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________________ -कक्ष शब्द ५४ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहितसकती है । किन्तु ४. श्योनाक वृक्ष ( सोना पाठा) अर्थ में और ५. राग राग विशेष) एवं ६. कलियुग अर्थ में कषाय शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है, इस तरह मिलाकर कषाय शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिए । मूल : त्रिलिंगो लोहिते रक्त पीत - मिश्रितवर्णके । सुरभौ धववृक्षेऽथ कक्षस्तृणे बाहुमूलेकच्छे वीरुधि कल्मषे । वने शुष्कवने पार्श्वे भित्तौ शुष्कतृणे पुमान् ॥ २८८ ॥ · कसिपुर्वसनान्नयोः ।। २८७ ।। हिन्दी टीका - इसी प्रकार लोहित (लाल वर्ण युक्त) अर्थ में तथा १०. रक्तपीत मिश्रित वर्ण अर्थ में कषाय शब्द त्रिलिंग माना जाता है एवं ११. सुरभि ( खुशबूदार ) अर्थ एवं १२. धववृक्ष ( पाकर का वृक्ष) अर्थ में भी कषाय शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कसिपु शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. वसन (वस्त्र- कपड़ा) और २. अन्न (अनाज) । इस तरह कुल मिलाकर कषाय शब्द के बारह अर्थ और कसिपु शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए। कक्ष शब्द भी पुल्लिंग है और उसके दस अर्थ होते हैं१. तृण (घास का ढेर ) २. बाहुमूल (कांख) ३. कच्छ (अत्यन्त अधिक जलमय भूमि) ४. वीरुध (तरुलता गुल्म) ५. कल्मष (पाप) ६. वन (जंगल) ७ शुष्कवन (सूखा हुआ वन ) ८. पार्श्व ( बगल ) ६. भित्ति ( दीवाल) और १०. शुष्कतृण (सूखा हुआ घास) । इस प्रकार कक्ष शब्द के कुल मिलाकर दस अर्थ समझना चाहिये । मूल : Jain Education International कक्षा स्पर्द्धापदे काञ्च्यां भित्तौ गेहप्रकोष्ठके । क्षुद्र रोगान्तरे साम्ये कक्ष्या स्पन्दन-भागयोः ॥ २८६ ॥ स्यात् कक्षावेक्षकोरङ्गाजीव- शुद्धान्तपालयोः । उद्यानरक्षके द्वारपाल के कविषिङ्गयोः ॥ २६० ॥ हिन्दी टीका - कक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. स्पर्द्धापद (कम्पिटीशन ) २. काञ्ची (करधनी मेखला ) ३. भित्ति ( दीवाल) ४ गेह प्रकोष्डक ( घर का प्रकोष्ठ देहली कमरा) । कक्ष्या शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं - १. क्षुद्ररोगान्तर ( खुजली कलकलि) २. साम्य ( सरखापन ) ३ स्पन्दन (क्रिया) ४. भाग (एक देश ) ५. कक्षावेक्षक (एक पक्ष का निरीक्षक) ६. रंगाजीव (चित्रकार) ७. शुद्धान्तपाल (अन्तःपुर का रक्षक ) ८. उद्यानरक्षक ६. द्वारपालक, १०. कवि और ११. पिंग (हिजड़ा नपुंसक ) । इस तरह कक्षा शब्द के चार और कक्ष्या शब्द के ग्यारह अर्थ समझना चाहिये । मूल : कक्ष्या काञ्च्यां चर्मरज्जौ सादृश्येऽन्तर्गृ हे स्त्रियाम् । कक्षरज्जौवरत्रायां गुञ्जायामुद्य काकोऽतिधृष्टे तिलके वायसे शिरोऽवक्षालने द्वीविशेषे स्मृता ।। २६१ ॥ पादपान्तरे । पीठसर्पिणि ।। २६२ ॥ हिन्दी टीका-कक्ष्या शब्द के और भी आठ अर्थ होते हैं - १. कांची ( करधनी मेखला कन्दोरी) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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