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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-कुमारी शब्द | ६७ पासक भेद (भगवान् जिनेश्वर के उपासक विशेष भक्त को भी कुमार शब्द से कहा जाता है) और ६. युवराज को भी कुमार कहा जाता है। इस तरह कुल मिलाकर कुमार शब्द के आठ अर्थ जानने चाहिये। मूल : कुमारी पार्वती-सीता-सरिभेद सहासु च। श्यामा द्वादशवर्षीयकन्ययोस्तरुणीसुमे ॥ ३६० ।। हिन्दी टीका-कुमारी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं --१. पार्वती (गौरी) २. सीता (जानकी) ३. सरिभेद (नदी विशेष) ४. सहा (वनीय मूंग) ५. श्यामा (स्त्री नवयुवती) ६. द्वादश वर्षीय कन्या, ७. तरुणी (युवती) और ८. सुम (पुष्प विशेष) । इन आठों को भी कुमारी शब्द से व्यवहार किया जाता है। मूल : स्थूलैला-मेदिनी पुष्पबन्ध्या कर्कोटकीष्वपि । अपराजितायां वासन्त्यां जम्बुद्वीपेऽपि कीर्तिता ॥ ३६१ ॥ हिन्दी टीका -१. स्थूलैला (बड़ी इलायची) २. मेदिनी (पृथ्वो) ३. पुष्प बन्ध्या (रजस्वला होकर बन्ध्या स्त्री) ४. कर्कोटकी (कर्कटी ककुरो) ५. अपराजिता (पुष्पलता विशेप) ६. वामन्ती (मागधी पूष्प) और ७ जम्बूद्वीप (एशिया द्वीप) को भी कुमारी शब्द से व्यवहृत करते हैं। इस तरह कुल मिलाकर कुमारी शब्द के पन्द्रह अर्थ जानना ।। मूल : कुमुदं श्वेतोत्पले रक्तपद्म रूप्ये नपुंसकम् । पुमान् नैऋतकोणस्थ दिग्गजे वानरान्तरे ॥ ३६२ ॥ हिन्दी टोका-नपुंसक कुमुद शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१ श्वेतोत्पल (सफेद कमल) २ रक्तपद्म (लाल कमल) ३. रूप्य (रुपया) और पुल्लिग कुमुद शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. नैऋतकोणस्थ दिग्गज (नैऋत्यकोण में रहने वाला दिग्गज हाथी) और २. वानरान्तर (वानर विशेष लंगूर)। मूल : सितोत्पले दैत्यभेदे कर्पू रे ध्र वकान्तरे । स्त्रियां कट्फल-गम्भारी धातकी कुम्भिकास्वपि ॥३६३।। हिन्दी टीका-कुमुद शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. सितोत्पल (सफेद कमल विशेष भेंट पुष्प कुई) २. दैत्यभेद (दानव विशेष) ३. कर्पूर (कपूर) और ४. ध्रुवकान्तर (ध्र वतारा)। स्त्रीलिंग कमुदा शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. कट्फल (कायफर) २ गम्भारी (गभारि नाम का वृक्ष विशेष) ३. धातकी (धवा नाम का वृक्ष विशेष) ४. कुम्भिका (कोई कुम्भी) को कुमुदा शब्द से या कुमुवती शब्द से व्यवहार होता है । मूल : कुम्भो गजशिरःपिण्डे कुम्भकर्णसुते घटे । वेश्यापतौ राशिभेदे प्राणायामाङ्गकुम्भके ॥ ३६४ ॥ हिन्दी टोका-कुम्भ शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं १. गजशिर सिंण्ड (हाथी का मस्तक भाग) २. कुम्भकर्ण-सुत (कुम्भकर्ण का पुत्र) ३. घट (घड़ा) ४. वेश्यापति (वेश्या का स्वामी) ५. राशि भेद (कुम्भ नाम को राशि विशेष) और ६. प्राणायामाङ्ग कुम्भक (कुम्भक नाम का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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