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________________ ४४ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कञ्चार शब्द समयेऽतिशये पुंसि शवे शवरथे तृणे। कटौ तक्षितकाष्ठेपि क्रियाकारे च भेषजे ।। २३१ ।। हिन्दी टीका-कार शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. कुञ्जर (हाथी) २. सूर्य, ३. विरिञ्चि (ब्रह्म) ४. जठर (उदर पेट) और ५. मुनि (योगी)। कट शब्द भो पुल्लिग है और उसके बारह अर्थ होते हैं-१. किलिञ्जक (बाँस की बनी हुई पिटारी-झांपी) २. हस्तिगण्डदेश (हाथी का कपोल गण्डस्थल) और ३. श्मशान, ४. समय (काल) ५. अतिशय (अत्यन्त) ६. शव (मुर्दा) ७. शवरथ (मुर्दे को श्मशान में ले जाने वाला रथ विशेष) ८. तृण (मोथी) ६. कटि (कमर) १०. तक्षित काष्ठ (वसूला वगैरह से छिला लकड़ी का पीठ वगैरह) ११ क्रियाकार (क्रिया करने वाला) और १२. भेषज (औषध)। मूल : कटकोऽस्त्री नितम्बेऽद्रेःसानौ वलय चक्रयोः । राजधान्यां नगरी हस्तिदन्तमण्डनयोरपि ॥ २३२ ॥ सैन्ये सामुद्रलवणे पर्वतीयसमावनौ । कटतः शंकरे विद्याधरे कीटेऽक्षदेवनै ।। २३३ ।। ... हिन्दी टीका-कटक पुल्लिग तथा नपुंसक भी है और उसके ग्यारह अर्थ होते हैं-१. नितम्ब (कटि-कमर-चूतड़) २. अद्रिसानु पहाड़ की चोटी) ३. वलय (कंकण कंगन चूड़ी) ४. चक्र (गाड़ी का पहिया) ५. राजधानी, ६. नगरी, ७. हस्तिदन्तमण्डन (हाथी के दाँत का भूषण विशेष) ८. सैन्य (सेना समूह) ६. सामुद्रलवण (समुद्र का नमक) १०. पर्वतीय समावनि (पहाड़ की समतल भूमि) इस तरह, कटक शब्द का बारह अर्थ समझना चाहिये। कटघू शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. शंकर (शिवजी) २. विद्याधर (गन्धर्व जाति विशेष) ३. कीट (क्रीड़ा जन्तु विशेष) ४. अक्षदेवन(जुआ खेलने की गोटी पाशा चौपड़)। मूल : कटभंगस्तु शस्यानां हस्तच्छेदे नृपात्यये । कटभी तरुभिज् ज्योतिष्मती कैडयंपादपे ॥ २३४ ॥ हिन्दी टीका-कटभंग शब्द पुल्लिग है और उसके दो अथ होते हैं -- १. शस्यानां हस्तच्छेद (शस्यों-फसलों को हाथ से काटना) और २. नृपात्यय (राजा का नाश) । कटभी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. तरुभिद् (वृक्ष काटने वाला) २. ज्योतिष्मती (लता विशेष-मालकांगनी नाम की लता) और ३. कैडर्यपादप (कायफल-जायफल) । इस प्रकार कटभंग शब्द के दो और कटभी शब्द के तीन अर्थ होते हैं। मूल : कटम्भरा राजवला - वर्षाभू-रोहिणीषु च । मूर्वा प्रसारणी-गोला कलम्बी हस्तिनीष्वपि ।। २३५ ॥ कटाहो नरके कूपे क— रे कूर्मकर्पू रे । जायमान विषाणाग्रमहिषी शावकेऽर्भ के ।। २३६ ॥ हिन्दी टीका-कटम्भरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ होते हैं-राजवला (आकाश बेल बम्वर नाम की लता विशेष) २. वर्षाभू (गजपुरैन) ३. रोहिणी गाय) ४. मूर्वा (धनुर्ध्या प्रत्यञ्चा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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