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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अष्टापद शब्द | १५ दोनों अर्थों में भी अवि शब्द पुल्लिग ही माना जाता है। किन्तु १. पुष्पवती (रजस्वला स्त्री) अर्थ में स्त्री लिंग अवि शब्द को समझना चाहिए । अब्द शब्द भी पुल्लिग ही है और उसके चार अर्थ होते हैं१. संवत्सर (वर्ष) २. मेघ और ३. मुस्ता (मोथा) भी अब्द शब्द का अर्थ है । और ४. पर्वत विशेष । पुल्लिग अव्यक्त शब्द का १, कन्दर्प (कामदेव) २. शिव (शङ्कर) ३. कृष्ण अर्थ हैं इस प्रकार पुल्लिग अव्यक्त शब्द का तीन अर्थ समझना चाहिए किन्तु १. अस्फुट (अस्पष्ट) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष स्त्री या नपंसक कोई भी अस्फुट (स्पष्ट नहीं) पदार्थ कहा जा सकता है। किन्तु नपुंसक अव्यक्त शब्द का १. महत्तत्व (सांख्य शास्त्र का बुद्धि तत्व) (आदि शब्द से अहंकार तत्व और पंच तन्मात्र तत्व लिया जा सकता है और २. प्रकृति (मूल प्रकृति तत्व) को भी अव्यक्त कहते हैं । इसी प्रकार परमात्मा (पुरुष तत्व) को भी अव्यक्त शब्द से लिया जाता है इस तरह नपुंसक अव्यक्त शब्द महत् अहंकार प्रकृति और परमात्मा का भी बोधक माना जाता है। अष्टापदं शारिफले स्वर्ण - धत्तुरयोयोः । अचिरा स्त्र्यहतां मातृविशेष कीर्तितो बुधैः ॥७२।। अभीक: कामुके क्र रे निर्भयोत्सुकयोस्त्रिषु । अभीषुः प्रग्रहे कामेऽनुरागे किरणे पुमान् ॥७३।। हिन्दी टीका-१. शारिफल (पाशा चौपड़-मोतियों के रखने का आधारभूत काष्ठ या कपड़े का बनाया हुआ पात्र विशेष 'बिसात' भी उसे कहते हैं ।) अर्थ में अष्टापद शब्द नपुंसक माना जाता है और २. स्वर्ण तथा ३. धतूर इन दो अर्थों में अष्टापद शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक भी माना जाता है । अचिरा शब्द भगवान शान्तिनाथ तीर्थंकर की माता का वाचक है इसलिये यह शब्द स्त्रीलिंग माना गया है। अभीक शब्द १. कामुक (विषयी) और २. क्रूर (दुष्ट निर्दय) इन दो अर्थों में पुल्लिग माना जाता है किन्तु ३. निर्भय तथा ४. उत्सुक अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है । अभीषु शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रग्रह (लगाम) २. काम (कन्दर्प) ३. अनुराग (प्रेम) ४. किरण (रश्मि) इस प्रकार अष्टापद शब्द के तीन एवं अचिरा शब्द का एक और अभीक तथा अभीषु शब्द के चार चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अभ्यागमोऽन्तिके युद्धे वैराभ्युत्थान-मारणे । अभ्यासोऽभ्यसनाऽऽवृत्ति-शराभ्यासान्तिकेष्वपि ॥७४॥ अमरः पारदे देवेऽस्थिसंहारे मृत्युवजिते । अमरा नाभिनालायां स्थूिणा जरायुषु ॥७॥ हिन्दी टीका -अभ्यागम शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं -१. अन्तिक (निकट) २. युद्ध (लडाई) ३. वैर (शत्रुता) ४. अभ्युत्थान (उन्नति) ५. मारण (मरवाना) अभ्यास शब्द भी पुल्लिग ही है और उसके चार अर्थ होते हैं- १. अभ्यसन (अभ्यास करना-प्रैक्टिश करना) २. आवृत्ति (बार बार आवर्तन) ३. शराभ्यास (बाण चलाने का प्रेक्टिश करना) ४. अन्तिक (पास निकट)। पुल्लिग अमर शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. पारद (पारा) २. देव, ३. अस्थि संहार (हड्डियों का संहरण करना, ले जाना) और ४. मृत्युवजित (नहीं मरना) अमरा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. नाभिनाला (नाभिकूप) २. पूर्वा (दूब) ३, स्थूण (खूटा-स्तम्भ-खम्भा) ४. मराय (गर्भ को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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