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________________ १६ | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - अमृत शब्द वेस्टन करने वाला चर्म पुटक) इस तरह अभ्यागम शब्द के ५ और अभ्यास शब्द के भी ५ एवं अमर शब्द के ४ और अमरा शब्द के भी ४ अर्थ होते हैं ॥ ७५ ॥ मूल : गुडूच्याममरावत्यां महानीली वीरौ । अमृतं भेषजे स्वादु द्रव्ये हृद्येऽन्नवित्तयोः ॥ ७६ ॥ हिन्दी टीका- १. गुडूची (गिलोय) को तथा २. अमरावती ( इन्द्र नगरी) को भी अमरा कहते हैं । इसी प्रकार ३. महानीलो को भी अमरा कहते हैं । एवं ४. वटी (रस्सी) डोरी रज्जु तथा ५ तरु (वृक्ष) को भी अमरा कहते हैं । इस तरह अमरा शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिये | अमृत शब्द नपुंसक है और उसके निम्न प्रकार से १७ अर्थ होते हैं - १. मैषज ( औषध - दबा ) २. स्वादुद्रव्य ( स्वादिष्ट वस्तु) ३. हृद्य (अत्यन्त रमणीय) ४. अन्न (अनाज) ५. वित्त (धन) इसी प्रकार आगे के श्लोकों द्वारा भी अमृत शब्द के अर्थ कहेंगे । मूल : यज्ञशेषद्रव्येऽयाचितवस्तुनि । जले घृते कैवल्ये विषसामान्ये सुधायां पारदे घने ॥७७॥ क्षीरे स्वर्णे भक्षणीयद्रव्ये नित्यनपुंसकम् । पुमान् धन्वन्तरौ देवे वाराहीकन्दरुच्ययोः ॥ ७८ ॥ | हिन्दी टीका - इसी प्रकार १. जल, २. घृत ३. यज्ञ शेष द्रव्य ( याग का बचा हुआ द्रव्य) ४. आयाचित वस्तु (बिना माँगने पर प्राप्त वस्तु) ५. कैवल्य (मोक्ष) ६. विष सामान्य ( सामान्य जहर) ७. सुधा (पीयूष ) ८. पारद (पारा) . धन (वित्त ) इन सबों को भी अमृत कहते हैं । इसी प्रकार १०. क्षीर (दूध) ११. स्वर्ण (सोना) १२. भक्षणीयद्रव्य ( खाद्य खाने लायक वस्तु) को भी अमृत कहते हैं । इन सारे ही १७ अर्थों में अमृत शब्द नित्य नपुंसक है किन्तु १. धन्वन्तरि (वैद्य) २. देव, ३. वाराहीकन्द ( वराह शूकर का अत्यन्त प्रिय कन्द विशेष को वाराही कन्द कहते हैं) और ४. रुच्य (मनोज्ञ - सुन्दर) इन चारों अर्थों में अमृत शब्द पुल्लिंग माना जाता है । मूल : Jain Education International अपवर्गः कर्मफले क्रियान्ते त्यागमोक्षयोः । क्रियावसानसाफल्ये पूर्णतायामपि स्मृतः ॥७६॥ अपवादस्तु विश्वासे निदेशे गर्हणे पुमान् । विशेषे बाधकेऽपष्ठु विपरीते च शोभने ॥ ८० ॥ हिन्दी टीका - अपवर्ग शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. कर्मफल, २. त्रियान्त ( क्रिया का अन्त-समाप्ति) ३. त्याग, ४. मोक्ष, ५. क्रियाऽवसान (क्रिया का अवसान-विराम ) ६ साफल्य (सफलता) ७. पूर्णता ( सम्पन्नता) इसी प्रकार अपवाद शब्द भी पुल्लिंग है और उसके आठ अर्थ होते । १. विश्वास ( यकीन ) २. निदेश (आज्ञा- हुकुम) ३. गर्हण ( निन्दा ) ४. विशेष ( असाधारण ) ५. बाधक (बाधा करने वाला) ६. अपष्ठ ( खराब ) ७. विपरीत (उल्टा ) ८. शोभन (सुन्दर) को भी अपवाद कहते हैं । मूल : परित्यागेऽपवर्गके । अथापसर्जनं दाने अपहारस्त्वपचये चौर्ये संगोपनेपि च ॥ ८१ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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