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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मार शब्द | २५३ मानस शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. सरस (तालाब) और २ स्वान्त (हृदय-मन) किन्तु ३. मनोभव (कामदेव) अर्थ में मानस शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार मानस शब्द के तीन अर्थ जानना। माया शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. कृपा (दया-अनुकम्पा) २. पद्मा (लक्ष्मी) ३. कपट (छल) ४. बुद्धमाता भगवान बुद्ध की माता) ५. दुर्गा (पावती) और ६.विष्णमाया (भगवान विष्ण की लीला)। माय शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. पीताम्बर (पीत वस्त्र वाला) और २. असुर (दानव) । इस प्रकार माया शब्द के छह और माय शब्द के दो अर्थ जानना। मूल : मारोऽन्तराये कन्दर्पे धुस्तूरे मारणे मृतौ । मारुण्ड: पथि सर्पाण्डे पुमान् गोमयमण्डले ॥१४४०।। मार्गो मृगमदे मार्गशीर्षमासे गवेषणे। अध्वन्य पाने नक्षत्रे विष्टर-श्रवसि स्मृतः ॥१४४१॥ हिन्दी टीका-मार शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. अन्तराय (विघ्न बाधा) २ कन्दर्प (कामदेव) ३. धुस्तूर (धतूर) ४. मारण (मारना) ५. मृति (मरना)। मारुण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. पथ (मार्ग रास्ता) २. सपण्डि (सर्प का अण्डा) और ३. गोमयमण्डल (गोबर का समूह)। मार्ग शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं-१. मृगमद (कस्तूरी) २. मार्गशीर्ष मास (अग्रहण महीना) ३. गवेषण (ढूंढ़ना) ४. अध्व (मार्ग रास्ता) ५. अपान (पान नहीं करना) ६. नक्षत्र (तारा) और ७. विष्टरश्रवस् (भगवान विष्णु)। इस प्रकार मार्ग शब्द के सात अर्थ समझना । मूल : मार्तण्ड: स्यात् सहस्रांशौ शूकरेऽर्कमहीरहे। मालं क्षेत्रे च कपट वन उन्नतभूतले ॥१४४२।। मालती जातिकुसुमे युवती ज्योत्स्नयो निशि । माला पंक्तौ पुष्पदाम्नि जपमालादिकेऽपि च ॥१४४३।। हिन्दी टोका—मार्तण्ड शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. सहस्रांशु (सूर्य) २. शूकर (शूगर) ३. अर्कमहीरुह (ऑक का वृक्ष)। माल शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. क्षेत्र (खेत वगैरह) २. कपट (छल-छद्म) ३. वन (जंगल) और ४. उन्नत भूमि (ऊँची भूमि)। मालती शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. जातिकुसुम (मोगरा फूल) २. युवती (जवान औरत) ३. ज्योत्स्ना (चांदनी-चन्द्रिका) और ४. निशा (रात)। माला शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं - १. पंक्ति (श्रेणी कतार) २. पुष्पदाम (पुष्पमाला) और ३. जपमालादिक (जप करने की माला वगैरह)। मूल: मालाकारे पक्षिभेदे रजके मालिकः स्मृतः। मिहिरो ऽर्कतरौ सूर्य-चन्द्रे मेघे च मारुते ॥१४४४॥ मीनो राश्यन्तरे मत्स्ये मुकुन्द: केशवे निधौ। मुकुरो मल्लिकापुष्पवृक्षे बकुलपादपे ॥१४४५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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