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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अजप शब्द | ३ हिन्दी टीका-अंगना शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. सार्वभौम (चक्रवर्ती राजा), २. दिग्गज-स्त्री (दिग्गज हथिनी) और ३. स्त्री (महिला)। अंस शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. स्कन्ध (कन्धा) और २. विभाग । अघ शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. दुःख (कष्ट), २. एनस् (पाप) और ३. व्यसन ।। अजपस्त्वसदध्येतृच्छागपालकयोर्द्वयोः । __ अतुलस्तिलवृक्ष स्यात्तुलना रहिते त्रिषु ॥ ६ ॥ हिन्दी टीका -अजप शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं --१. असवध्येता (अच्छा नहीं, खराबपढ़ने वाला) और २. छाग-पालक (बकरा का रक्षक, रक्षा अर्थात् पालन करने वाला)। अतुल शब्द तिल वृक्ष (तिल का पौधा) में पुल्लिग है और तुलना (उपमा) रहित अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि तीनों लिंगों में भी तुलना रहित अर्थ हो सकता है। इस प्रकार अजप शब्द के दो और अतुल शब्द के भी दो अर्थ होते हैं। मूल : अत्ययोऽतिक्रमे मृत्यौ दण्डे दोषे कलाकले । अत्याहितं जीवनाशाशून्यकृत्ये महाभये ॥ १० ॥ हिन्दी टीका-अत्यय शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं-१. अतिक्रम (उल्लंघन), २. मृत्यु (मरण), ३ बण्ड (दण्ड देना), ४. दोष और ५. कलाकल (कष्ट) । अत्याहित नपुंसक है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. जीवनाशाशून्यकृत्य (जीवन को आशा रहित कार्य) और २. महामय (अत्यन्त भय)। इस प्रकार अत्यय शब्द के पांच और अत्याहित शब्द के दो अर्थ समझना चाहिए। मूल : मान्ये पूज्ये श्लाघनीये स्मयतेऽत्रभवांस्त्रिषु । अथो अथेत्यव्यये द्वे प्रारम्भे प्रश्नकात्स्ययोः ॥ ११ ॥ हिन्दी टीका-'अत्रभवान्' यह शब्द त्रिलिंग है क्योंकि यह शब्द अत्यन्त आदरणीय व्यक्ति के लिये प्रयुक्त होता है इसलिए पुरुष, स्त्री या अन्य किसी भी अत्यन्त महत्वपूर्ण वस्तु के विषय में भी इस शब्द का प्रयोग हो सकता है । इसीलिए इसको त्रिलिंग माना गया है और यह शब्द १. मान्य २. पूज्य, ३. श्लाघनीय (प्रशंसनीय) और ४. स्मरणीय । इस प्रकार चार अर्थों में इस शब्द का प्रयोग होता है । 'अथो' और 'अथ' ये दो शब्द अव्यय हैं और इनके तीन अर्थ हैं—१. प्रारम्भ (आरम्भ करना), २. प्रश्न (पूछना) और ३. कात्स्न्य (सारा) । इस तरह 'अत्रमवान्" शब्द के चार और 'अयो' 'अय' इन दो अव्यय शब्दों के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : विकल्पे संशये चार्थेऽधिकारेऽनन्तरे शुभे । __ अदृष्टं भागधेये स्याज्जलाग्नि जनिते भये ॥ १२ ॥ हिन्दी टीका-'अयो' और 'अथ' शब्दों के और भी पांच अर्थ होते हैं-१. विकल्प (अथवा), २. संशय (सन्देह), ३. अधिकार (आगे सम्बन्ध), ४. अनन्तर (व्यवधान रहित) और ५. शुभ । अदृष्ट शब्द नपुसक है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. भागधेय (भाग्य या अभाग्य) और २. जल-अग्निजनित-भय (पानी अथवा आग से होने वाला भय-डर) । इस प्रकार महष्ट शब्द के दो अर्थ समझना चाहिये । मूल : . जन्मान्तरीयसंस्कारेऽवीक्षिते वायलिंगभाक् । अद्रिः पुंसि गिरौ सूर्ये परिमाणान्ते च तरौ ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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