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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-करक शब्द | १९ हिन्दी टीका-करक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दाडिम (बेदाना) २. पक्षिविशेष, ३. कमण्डलु (पात्र विशेष)। वृश्चिक शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं१. अष्टमराशि (वृश्चिक राशि) २. शूककोट (क्रीड़ा विशेष) ३. कर्कट (ककरा, कांकोर)। मूल : कोशातक: पटोल्यां च घोषके चिकुरेपि च । सोमवल्क: कट्फले च घबले खदिरे स्मृतः ॥ ६४ ॥ पिण्याकस्तिलकल्के च सिल्हकेपि प्रकीर्तितः । कौशिको नकुले शक्र व्यालग्राहे च गुग्गुलौ ।। ६५ ॥ हिन्दो टोका-कोशातक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं --१. पटोलो (परबल) २. घोषक (नेनुआ-घिउरा गलका) और ३. चिकुर (केश)। इस प्रकार कोशातक शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । सोमवल्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. कटफल (कायफल-जायफल) २. घबल (पाकर वृक्ष) और ३. खदिर (कत्था का वृक्ष) । इस प्रकार सोमवल्क शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए । पिण्याक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं -१. तिलकल्क (तिल का शेष भाग छिलका) २. सिल्हक (सिलाख्य गन्ध द्रव्य विशेष) लोबान । इस प्रकार पिण्याक शब्द के दो अर्थ सम ने चाहिए। कोशिक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. नकुल (न्यौला-सपनौर) २. शक्र (इन्द्र) ३. व्याल (सर्प), ४. ग्राह (मकर-गोह) और ५. गुग्गुलि (गुग्गूल)। इस तरह कौशिक शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। मूल : उलूके कोशविज्ञ च विश्वामित्रपि कीर्तितः । आतङ्को रोग-सन्ताप-शङ्कासु मुरजध्वनौ ।। ६६ ॥ क्षुल्लकस्त्रिषु नीचेऽल्पे कनिष्ठे दुर्गतेऽपि च । आयुष्मतीन्दौ कर्पू रेऽगदे जैवातृक: सुते ।। ६७ ॥ हिन्दी टीका-कौशिक शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं --१. 'उलूक (उल्लू-घूक) २. कोशविज्ञ (कोश का जानकार) और ३. विश्वामित्र (ऋषि विशेष, जो कि क्षत्रिय होते हुए भी ब्रह्मर्षि माने जाते हैं)। इस तरह कौशिक शब्द के कुल मिलाकर आठ अर्थ समझना चाहिए। आतंक शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. रोग (व्याधि) २. संताप (पीड़ा) ३. शंका (सन्देह) और ४. मुरजध्वनि (पखाउज की आवाज)। इस तरह आतंक शब्द के चार अर्थ जानने चाहिए। क्षुल्लक शब्द त्रिलिंग है और उसके भी चार अर्थ होते हैं --१. नीच (अधम) २. अल्प (थोड़ा) ३. कनिष्ठ (छोटा भाई) और ४. दुगत (दीन-दुःखी)। जैवातृक शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं१. आयुष्मान् (चिरंजीव-दीर्घजीव) २. इन्दु (चन्द्रमा) ३. कपूर (कपूर) ४. अगद (नीरोग) और ५. सुत (पुत्र बालक) इस तरह क्षुल्लक शब्द के चार और जैवातृक शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। मूल : वर्तकः पक्षिभेदे च तुरगस्य शफेपि च । पुण्डरीकं सिताम्भोजे श्वेतच्छत्रेऽगदान्तरे ॥ ६८ ॥ हिन्दी टीका-वर्तकः शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं --१. पक्षिभेद (पक्षी विशेष) २. तुरगशफ (घोड़े का खुर, खरी)। नपुंसक पुण्डरीक शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. सिताम्भोज (सफेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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