SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-परमेश्वर शब्द हिन्दी टीका-परमेश्वर शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. नारायण (विष्णु भगवान) २. शिव (महादेव) ३. तीर्थङ्कर (भगवान अर्हन्) । परमेष्ठी शब्द नकारान्त पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. जिन (भगवान अर्हन्) २. ब्रह्म (परमात्मा) और ३. शालग्रामविशेष (शालग्राम)। पुल्लिग परम्पर शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. प्रपौत्रादि (प्रपौत्र वगैरह) २. प्रपौत्रतनय (प्रपौत्र का लड़का-वृद्ध प्रपौत्र) तथा ३. मृग (हरिण)। स्त्रीलिंग परम्परा शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं—१. सन्तान (सन्तान परम्परा) २. परिपाटी और ३. वध (हिंसा)। इस तरह परम्पर शब्द के कुल छह अर्थ जानना । मूल : परक्षेत्रं त्वन्यदेहे परभूमौ परस्त्रियाम् । पराक: क्षुद्र - निस्त्रिश - रोग-जन्तु- व्रतेषु च ।।११६१॥ पराक्रमः समुद्योगे निष्क्रान्तौ विक्रमे बले । परागश्चन्दने रेणौ पुष्परेणू - परागयोः ।।११६२॥ हिन्दी टोका - परक्षेत्र शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. अन्यदेह (परशरीर) २ परभूमि (दूसरे का खेत) तथा ३. परस्त्री (पराई स्त्री)। पराक शब्द भी पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं-१ क्षुद्र (अधम) २. निस्त्रिश (तलवार) ३. रोग (व्याधि) ४. जन्तु (छोटा प्राणी) और ५. व्रत (उपवास वगैरह) । पराक्रम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. समुद्योग, २. निष्क्रांति (निष्क्रमण, निकलना) ३. विक्रम (शूरता) और ४. बल । पराग शब्द के भी चार अर्थ होते हैं-१. चन्दन, २. रेणु (धूलि) ३. पुष्परेणु (फूल का रेणु) और ४. उपराग (ग्रहण, सूर्यग्रहण वगैरह)। मूल : स्वच्छन्दगमने ख्याति स्नानीयद्रव्ययो गिरौ। आश्रये तत्परेऽभीष्ट आसंगे च परायणा ॥११६३॥ परिवारे समारम्भे विवेक - सहकारिणोः । प्रगाढ गात्रिका बन्धे मञ्चे परिकरश्चये ॥११६४॥ हिन्दी टोका-पराग शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं ---१. स्वच्छन्दगमन (स्वेच्छानुसार गमन) २. ख्याति (यश प्रतिष्ठा वगैरह) ३. स्नानीय द्रव्य (स्नान के लिए चूर्ण द्रव्य विशेष) और ४. गिरि (पर्वत) । परायण शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने गये हैं-१. आश्रय (शरण) २. तत्पर (तल्लीन) ३. अभीष्ट (अपना प्रिय) और ४. आसंग (आसक्ति)। परिकर शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ माने जाते हैं - १. परिवार (कुटुम्ब) २. समारम्भ (तैयारी) ३. विवेक (विचार) ४. सहकारी (सहयोग मदद करने वाला) और ५. प्रगाढगात्रिकाबन्ध (अत्यन्त मजबूत शरीर का बन्धन विशेष) ६. मञ्च (मचान) और ७. चय (समूह) इस तरह परिकर शब्द के सात अथ जानना। मूल : परिकर्माऽङ्गसंस्कारे क्लीवं स्यात् सेवके पुमान् । विस्मृते वेष्टिते ज्ञाते प्राप्ते परिगतस्त्रिषु ॥११६५।। परिग्रहः परिजने राहुवक्त्रस्थभास्करे । स्वीकारे शपथे कन्दे सैन्यपृष्ठे स्त्रियामपि ॥११६६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy