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________________ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित-अधस् शब्द हिन्दी टीका-जन्मान्तरीय संस्कार अन्य जन्म के संस्कार को भी अदृष्ट कहते हैं, इसी प्रकार अवीक्षित नहीं देखे हुए पदार्थ को भी अदृष्ट कहते हैं किन्तु इस अवीक्षित अर्थ में मुख्य पदार्थ के अनुसार ही अदृष्ट शब्द का भी लिंग होता है जैसे- अदृष्टः पुरुषः, अदृष्टा नारी, अष्टं वस्तु । इन तीन वाक्यों में क्रमशः पुरुष, नारी और वस्तु शब्दों के पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुसक होने से अदृष्ट शब्द में विशेषण होने के कारण क्रमशः पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग होता है। क्योंकि- "या विशेष्येषु दृश्यन्ते लिंगसंख्या विभक्तयः । प्रायस्ता एव तंव्याः समानाश्रयविशेषणे ॥" इस संस्कृत नियम के अनुसार ही लिंग की व्यवस्था मानी जाती है। अद्वि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-गिरि (पहाड़), २. सूर्य ३. परिमाण (बाँट) विशेष (अद्वैया ढाई सेर) और ४. तरु (वृक्ष-पौधा)। इस प्रकार अदृष्ट शब्द के चार और अद्रि शब्द के भी चार अर्थ समझना चाहिए। मूल : अधोऽव्ययं तलेऽना योनि-पातालयोरपि । अधरस्त्रिषु हीने स्यादधोदेशाधऽरोष्ठयोः ॥ १४ ॥ हिन्दी टोका--अधस् शब्द अव्यय है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. तल (नीचे), २ अनुवं (ऊपर नहीं, अर्थात् भूतल), ३. योनि (उत्पत्ति स्थान) और ४. पाताल (रसातल)। अधर शब्द हीन (न्यून) अर्थ में त्रिलिंग (पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसक) माना जाता है। किन्तु अधोदेश (नीचा भाग) और अधरोष्ठ (नीचे का ओठ) इन दो अर्थों में पुल्लिग माना जाता है। इस प्रकार अधः शब्द के चार और अधर शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल: __ अधिकारः प्रकरणे स्वामित्वे प्रक्रियादिके । तथाऽधिकृतदेशादौ दन्तरोगेऽधिमांसकः ॥ १५ ॥ हिन्दी टीका-अधिकार शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ मुख्य रूप से होते हैं-१. प्रकरण (परिच्छेद) २. स्वामित्व (मालिकपना), ३. प्रक्रिया (प्रारम्भ) और ४. अधिकृत (अपने कब्जे में) वगैरह । अधिमांसक शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-- दन्तरोग (दाँत का रोग) माना जाता है । इस प्रकार अधिकार शब्द के चार और अधिमांसक शब्द का एक अर्थ समझना चाहिए। अधिवासो निवासे स्यात संस्कारे धपनादिभिः । अधिष्ठानं पुरे चक्र प्रभावेऽध्यासने स्थितौ ॥ १६ ॥ हिन्दी टोका-अधिवास शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं—१. निवास (ठहरने का स्थान) और २. धूपन वगैरह (अगर-धूपन-गुग्गल-अगरबत्ती) के द्वारा संस्कार (खुशबू) और अधिष्ठान शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पुरीचक (मूलाधार चक्र) जिस मूलाधार चक्र में कुण्डलिनी भगवती शक्ति विराजमान है । अथवा पुर (नगर) को भी अधिष्ठान कहते हैं क्योंकि अधिष्ठान शब्द का अर्थ निवास स्थान भी माना जाता है और लोग नगर में भी रहते हैं इस प्रकार अधिष्ठान शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं -१. पुर (नगर), २. चक्र (मूलाधार चक्र), ३. प्रभाव (प्रभुत्व सामर्थ्य विशेष), ४. अध्यासन (बैठने का आधारभूत आसन विशेष) और ५. स्थिति (ठहरना)। इस तरह अधिष्ठान शब्द के पाँच अर्थ मूल : हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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