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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-काकपक्ष शब्द | ५५ २. चर्मरज्जु (चमड़े की डोरी चाबुक वगैरह) ३. सादृश्य (सरखापन) ४. अन्तगृह (अन्तःपुर राजा की हवेली) ५. कक्षरज्जु (बगल को बांधने की डोरी) ६. वरत्रा (चाबुक) ७. गुजा (चनौटी, करजनी) और ८. उद्यम (व्यवसाय उद्योग) इस तरह कुल मिलाकर कक्ष्या शब्द के उन्नीस अर्थ समझना चाहिए । काक शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. अतिधृष्ट (अत्यन्त धीठ) २. तिलक, ३. वायस (कौवा) ४ पादपान्तर (वृक्ष विशेष) ५. शिरोऽवक्षालन (कंगही) ६. द्वीप विशेष और ७. पीठसी (पीछे पीछे अनुसरण करने वाला) इस तरह काक शब्द के सात अर्थ समझना चाहिये । मूल : परिमाणविशेषेऽथ काकपक्षः शिखण्डके। काकरूकः पुमान् दम्भेस्त्रीजिते घूकपक्षिणि ॥ २६३ ॥ दिगम्बरे दरिद्रे च भीरुकेस्यात्त्रिलिङ्गकः।। काकिणी पणतुर्यांशे कृष्णला मानदण्डयोः ॥ २६४ ॥ हिन्दी टीका-१. परिमाणविशेष को भी काक कहते हैं। कुल मिलाकर काक शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिये । काकपक्ष शब्द पुल्लिग है और उसका १. शिखण्डक (बच्चों का चोटला-चूड़ा, जुल्फी, शिखा सामान्य) अर्थ समझना चाहिए। काकरूक शब्द भी पुल्लिग है और उसके छह अर्थ होते हैं-१. दम्भ (आडम्बर) २. स्त्रीजित् (स्त्रो से जीता हुआ, स्त्रीवश) ३. घूकपक्षी (उल्लू) किन्तु ४. दिगम्बर . भीरुक (डरपोक) इन तीन अर्थों में काकरूक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। काकिणी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. पणतुर्यांश (कौड़ी, वराटिका, पैसे का चौथा भाग) २. कृष्णला (करजनी, चनौटी, मूंगा) और ३. मानदण्ड (आढक का पचासवाँ हिरसा)। इस तरह काकिणी शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : काकोलो द्रोणकाके स्यात् काकोल्याख्यौषधान्तरे । भुजङ्गमे कुम्भकारे पुमान् स्यात् सूकरान्तरे ॥ २६५ ॥ काञ्चनं कनके वित्ते किजल्के नागकेशरे । पुमांस्तु कोविदारे स्यान्नागकेशर - पादपे ॥ २६६ ॥ हिन्दी टीका-काकोल शब्द भी पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. द्रोणकाक (काला कौवा कारकौवा) २. काकोल्याख्यौषधान्तर (काकोली नाम का औषध विशेष) ३. भुजंगम (सांप) ४. कुम्भकार (कुम्हार) और ५. सूकरान्तर (वनया सूगर)। इस तरह काकोल शब्द के पांच अर्थ जानना चाहिए । नपुंसक कांचन शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. कनक (सोना) २. वित्त (धन) ३ किंजल्क (पुष्प पराग) और ४. नागकेशर (केशर चन्दन)। किन्तु पुल्लिग कांचन शब्द के दो अर्थ होते हैं --१. कोविदार (कचनार) और २. नागकेशर पादप (नागकेशर का वृक्ष)। इस तरह मिलाकर कांचन शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये। मूल : उदुम्बरे च धुस्तूरे चम्पकेऽपि प्रयुज्यते । स्त्रीकट्याभरणे कांची मोक्षदायि पुरान्तरे ।। २६७ ॥ काण्डोऽस्त्री कुत्सिते बाणे दण्डे नीर समूहयोः । वर्गे रहसि प्रस्तावे श्लाघायांस्तम्ब-चन्द्रयोः ॥ २६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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