SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित -- धर्म शब्द मूल : स्वभावोपमयोः सप्ततन्तूपनिषदोरपि । दानादिकेत्वसौ क्लीवं पुमान् स्याद् भगवज्जिने ॥ ६४० ॥ कृतान्ते सोमपे चापे सत्संगे देवतान्तरे । धर्मराजो जिने दण्डधरे भूपे युधिष्ठिरे ॥ ६४१ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक धर्म शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. स्वभाव ( नेचर - प्रकृति आदत वगैरह ) २. उपमा ( सादृश्य) ३. सप्ततन्तु ( यज्ञ - क्रतु) और ४. उपनिषद् ( वेदान्त, ब्रह्मविद्या) तथा ५. दानादिक (दान पूजन वगैरह ) किन्तु ६. भगवज्जिन (भगवान् जिन ) अर्थ में धर्म शब्द पुल्लिंग माना जाता । धर्मराज शब्द पुल्लिंग है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं -- १. कृतान्त (यमराज) २. सोमप (सोमरस का पान करना वाला) ३. चाप (धनुष ) ४. सत्संग, ५ देवतान्तर ( देवता विशेष ) ६. जिन (भगवान् जिनेश्वर तीर्थङ्कर) और ७. दण्डधर तथा ८. भूप और ६ युधिष्ठिर (युधिष्ठिर धर्म राज ) । मूल : मरीचे धर्मपुर्यां च धर्मपतनमीरितम् । धर्माध्यक्षः प्राड्विवाके कुल - शील- गुणान्विते ॥ ९४२ ॥ धर्षोऽमर्षे प्रगल्भत्वे हिंसायां शक्तिबन्धने । धर्षणि त्यां धर्षणं रति रीढयोः ॥ ६४३ ।। - हिन्दी टीका - धर्मपतन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. मरीच और २. धर्मपुरी । धर्माध्यक्ष शव्द के भी दो अर्थ होते हैं - ३ - प्राडविवाक (वकील) और २. कुल शील गुणान्वित ( सत्कुलीन) । धर्षं शब्द के चार अर्थ हैं - १. अमर्ष ( सहन नहीं करना) २. प्रगल्भत्व ( ढिठाई, अहिंसा) और ४. शक्तिबन्धन । धर्षणि शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. वृषल ( शूद्र) और २. असती (व्यभिचारिणी स्त्री) । धर्षंण शब्द नपुंसक है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. रति ( रति क्रीडा ) और २. रीढ़ (पोठ के मध्य की हड्डी) इस तरह रति शब्द के दो अर्थ जानना चाहिये । मूल : Jain Education International धवः पत्यौ नरे धूर्ते स्वनामख्यात पादपे । धवलश्चीनकर्पूरे वृषश्रेष्ठे द्रुमे ॥ ४४ ॥ शुक्ले रागविशेषेऽसौ त्रिषु सुन्दर - गौरयोः । क्लीवं स्याच्छ्वेतमरिचे धाः स्याद् ब्रह्मणि धारके ॥१४५॥ हिन्दी टीका - धव शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं- १. पति (स्वामी) २. नर (मनुष्य) ३. धूर्त (वञ्चक) और ४. स्वन ( मख्यातपादप (धव नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष पिप्पल) । धवल शब्द भी पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. चीनकपूर (कर्पूर विशेष अत्यन्त स्वच्छ कपूर) २. वृषश्रेष्ठ (श्रेष्ठ बैल - वसहा -- वरद) ३. धवद्र ुम (पिप्पल वृक्ष ) ४. शुक्ल (श्वेत सफेद) एवं ५. राग विशेष (पाउडर) किन्तु ६. सुन्दर और ७. गौर इन दोनों अर्थों में धवल शब्द नपुंसक माना जाता है परन्तु ८. श्वेतमरीच (सफेद मरीच) अर्थ में धबल शब्द नपुंसक माना गया है। धा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. ब्रह्म (परमेश्वर) और २. धारक ( धारण करने वाला) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy