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________________ २०८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित–पतन शब्द त्रिलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं .. १. विक्रीत (बेचा गया) २. स्तुत (पूजित) ३. व्यवहृत (व्यवहार किया गया) तथा ४. पण्य विक्रय शाला (वस्तु बेचने का घर) और ५. पण्यवीशिका शब्द का अर्थ१. हट्ट (हाट बाजार) होता है। पतंग पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं—१. भास्कर (सूर्य) २. शालि प्रभेद (धान विशेष) ३. शलभ (टिड्डी पतंग) और ४. खग (पक्षी) इस तरह पतंग शब्द का चार अर्थ जानना। मूल : पतनं कल्मषे पाते तथा नीच गतावपि । पताका नाटकांगेऽङ्क केतु-सौभाग्ययोर्ध्वजो ॥११६७।। पतिर्धवे गतौ मूलेऽधिपतौ तु मतस्त्रिषु । पातित्ययुक्त चलिते गलिते पतनाश्रये ॥११६८।। हिन्दी टोका-पतन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. कल्मष (पाप) और २. पात (गिरना) तथा ३. नीचगति (अधः पतन) । पताका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. नाटकांग-(नाटक का एक पताका नाम का अंग विशेष) २. अङ्क (चिन्ह वगैरह) ३. केतु (ध्वजा का कपड़ा) ४. सौभाग्य और ५. ध्वज पताका)। पुल्लिग पति शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. धव (स्वामी) २. गति (गमन) और ३. मूल (आदिकारण) किन्तु ४. अधिपति (मालिक) अर्थ में पति शब्द त्रिलिंग माना जाता है। पति शब्द के और भी चार अर्थ होते हैं-१. पातित्ययुक्त (पतित) २. चलित, ३. गलित और ४. पतनाश्रय । मूल : स्वधर्म विच्युतेऽपि स्यात् पतितः सर्वलिंगभाक् । पत्तनं स्यान्महापुर्यां मृदङ्ग पुटभेदने ॥११६६।। पत्ति: पदातिके नीरे गतौ सेनान्तरे स्त्रियाम् । पत्रं स्याद् वाहने पर्णे पत्रिका-शरपक्षयोः ।।११७०॥ हिन्दी टोका--त्रिलिंग पतित शब्द का अर्थ ---१ स्वधर्मविच्युत (अपने धर्म से रहित) होता है । पत्तन शब्द के तीन अर्थ होते हैं- १. महापुरी (नगर-शहर) २. मृदंग और ३. पुटभेदन (नगर)। पत्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. पदातिक (पैदल सेना) २. नीर (पानी) ३. गति और ४ सेनान्तर (सेना विशेष चतुरंग सेनाओं में पदातिक सेना)। पत्र शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ माने गये हैं.–१. वाहन (सवारी) २. पर्ण (पत्ता) ३. पत्रिका (चिट्ठी) और ४. शरपक्ष (बाण का पक्ष-पंख)। मूल : हैमपत्राकृति द्रव्ये पक्षिपक्षेक्षराश्रये । पत्राङ्ग पद्मके भूर्जे रक्तचन्दनदारुणि ॥११७१।। पत्रां पुमान् गिरौ वाणे श्येने वृक्षे विहंगमे । रथिके श्वेतकिणिही पाच्योः पत्रयुते त्रिषु ॥११७२।। हिन्दी टीका-पत्र शब्द के और भो तोन अर्थ माने जाते हैं-१. हैम पत्राकृति द्रव्य (सुवर्ण पत्र के समान आकृति वाला द्रव्य विशेष) २. पक्षिपक्ष (पक्षी की पाँख) और ३. अक्षराश्रय (अक्षरों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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