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________________ २८ । नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वादर शब्द वार्ता शब्द के चार अर्थ होते हैं- १. वातिङ्गण, २. वृत्ति (टोका) ३. वृत्तान्त और ४. जनश्रुति (किंवदन्ती) । पुल्लिग वार्तावह शब्द का अर्थ-१. वैवधिक (वीवध-अन्नपानवस्त्रादि को लाने ले जाने वाला) होता है और २. संवादवाहक (संवाद-सन्देश का वाहक ले जाने वाला) अर्थ में वार्तावह शब्द त्रिलिंग माना गया है। पुल्लिग वार्तिक शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. प्रवृत्तिज्ञ (प्रवृत्ति को जानने वाला) २. वैश्य (वैश्य जाति) और ३. वर्तिकपक्षी (वटेर नाम का पक्षी विशेष)। मूल: वार्दरं कृष्णलाबीजे काकचिञ्चाऽऽम्रबीजयोः । भारती दक्षिणावर्त - शंखयोः कृमिजे जले ॥१६४७॥ वार्दलं दुर्दिने क्लीवं मसीपात्रे पुमानसौ। वार्द्धकं वृद्धसंघाते वृद्धस्य भावकर्मणोः ॥१६४८।। हिन्दी टोका-वार्दर शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं—१. कृष्णलाबीज (गुंजा मूंगा घुघुची चनूठा का बीज) २. काकचिञ्चा (करजनी-चनौठी) ३. आम्रबीज (आम केरी का बीज - गुठली) ४. भारती (सरस्वती) ५. दक्षिणावर्तशंख, ६. कृमिज (कृमि-क्रीड़ा से उत्पन्न) और ७. जल (पानी) । वार्दल शब्द - १. दुर्दिन (मेघ से ढका हुआ दिन) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. मसीपात्र (मसिधानी) अर्थ में वार्दल शब्द पूल्लिग माना जाता है। वार्द्धक शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं- १. वृद्धसंघात (वृद्धों का संघ) और २. वृद्धस्यभाव (वृद्धत्व) तथा ३. वृद्धस्यकर्म (वार्द्ध क्य) इस प्रकार वार्द्धक शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : बार्हस्पत्यो नास्तिके स्यात् नीतिशास्त्रे नपुंसकम् । वार्यमुक्तं वने क्लीवं वृक्ष सम्बन्धिनि त्रिषु ।।१६४६।। वालकोऽस्त्री पारिहार्ये त्रिलिंगस्त्वङ गुलीयके । चतुष्पथे मन्दिरे च वाध घ्रस्रत्वसौ पुमान् ॥१६५०॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग बार्हस्पत्य शब्द का अर्थ--१. नास्तिक (वेदादि को नहीं मानने वाला) किन्तु २. नीतिशास्त्र अर्थ में बार्हस्पत्य शब्द नपुंसक माना जाता है। नपुंसक वाक्ष्य शब्द का अर्थ१. वन (जंगल) होता है किन्तु २. वृक्ष सम्बन्धी अर्थ में वाय शब्द त्रिलिंग माना गया है। पुल्लिग तथा नपुंसक वालक शब्द का अर्थ-१. पारिहार्य (वलय-कड़ा-कंगण) किन्तु २ अङ्गरीयक (अँगुठी-मुद्रिका) अर्थ में बालक शब्द त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक वाश्र शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. चतुष्पथ (चौराहा) और २. मन्दिर किन्तु ३. घस्र (दिन) अर्थ में वाश्र शब्द पुल्लिग माना जाता है इस तरह वाश्र शब्द के कुल मिलाकर तीन अर्थ माने जाते हैं। मूल : वाष्पो नेत्रजले लोह उष्मण्यपि बुधैः स्मृतः। वासोऽवस्थानगृहयोः सुगन्धौ वासके पटे ॥१६५१।। वासनं धूपने वस्त्रे निक्षेपाधार-वासयोः । तथा ज्ञाने वारिधान्यां वस्त्रसम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६५२॥ हिन्दी टोका-वाष्प शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नेत्रजल (नयन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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