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________________ २५६ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-मृतक शब्द हिन्दी टोका-मृतक शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१ मरणाशौच (छूतक) २. कुणप (मुर्दा) । मृत्यु शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. यम (यमराज) २. कंस (कृष्ण का मामा) किन्तु ३. प्राणवियोजन (प्राणत्याग) अर्थ में मृत्यु शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार मत्यु शब्द के तीन अर्थ जानना । मृत्युवञ्चन शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं१. शिव (भगवान शङ्कर)२ विल्वद्र म (बेल का वृक्ष) और ३. दण्डकाक (डोम कौवा)। मृदुच्छद शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. भुर्जवृक्ष (भोजपत्र का वृक्ष) २. श्रीताल (श्रीताल नाम का वृक्ष विशेष) और ३. कुक्कुरद्रुम (कुकरौन्हा-गठिवन) इस तरह मृदुच्छद शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : मेघनादस्तु वरुणे स्तनिते रावणात्मजे । मेचक: श्यामले बर्हिचन्द्रिके मेघ धूमयोः ॥१४५८।। मेधावी पण्डिते व्याडौ मदिरा-शुकपक्षिणोः । मेषो राश्यान्तरे मेढे लग्न भेषजभेदयोः ॥१४५६।। हिन्दी टोका-मेघनाद शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं—१. वरुण, २. स्तनित (गर्जन) और ३. सवणात्मज (रावण का लड़का)। मेचक शब्द भी पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. श्यामल (श्याम वर्ण) २. बहिचन्द्रिक (मोर) ३. मेघ और ४. धूम । मेधावी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. पण्डित (विद्वान) २. व्याडि (भगवान पाणिनि का वाचा) ३. मदिरा (शराब) और ४. शुकपक्षी (पोपट शूगा) । मेष शब्द पुल्लिग है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. राश्यन्तर (राशि विशेष-मेष नाम की राशि) २. मेढ़ (शिश्न-मूत्रेन्द्रिय) और ३. लग्न (मेष लग्न) तथा ४. भेषजभेद (औषध विशेष)। मूल : मेहः प्रमेहरोगे स्यान्मेष - प्रस्रावयोरपि । मोचनं कल्कने दम्भे शाम्य कैवल्ययोरपि ॥१४६०॥ कस्तूर्यामजमोदायां मल्लिकायां च मोदिनी। मोहो दुःखे च मूर्छायामविद्यायामपि स्मृतः ॥१४६१।। हिन्दी टीका-मेह शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. प्रमेहरोग, २. मेष (गेटा, मेड़ा) और ३. प्रस्राव (पेशाब)। मोचन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं-१. कल्कन (पाप) २. दम्भ (आडम्बर) ३. शाठ्य (शठता दुर्जनता) और ४. कैवल्य (मोक्ष)। मोदिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कस्तरी २. अजमोदा (अजमाइन-जमानि) और ३. मल्लिका (जही)। मोह शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. दुःख, २. मूर्छा और ३. अविद्या । इस प्रकार मोह शब्द के तीन अर्थ जानना। मूल : मोक्षः पाटलिवृक्षे स्यान्मुक्तौ मृत्यौ च मोचने । मौलिः किरीटे धम्मिल्ले चूडायामनपुंसकम् ॥१४६२।। म्रक्षणं स्नेहने तैले राशीकरण इष्यते । म्लेच्छोऽपभाषणे पापरक्त - पामरभेदयोः ॥१४६३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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