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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सुरस शब्द | ३८१ ऋतु, २. चैत्र (चैत मास) ३. जातीफल (जायफल) ४. गौ, ५. सुगन्धि, ६. चम्पक, ७. राल (धूप सरर) और ८. जातीफलमहीरुह (जायफल का वृक्ष विशेष)। मूल : सुरसं तुलसी - बोल - त्वच - गन्धतृणेषु च । सुरस: स्यात् पुमान् सिन्धुवारे मोचरसे स्मृतः ॥२२१८॥ सुरसा तुलसी-रास्ना-मिश्रेयः नागमातृषु । महाशतावरी ब्राह्मी दुर्गासु सरिदन्तरे ॥२२१६।। हिन्दी टीका-नपुंसक सुरस शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. तुलसी २. बोल (गन्धरस) ३. त्वच (त्वचा) और ४. गन्धतृण (तृण विशेष)। पुल्लिग सुरस शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. सिन्धुवार (सिन्दुवार-निर्गुण्डी) और २. मोचरस । स्त्रीलिंग सुरसा शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं-१. तुलसी २ रास्ना (श्याम तुलसी) ३. मिश्रेय (सोआ या वन सौंफ) ४. नागमाता ५. महाशतावरी (बड़ा शतावर) ६. ब्राह्मी (भारती वगैरह) ७. दुर्गा (पार्वती) एवं ८. सरिदन्तर (नदी विशेष)। मूल : वायलिगस्त्वसौ स्वादौ स्यात् सुष्ठुरसवत्यपि । सुरूपः पण्डिते चारौ मेरौ स्वर्गे प्रकीर्तितः ॥२२२०॥ सुरालयः सुमेरौ स्यात् त्रिदिवे मदिरागृहे ।। सुवर्चला सूर्यमुखीपुष्पे सूर्यस्ययोषिति ॥२२२१॥ हिन्दी टोका-१. स्वादु (स्वादिष्ट) और २. सुष्ठुरसवत् (सुन्दर रस वाला) अर्थ में सुरसा शब्द त्रिलिंग माना जाता है। सुरूप शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पण्डित २. चारु (सुन्दर) तथा ३. स्वर्ग । सुरालय शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं- १. सुमेरु (सुमेरु पर्वत) २. त्रिदिव (स्वर्ग) और ३. मदिरागृह (शराबखाना)। सुवर्चला शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. सूर्यमुखीपुष्प (सूर्यमुखी नामक फल विशेष) और २. सूर्ययोषित (सूर्य पत्नी)। ब्राम्ह्यांमादित्यभक्तायां क्षुमायां पुंसि नीवृति । सुवर्णः पुंसि धुस्तूरे सुष्ठुवर्णे तु वाच्यवत् ॥२२२२॥ हेम्नोऽक्षे त्वस्त्रियां प्रोक्तः काञ्चने तु नपुंसकम्। सूकः स्यात् पुंसि विशिखे मारुतोत्पलपुष्पयोः ॥२२२३॥ ला शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. ब्राह्मी और २. आदित्य भक्ता और ३. क्षुमा (अलसी-तिली) किन्तु ३. नीवृत् (ग्राम नगर) अर्थ में सुवर्चल शब्द पुल्लिग माना जाता है। पुलिग सुवर्ण शब्द का अर्थ-१. धुस्तूर (धतूर) होता है किन्तु २. सुष्ठुवर्ण (सुन्दर वर्ण) अर्थ में सुवर्ण शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहलाता है। किन्तु २. हेम्नोऽक्ष (सोना का अक्ष-एक मोहरअस्सी रत्ती भर या १६ आना भर सोना) अर्थ में सुवर्ण शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है परन्तु ३. काञ्चन (सोना) अर्थ में सुवर्ण शब्द नपुंसक माना जाता है। सूक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विशिख (बाण) २. मारुत (पवन) और ३. उत्पल पुष्प (कमल)। मूल : सूचक: सीवनद्रव्ये विडाले वायसे शुनि । सूत्रधारे पिशाचे च कथके सिद्ध-बुद्धयोः ।।२२२४॥ मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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