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________________ २८६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-वायसादनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. दुर्गा (पार्वती) और २. सामान्ययोषित् (साधारण स्त्री) को भी वामा कहते हैं । वामी शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१. शृगाली (गीदड़नी) २. करभी (ऊँट की स्त्री जाति ऊँटिन) ३. रासभी (गदही) तथा ४. वडवा (घोड़ो)। वायस शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. अगुरुवृक्ष (अगर का वृक्ष विशेष) २. काक तथा ३. श्रीवास (सरल-देवदारु वृक्ष के गोंद से बना हुआ सुगन्धित द्रव्य विशेष) इस प्रकार वायस शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : महाज्योतिष्मती काकतुण्ड्यो:स्त्री वायसादनी । काकादनी-काकमाची-महाज्योतिष्मतीषु च ॥१६३५।। काकोदुम्बरिकायां च वकवृक्षेऽपि वायसी। वारः समूहेऽवसरे द्वारे सूर्यादिवासरे ॥१६३६।। हिन्दी टीका-वायसादनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं – १ महाज्योतिष्मती (माल कांगड़ी) २ काकतुण्डी (काकतुण्डी नाम की लता औषधि विशेष) ३. काकादनी (काकादनी नाम की लता विशेष) और ४. काकमाचो (मकोय) । १. महाज्योतिष्मती (माल कांगनी) अर्थ वायसी शब्द का भी होता है । वायसी शब्द के और भी दो अर्थ होते हैं-१. काकोदुम्बरिका (कठूमर काला गूलर) और २. बकवृक्ष (बक पुष्प का वृक्ष विशेष)। वार शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. समूह, २. अवसर (मौका) ३. द्वार और ४. सूर्यादिवासर (रवि-सोम-मंगल वगैरह दिन)। मूल : हरे क्षणे कुब्जवृक्षे वारं मैरेयभाजने । वारकोऽश्वविशेषेऽश्वगतौ, त्रिषु निषेधके ॥१६३७॥ नपुंसकं स्यात् ह्रीवेरे कष्टस्थानेऽपि कीर्तितः । सिन्धौ सपत्ने चित्राश्वे पर्णाजीविनि वारकी ॥१६३८॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग वार शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. हर (भगवान शंकर) २. क्षण (पल) ३. कुब्जवृक्ष (टेढ़ा वृक्ष)। नपुंसक वार शब्द का अर्थ-मैरेयभाजन (शराब का बर्तन) होता है। पुल्लिग वारक शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. अश्वविशेष (घोड़ा विशेष) और अश्वगति (घोड़े की चाल) किन्तु ३. निषेधक (निषेध करने वाला) अर्थ में वारक शब्द त्रिलिंग है। किन्तु नपुंसक वारक शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. ह्रीवेर (नेत्र वाला) और २. कष्टस्थान। वारकी शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. सिन्धु (समुद्र या नदो विशेष) २. सपत्न (शत्रु) ३. चित्राश्व (घोड़ा विशेष) और ४. पर्णाजीवी (पर्णपत्ता खाकर ही जीवन निर्वाह करने वाला वगैरह) को भी वारकी कहते हैं । वारकीरस्तु यूकायां वाडवे च जलौकसि । नीराजितहये श्याले वारग्राहिणि तु त्रिषु ॥१६३६।। वारणः कुञ्जरे बाणवारे क्लीवं निषेधने ।। वारिःस्त्री गजबन्धिन्यां सरस्वत्यामुपग्रहे ।।१६४०॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग वारकीर शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. यूका (M-ढील-लीख) २. वाडव (वडवानल और घोड़ियों का झुण्ड वगैरह) ३. जलोकस् (जोंक) ४. नीराजितहय (अत्यन्त प्रशस्त घोड़ा, जिसकी नीराजना-आरती की गयी है) ५. श्याल (शाला-शार) किन्तु ६. वारग्राही (समूह मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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