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________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - द्वीपप्रभेद शब्द | ४५ : ५. प्रसारिणी (आकाशबेल) ६. गोला ( मनःशिला मैनशिल पत्थर विशेष ) ७. कलम्बी (करमी शाक विशेष, जिसकी बेल जमीन तथा पानी के ऊपर फैल जाती है) और ८. हस्तिनी (हथिनी ) | कटाह शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. नरक, २. कूप (आ) ३. कर्बुर (सोना, चितकाबर वगैरह ) ४. कूर्मकर्पूर (काचवा का पृष्ठ भाग काछु का खप्पर) ५. जायमान विषाणाग्रमहिषी शावक (भैंस का बच्चा जिसका सींग पैदा ही हो रहा है) और ६ अर्भक ( शिशु बच्चा ) । इस तरह कटाह शब्द के छह अर्थ समझना । मूल : द्वीपप्रभेदे तैलादिपाकपात्रेऽपि कीर्तितः । कटुः कट्वीलतायां स्यात् पटोले चम्पकद्रुमे ॥ २३७ ॥ पुमान् कटुरसे चीनकर्पूरेऽथ कटु स्त्रियाम् । प्रियंगुवृक्ष कटुकी कटुकी राजिकास्वथमत्सरे ॥ २३८ ॥ हिन्दी टीका - १. द्वीपप्रभेद (द्वीप विशेष) को और २ तैलादिपाकपात्र ( कड़ाह ) को भी कटाह कहते हैं । कटु शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं- - १. कट्वी लता ( कड़वी बेल लता) २. पटोल (परबल) ३. चम्पकद्र ुम (चम्पक वृक्ष) ४ कटुरस ( तिक्तरस नीमड़ा या लाल मिरचाई) ५. चीन कर्पूर ( कर्पूर विशेष ) । स्त्रीलिंग कटु शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. प्रियंगु वृक्ष (फलिनी, ककुनी, टोंगुन, काउन मुनि अन्न मोरैया) २. कटुकी ( फल विशेष) और ३. राजिका ( राई काला सरसों) और ४. मत्सर ( ईर्ष्यालु) को भी कटु कहते हैं । इस प्रकार कटु शब्द के दस अर्थ जानना । मूल : Jain Education International तीक्ष्णेऽप्रिये कटुरसयुक्त त्रिषु कटुः स्मृतः ॥ कणोऽतिसूक्ष्मे धान्यांशे पुंसि स्यवनजीरके ॥ २३६ ॥ कणा स्त्रीपिप्पली श्वेतजीरकाऽल्पेषु जीरके । . कणिकः शुष्कगोधूमचूर्णे शत्रौ कणे पुमान् ॥ २४० ॥ हिन्दी टीका - १. तीक्ष्ण ( तीखा ) २. अप्रिय और ३. कटुरसयुक्त (कड़वा रस से युक्त वस्तु) इन तीनों अर्थों में कटु शब्द त्रिलिंग माना जाता है । कण शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं१. अति सूक्ष्म धान्यांश (चावल का छोटा-छोटा टूटा हुआ भाग खुद्दी) और २. वनजीरक (जंगली जीरा वन जीरा) । कणा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते है -१. पिप्पली (पीपरि ) २. श्वेत जीरक (सफेद जीरा) और ३ अल्प ( लेशमात्र ) । इसी प्रकार कणिक शब्द भी पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. शुष्क गोधूमचूर्ण (चोकर) २. शत्रु, ३. कण और ४. जीरक (जीरा) । इस तरह कुल मिलाकर कण, कणा और कणिक शब्द के नौ अर्थ जानना चाहिये । मूल : नीराजनविधौ स्यात्तु कणिका तण्डुलांशके । अग्निमन्थ कणाऽत्यन्तसूक्ष्मवस्तुषु कीर्तिता ॥ २४१ ॥ हिन्दी टीका - स्त्रीलिंग कणिका शब्द का १. नीराजन विधि ( आरती ) एवं २. तण्डुलांशक (चावल का टुकड़ा खुद्दी) और ३. अग्निमन्थकण ( लकड़ी के मन्थन घर्षणजन्य अग्निकण) और ४. अत्यन्त सूक्ष्म वस्तु भी अर्थ होते हैं । इस तरह कणिका शब्द के चार अर्थ समझना चाहिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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