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________________ २६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अस्तु शब्द अहहेत्यद्भूते खेदे परिक्लेश - प्रकर्षयोः । अहिविधुन्तुदे सूर्ये पथिके वृत्र - सर्पयोः ॥१३३।। हिन्दी टीका-अस्तु अब्द अव्यय है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. असूया (डाह-निन्दा-ईा) २. पीड़ा (तकलीफ-वेदना) और ३. स्वीकार (मजूर)। 'अह' शब्द भो अव्यय ही माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रशंसा (बड़ाई),२. नियोग (प्रेरणा-आज्ञा) ३. निग्रह (कैद करना, बांधना) और ४. असन (फेंकना) । असु क्षेपणे इस अस धातु से असन शब्द बनता है इसलिये असन शब्द का फेंकना अर्थ समझना चाहिये। अहह शब्द भी अव्यय ही माना जाता और उसके भी चार अर्थ होते हैं-१. अद्भुत (आश्चर्य-अचम्भा) २. खेद (दुःख शोक वगैरह) ३. परिक्लेश और ४. प्रकर्ष (उन्नति-प्रगति)। अहि शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं---१. विधुन्तुद (राहु) २. सूर्य. ३. पथिक राही) ४. वृत्र (राक्षस विशेष वृत्रासुर) और ५. सर्प । मूल : अहोऽव्ययं प्रशंसायां संबोधन - विषादयोः । न्यक्कार - विस्मयाऽसूया वितर्क-पदपूरणे ।।१३४।। हिन्दी टोका-अहो शब्द भी अव्यय ही माना जाता है और उसके आठ अर्थ माने जाते हैं१. प्रशंसा (बड़ाई) २. सम्बोधन (अपनी ओर पुकारना) ३. विषाद (ग्लानि-खेद वगैरह) ४. न्यक्कार (धिक्कार अपमान वगैरह) २. विस्मय (आश्चर्य-अचम्भा) ३. असू (तिरस्कार-ईर्ष्या डाह वगैरह) ४, वितर्क (कल्पना करना) और ५. पदपूरण (पाद पूर्ति) के लिये भी अहो शब्द का प्रयोग किया जाता है। मूल : अक्षं सौवर्चले तुत्थ - इन्द्रियेऽपि नपुंसकम् । अक्षो रुद्राक्ष-इन्द्राक्षे शकटे सर्पचक्रयोः ॥ १३५ ॥ पाशके गरुडे ज्ञाने ज्ञातार्थे रावणात्मजे । कर्ष-आत्मनि जातान्धे व्यवहारे बिभीतके ।।१३६ ॥ हिन्दी टीका-नपुंसक अक्ष शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सौवर्चल (मधुर लवण-मीठा नीमक सौंचर-संचर शब्द से व्यवहार किया जाने वाला नमक विशेष) २. तुत्य (छोटी इलायची नील गड़ी) ३. इन्द्रिय । और पुल्लिग अक्ष शब्द के पन्द्रह अर्थ होते हैं--१. रुद्राक्ष (रुद्राक्ष गुटका) २. इन्द्राक्ष (इन्द्र को आँख) ३. शकट (गाड़ी) : . सर्प, ५. चक्र (गाड़ी का पहिया, सुदर्शन चक्र वगेरह) ६. पाशक (पाशा चौपड़ की गोटी) ७. गरुड़, ८ ज्ञान (बुद्धि) ६. ज्ञातार्थ (ज्ञात पदार्थ) १०. रावणात्मज (रावण का पुत्र अक्षकुमार) ११. कर्ष (एक तोला भर, एक रुपया भर) परिमाण को कर्ष कहते हैं और अक्ष भी उसको कहते हैं। १२. आत्मा, १३. जातान्ध (जन्मान्ध) १४. व्यवहार और १५. विभौतक (बहेड़ा)। इस तरह कुल मिलाकर अक्ष शब्द के अठारह अर्थ जानना । आवापो वलये पात्रे परिक्षेपाऽऽलवालयोः । निम्नोन्नतावनौ भाण्डपचने शत्रु - चिन्तने ।। १३७ ॥ संयोजने पानभेदे बीजवापोग्रयज्ञयोः । आविर्भावः प्रकाशे स्यादु देवावतरणेऽपि च ॥ १३८ । मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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