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________________ नवयाः। १८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-श्लोक शब्द मूल : श्लोकः पद्ये यशसि च लोकस्तु विष्टपे जने । जम्बुको वरुणे नीचे शृगालेपि स्मृतो बुधैः ॥ ८७ ।। हिन्दी टीका-श्लोकः शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. पद्य (छन्दोबद्ध) २. यश (कीर्ति) । लोक शब्द भी पुल्लिग है उसके भी दो अर्थ होते हैं--१. विष्टप (जगत्-भुवन) २. जन (जनता) । इस प्रकार श्लोक शब्द के और लोक शब्द के भी दो-दो अर्थ समझने चाहिए। जम्बुक शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वरुण, २. नीच (अधम) और ३. शृगाल (सियार-गीदड़)। इस तरह जम्बुक के तीन अर्थ हैं। मूल : पृथुकश्चिपिटे पुंसि शावकेत्वभिधेयवत् । आलोको दर्शने द्योते बन्धु क्ति जयशब्दयो ।। ८८ ॥ आनकस्तु मृदंगे स्यात् भेर्यां पटहमेघयोः । अंक: क्रोडेऽपवादे च रेखाचिन्हविभूषणे ।। ८६ ॥ हिन्दी टीका-पृथुक शब्द चिपिट (पौंमा-चूरा) अर्थ में पुल्लिग है किन्तु शावक (शिशु-बच्चा) अर्थ में अभिधेयवत् (वायरिंगक-विशेष्यनिघ्न) त्रिलिंगक माना जाता है। आलोक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. दर्शन (देखना) २. द्योत (प्रकाश) ३. वन्दी-उक्ति (भाट चारण की चाटूक्तिप्रशंसा) और ४. जय । आनक शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ है -१. मृदंग, २. भेरी (पखावज) ३. पटह (ढक्का) ४. मेघ । इस प्रकार आनक शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। अंक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं--१. क्रोड (गोद) २. अपवाद (कलंक) ३. रेखा (लकीर) ४. चिन्ह, ५. विभूषण (अलंकार) । इस तरह अंक शब्द के पांच अर्थ समझने चाहिए। नाटकांगे चित्रयुद्ध समीपे स्थानदेहयोः । अर्कस्ताम्र भास्करे च स्फटिकेऽर्कदलेपि च ॥ ६० ।। कलंकश्चिन्हेऽपवादे कालायसमले स्मृतः । पुलाकोऽन्नावयवे रिक्तधान्ये ह्यविस्तरे ।। ६१ ॥ हिन्दी टीका-अंक शब्द के और भी छह अर्थ होते हैं - १. नाटकांग (नाटक का भाग) २. चित्रयुद्ध (आश्चर्यकारक संग्राम) अथवा चित्र और ३. युद्ध । ४. समीप (निकट) ५. स्थान और ६. देह (शरीर)। इस प्रकार अंक शब्द के ११ अर्थ समझने चाहिए। अर्क शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं१. ताम्र (ताम्र धातु विशेष) २. भास्कर (सूर्य) ३. स्फटिक और ४. अर्कदल (आक का पता)। इस तरह अर्क शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए। कलंक शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. चिन्ह. २. अपवाद ३. कालायसमल (काला पत्थर का मल-जंग काट)। पुलाक शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं -१. अन्नावयव (भात वगैरह का एक दाना) २. रिक्तधान्ये (धान्य रहित खाली) ३. अविस्तर (संकुचित थोड़ा) इस तरह कलंक और पुलाक के तीन-तीन अर्थ हुए। करको दाडिमे पक्षिविशेषे च कमण्डलौ। वृश्चिकोऽष्ट्रमराशौ च शूककीठे च कर्कटे ॥ ६२ ॥ मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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