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________________ ३०८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वृश्चिक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रसवबन्ध (डण्ठल) २. घटीधारा (घटी यन्त्र) तथा ३ कुचान (स्तन का अग्रभाग चूचुक) । वृन्दारक शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. यूथपाता (यूथझुण्ड का पाता-पालक) और २. त्रिदश (देवता) किन्तु त्रिलिंग वृन्दारक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं१. सुन्दर (रमणीय) और २. श्रेष्ठ (बड़ा)। वृश शब्द भी पुल्लिग है और उसके भो दो अर्थ माने जाते हैं-१. वासक (अडूसा) और २. उन्दुर (चूहा-उन्दर-मूषक) । इस प्रकार वृश शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : वृश्चिकः शूककीटेऽलौ कर्कटे भेषजान्तरे। आग्रहायणिके हाले हालिके मदनद्रुमे ॥१७६८॥ हिन्दी टोका-वृश्चिक शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं- १. शूककीट (ऊनी वस्त्र को काटने वाला कीट विशेष) २. अलि (वृश्चिक राशि या भ्रमर) ३ कर्कट (काकड़ा काकोड़) ४. भेषजान्तर (भेषज विशेष) ५. आग्रहायणिक (मार्गशीर्ष) ६. हाल (शालिवाहन राजा) ७. हालिका (हलवाह वगैरह) और ८. मदनद्र म (धत्तूर)। मूल : राशौ गोमयकीट ना, नखपयां स्त्रियामसौ। वृषो ना वृषभे धर्मे मूषिके शुक्रले रिपौ ॥१७६६।। श्रीकृष्णे मदने वास्तु स्थानभेदे च वासके। वलिष्ठ ऋषभौषध्यां श्रेष्ठे चोत्तर संस्थिते ॥१७७०॥ हिन्दी टोका-पूल्लिग वश्चिक शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. राशि (राशि विशेषवृश्चिक राशि) २. गोमयकीट (बिच्छू) और स्त्रोलिंग वृश्चिक शब्द का अर्थ- १. नखपर्णी (नखपर्णी नाम को लता विशेष) । वृष शब्द पुल्लिग है और उसके तेरह अर्थ होते हैं -१. वृषभ (बैल) २. धर्म, ३. मूषिक (चूहा-उन्दर) ४. शुक्रल (शुक्रल नाम का वनस्पति विशेष) ५. रिपु (शत्रु) ६. श्रीकृष्ण (भगवान श्रीकृष्ण) ७. मदन (कामदेव या धत्तूर) ८. वास्तुस्थानभेद (वास्तु का स्थान विशेष) ६. वासक (अडूसा) १०. वलिष्ठ (अत्यन्त बलवान) ११. ऋषभौषधि (काकरासींगी, ऋषभ नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष) १२. श्रेष्ठ (बड़ा-महान) और १३. उत्तरसंस्थित (श्रेष्ठ)। मूल : वृषध्वजो हरे विघ्नराजे च पुण्यकर्मणि । वृषपर्वा शिवे दैत्यभेदे भृङ्गारुपादपे ॥१७७१॥ वृषभो ना बलीवर्द - वैदर्भीरीतिभेदयोः । आद्यतीर्थंकरे श्रेष्ठे कर्णरंध्र'ऽगदान्तरे ॥१७७२।। हिन्दी टोका-वृषभध्वज शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. हर (भगवान शंकर) २. विघ्नराज (गणेश) और ३. पुण्य कर्म (पवित्र कर्म)। वृषपर्वन् शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-1. शिव (भगवान शंकर) २. दैत्यभेद (दैत्य विशेष-वृषपर्वा नाम का दैत्य) और ३. भृङ्गारुपादप (भृङ्गारु नाम का वृक्ष विशेष)। वृषभ शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं - १. बलीवर्द (साँढ़ बड़ा बैल) २. वैदर्भीरीतिभेद (वैदर्भी नाम की रीति विशेष) ३. आद्यतीर्थङ्कर (प्रथम तीर्थंकर भगवान) ४. श्रेष्ठ (बड़ा-महान) ५. कर्णरन्ध्र (कान का रन्ध्र-छेद-बिल) और ६. अगदान्तर (अगद-रोगनाशक औषध विशेष) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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