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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-वातूल शब्द | २८५ वातूलः पुंसि वात्यायां मत्ते वातासहे त्रिषु । वानं शुष्कफले शुष्के वन सम्बन्धिनि त्रिषु ॥१६२८॥ क्लीवं वाटे सुरङ्गायां स्यूतिकर्मणि सौरभे । जलसंप्लुतवातोर्मों तवक्षीरे गतावपि ॥१६२६॥ वानप्रस्थो मधूकद्रौ तृतीयाश्रम-पर्णयोः । वानीरः स्यात् परिव्याधद्रुमे वेतसपादपे ॥१६३०॥ हिन्दी टीका-वातूल शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. वात्या (आंधी) २. मत्त (उन्मत्त-पागल) किन्तु ३. वातासह (वात को सहन नहीं करना) अर्थ में वातूल शब्द त्रिलिंग माना जाता है । नपुंसक वान शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. शुष्कफल (सूखा फल) और २. शुष्क (सूखा) किन्तु ३. वन सम्बन्धी अर्थ में वान शब्द त्रिलिंग माना जाता है । नपुंसक वान शब्द के और भी सात अर्थ माने गये हैं -१ वाट (रास्ता) २. सुरङ्गा (सुरङ्ग) ३. स्यूतिकर्म (सीना) ४. सौरभ (खुशबू) ५. जलसंप्लुतवातोमि (जल से भरा हुआ वायु तरङ्ग) ६. तवक्षीर (तवक्षीर नाम का वृक्ष विशेष) और ७. गति (गमन)। वानप्रस्थ शब्द के तीन अर्थ होते हैं --१. मधूकद्र (मधूक वृक्ष) २. तृतीयाश्रम (वानप्रस्थाश्रम) और ३. पर्ण (पलाश)। वानीर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. परिव्याधद्र म (कठ चम्पा कणिकरि) और २. वेतसपादप (जलबेंत)। मूल : वापितं मुण्डिते बीजाकृते त्रिषु मतं सताम् । वामं वास्तूक-धनयो: क्लीवं पुंसि पयोधरे ॥१६३१॥ महादेवे कामदेवे त्रिषु वल्गु - प्रतीपयोः । सव्येऽधमे वामगते वक्रऽथो वामनो हरौ ।।१६३२।। हिन्दी टीका-वापित शब्द त्रिलिंग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. मुण्डित (मुडाया हुआ) और २. बीजाकृत (बीज बोया हुआ या बीज बोने के लायक तैयार किया हुआ खेत)। वाम शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. वास्तूक (वथुआ) और २. धन, किन्तु पुल्लिग वाम शब्द का अर्थ-३. पयोधर (स्तन या मेघ) होता है। परन्तु त्रिलिंग वाम शब्द के आठ अर्थ होते हैं-१. महादेव (भगवान शंकर) २. कामदेव, ३. वल्गु (सुन्दर) ४. प्रतीप (प्रतिकूल-विपरीत-शत्रु वगैरह) ५. सव्य (वामभाग) ६ अधम (नीच) ७. वामगत (वाम भागवर्ती) और ८ चक्र (टेढा बांका)। वामन १. हरि (भगवान विष्णु) होता है। अङ्कोठपादपे खर्वे स्मृतो दक्षिणदिग्गजे । वामा स्मृतेह दुर्गायां तथा सामान्ययोषिति ।।१६३३।। वामी शृगाल्यां करभी रासभी-वडवासु च । वायसोऽगुरुवृक्षे स्यात् काक-श्रीवासयोरपि ॥१६३४॥ हिन्दो टोका-वामन शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अकोठपादप (अंकोलढरा नाम का वृक्ष) २. खर्व (नाटा, छोटा) तथा ३. दक्षिणदिग्गज (प्रशस्त हाथी विशेष)। वामा शब्द मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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