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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - वृत्त शब्द | ३०७ का पालन करना) । त्रिलिंग वृत्त शब्द के पाँच अर्थ होते हैं - १ दृढ़ ( मजबूत) २. अतीत ( बीता हुआ ) ३. मृत, ४. अधीत और ५. वर्तुल (गोलाकार) । मूल : कृताssवृतौ च कूर्मे तु पुल्लिगोऽथ स्त्रियामसौ । प्रियंगौ मांस रोहिण्यां रेणुका - झिञ्झिरिष्टयोः ।। १७६२॥ शिरीषे कुब्जके वृत्तपुष्पो वानीर- नीपयोः । वृत्तान्तः, प्रक्रिया - भाव - कात्स्येष्वेकान्तवाचके ॥। १७६३॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग वृत्त शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. कृताऽऽवृति (आवरणघेराव किया हुआ) और २. कूर्म ( कच्छप - काचवा - काछु ) । किन्तु स्त्रीलिंग वृत्ता शब्द के चार अर्थ माने, गये हैं - १. प्रियंगु (प्रियंगु नाम की प्रसिद्ध लता विशेष - ककुनी- टांगुन) २. मांसरोहिणी (मांस रोहिणी नाम की लता विशेष ) ३. रेणुका (हरेणुका रेणुका बीज) तथा ४. झिञ्झिरिष्ट (झिञ्झिरिष्ट नाम का प्रसिद्ध वनस्पति विशेष ) | वृत्तपुष्प शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं - १ शिरीष ( शिरीष नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) २. कुब्जक (टेढ़ा कुब्जा कुबड़ा या कुब्ज नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) ३. वानीर ( बेतस वृक्ष- बेंत) और ४. नीप ( कदम्ब) । वृत्तान्त शब्द पुल्लिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं - १. प्रक्रिया, २. भाव (अभिप्राय ) ३. कार्त्स्य (सारा) तथा ४. एकान्त ( रहस्य निर्जन ) का वाचक प्रतिपादक अर्थ में भी वृत्तान्त शब्द का प्रयोग होता है । मूल : वार्ताप्रभेदे संवादे प्रस्तावेऽवसरे तथा । वृत्तिः स्त्रियां विवरणे जीविकायां प्रवर्तने ॥१७६४॥ कौशिक्यादौ च विधृतौ वार्तायामपि कीर्तिता । वृत्रः पुरन्दरे मेघे सपत्ने दानवान्तरे ।। १७६५ ।। हिन्दी टीका - वृत्तान्त शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं - १. वार्ताप्रभेद ( वार्ता विशेष, समाचार वगैरह ) २. संवाद (सन्देश) ३. प्रस्ताव (प्रस्तावना, पृष्ठभूमि - भूमिका) और ४. अवसर ( मौका ) । वृत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं - १. विवरण (हकीकत या व्याख्या वगैरह ) २. जीविका, ३. प्रवर्तन, ४. कौशिक्यादि ( कौशिकी नाम की नदी विशेष तथा दुर्गा वगैरह ) ५. विधृति (योग या करण ) ६. वार्ता (समाचार) । वृत्र शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. पुरन्दर (इन्द्र) २. मेघ (बादल) ३. सपत्न (शत्रु) और ४. दानवान्तर ( दानव विशेष - वृत्र नाम का असुर) । इस प्रकार वृत्र शब्द के चार अर्थ समझने चाहिए । मूल : शैलभेदेऽन्धकारे च शब्देऽपि कथितः क्वचित् । वृन्तं प्रसवबन्धे स्यादु घटीधारा कुचाग्रयोः || १७६६॥ वृन्दारकः पुंसि यूथपातरि त्रिदशे स्मृतः । त्रिलिंगः सुन्दरे श्रेष्ठे वृशो वासक उन्दरौ ॥१७६७॥ हिन्दी टोका - वृत्र शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. शैलभेद (शैल विशेष - पर्वत विशेष) को भी वृत्र कहते हैं २. अन्धकार (अंधियारा) तथा ३. शब्द को भी वृत्र कहते हैं । वृन्त शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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