. विवर (छिद्र) २. कर्ण (कान) ३. कण्ठ शब्द (गले की आवाज) ४. गल (गला) और ५. अन्तिक (नजदीक)। कूट शब्द मूल : मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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