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________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–पथ्य शब्द | २०६ आश्रयभूत पत्रिका चिट्ठी) । पत्राङ्ग शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पद्मक (हाथियों के मुख में कमल के समान छोटे-छोटे लाल चिन्ह) २. भूर्ज (भोजपत्र नाम का प्रसिद्ध कागज विशेष) और ३. रक्तचन्दनदारु (रक्त चन्दन की लकड़ी)। पुल्लिग नकारान्त पत्री शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं--१. गिरि (पहाड़) २. बाण (शर) ३. श्येन (बाज पक्षी) ४. वृक्ष, ५. विहंगम (पक्षी) ६. रथिक (रथवाहक) और ७. श्वेतकिणिही (सफेद चिरचीड़ी-चिड़ीहा अपामार्ग) ८. पाचीर (पकाने की कड़ाही) किन्तु इ. पत्रयत (पत्र से युक्त) अर्थ में नकारान्त पत्री शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार पत्रिन शब्द के कुल नौ अर्थ जानना। मूल : पथ्यं त्रिषु हिते क्लीवं सैन्धवेऽथ पुमानसौं । हरीतकोद्रुमे पथ्या वन्ध्या कर्कोटकीद्रुमे ॥११७३॥ चिभिटायां मृगेर्वारौ हरीतक्यामपि स्मृता । पदं शब्दे श्लोकपादे वस्तुनि त्राण-चिह्नयोः ।।११७४॥ हिन्दी टीका-त्रिलिंग पथ्य शब्द का अर्थ-१. हित होता है। और नपुंसक पथ्य शब्द का अर्थ-२. सैन्धव (घोड़ा) होता है। और पुल्लिग पथ्य शब्द का अर्थ-३. हरीतको म (हरे का वृक्ष) होता है । स्त्रीलिंग पथ्या शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. वन्ध्याकर्कोटकीद्रुम (फलरहित कर्कोटकी नाम का वृक्ष विशेष) २. चिभिटा (चिरचीड़ी-चिड़ीहा-अपामार्ग) ३. मृगेर्वारि तथा ४. हरीतकी (हरें)। पद शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ माने गये हैं-१. शब्द, २. श्लोकपाद (श्लोक का चरण) ३. वस्तु और ४. त्राण तथा ५. चिन्ह । व्यवसाये पादचिन्हे प्रदेशेस्थान वाक्ययोः । चरणेऽपि मतं क्लीवं किरणे तु पुमानसौ ॥११७५॥ पद्धतिर्वर्त्मनि श्रेण्यां ग्रन्थे ग्रन्थार्थबोधके । पद्मं स्यात् कमले व्यूहे पद्मकाष्ठौषधौनिधौ ॥११७६।। हिन्दी टीका-पद शब्द के और भी सात अर्थ होते हैं-१. व्यवसाय (उद्योग) २. पादचिह्न, ३. प्रदेश, ४. स्थान ५. वाक्य, ६. चरण (पाद-पैर) तथा ७. किरण । इस किरण अर्थ में पद शब्द पुल्लिग है और व्यवसाय वगैरह छह अर्थों में पद शब्द नपुंसक है। पद्धति शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं१. वर्त्म (रास्ता) २ श्रेणी, ३. ग्रन्थ और ४. ग्रन्थार्थबोधक (ग्रंथार्थ का बोधक)। पद्म शब्द नपुंसक है और उसके भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. कमल, २ व्यूह, ३. पद्मकाष्ठौषधि (पद्मकाष्ठ नाम का औषधि विशेष) और ४. निधि । पद्मके सीसके संख्याभेद - पुष्करमूलयोः । पद्मो दाशरथौ नाग - विशेषे - बलदेवयोः ॥११७७।। पद्मोत्तरात्मजे स्त्रीणां रतिबन्धान्तरे पुमान् । पद्मकं पद्मकाष्ठे स्याद् बिन्दु जालक-कुष्ठ्ययोः ।। ११७८।। हिन्दी टोका-नपुंसक पद्म शब्द के और भी चार अर्थ माने जाते हैं-१. पद्मक (हाथी के मूल : मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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