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________________ ६८ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - कुम्भ शब्द प्राणायाम) । पूरक, कुम्भक और रेचक इस प्रकार प्राणायाम के तीन भेद माने जाते हैं - उनमें मध्यम प्राणायाम को कुम्भ शब्द से व्यवहार होता है । मूल : द्रोणयुगल परिमाणेऽप्सौ राक्षसे पुमान् । गुग्गुल त्रिवृति क्लीवं कुम्भकारस्तु कुक्कुभे ।। ३६५ ।। हिन्दी टीका - पुल्लिंग कुम्भ शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं - १. राक्षस, और २. द्रोणयुगल परिमाण (दो द्रोण परिमाण २० सेर) किन्तु नपुंसक कुम्भ शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. गुग्गुलु ( गुग्गल) और २. त्रिवृत् (सफेद निशोथ, छोटी सफेद इलाइची ) । कुम्भकार शब्द पुल्लिंग माना जाता है और उसका एक अर्थ कुक्कुभ माना गया है (कुक्कुभ पक्षी विशेष को कहते हैं) । कुलालेऽप्यथ कुम्भी स्त्री, कट्फले पाटलोखयोः । दन्तीतरौ वृक्षभेदे, हस्ति कुम्भीरयोः पुमान् ॥ ३६६ ॥ मूल : हिन्दी टीका - कुलाल (घट बनाने वाला) को भी कुम्भकार कहा जाता है । कुम्भी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. कट्फल (कायफर ) २. पाटल (गुलाब) ३. उखा ( वटलोही) ४. दन्तीतरु (दन्ती नामक औषषि विशेष का वृक्ष) और ५. वृक्ष भेद (वृक्ष विशेष) को भी कुम्भी कहते हैं किन्तु ६. हस्ति (हाथी) और ७. कुम्भीर (नक्र-मकर-ग्राह) इन दो अर्थों में तो पुल्लिंग ही इन् प्रत्ययान्त कुम्भी शब्द व्यवहृत होता है । मूल : कुरुर्वर्षान्तरे भक्ते कण्टकार्यां नृपान्तरे । कुरुविन्दः पुमान् माषे मुस्तकेऽथ नपुंसकम् ॥ ३६७ ॥ हिन्दी टीका - कुरु शब्द पुल्लिंग है और इसके चार अर्थ माने जाते हैं - १. वर्षान्तर ( कुरुक्षेत्र) २. भक्त, ३. कण्टकारी (कटार नाम का औषधि विशेष) और ४. नृपान्तर ( कुरु नाम का राजा जिसकी सन्तान कौरव हुए) । कुरुविन्द शब्द माष ( उड़द) अर्थ में एवं मुस्तक (मोथा) अर्थ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु अगले श्लोक द्वारा कहे जाने वाले तीन अर्थों में नपुंसक ही माना जाता है । मूल : काचलवणे Jain Education International कुल्माषे कुलं वंशे स्वजातीयगणे अग्र े जनपदे क्लीवं पुमान् पद्मरागमणावपि । गृह- शरीरयोः ॥ कुलक नागयोः || ३६८ ।। हिन्दी टीका - १. कुल्माष ( कदन्न कोदों) २. काच, ३. लवण (नमक) और ४. पद्मरागमणि इन चार अर्थों में कुरुविन्द शब्द नपुंसक ही माना जाता है। कुल शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. वंश (कुल) २. स्वजातीयगण ( ज्ञाति परिवार) ३. गृह (घर) ४. शरीर (देह) ५. अग्र ( अगला ) और ६. जनपद (देश) इन छह अर्थों में कुल शब्द नपुंसक ही माना जाता है किन्तु १. कुलक ( शिल्पी कुल प्रधान) अर्थ में और २. नाग (सर्प विशेष) इन दो अर्थों में कुल शब्द पुल्लिंग ही जानना चाहिये । इस तरह कुल शब्द के आठ अर्थ जानना । मूल : कुलकस्तु कुलश्रेष्ठे वल्मीके काकतिन्दुके । पिण्डीतके मरुबके हरिदुवर्ण For Private & Personal Use Only भुजङ्गमे ॥ ३६६ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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