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________________ मूल : नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ग्रामणी शब्द | ६७ और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. केशव (विष्णु भगवान) २. यज्ञ (देवयोनि विशेष) और ३. नापित (नौआ) । इस तरह ग्रामणी शब्द के तीन अर्थ जानने चाहिए। मूल : वारस्त्रियां ग्राम्यनार्यां नीलिकायामपि स्मृता । त्रिलिंगस्तु प्रधाने स्याद् भोगिकेऽधिपतावपि ॥ ५२० ॥ हिन्दी टोका १. वारस्त्री (वेश्या) २. ग्रामनारी (ग्राम को स्त्री, देहाती औरत) ३. नीलिका (नीली) इन तीन अर्थों में भी ग्रामणी शब्द का प्रयोग होता है। किन्तु १. प्रधान (मुख्य) २. भोगिक और ३. अधिपति (स्वामी मालिक) इन तीन अर्थों में ग्रामणी शब्द त्रिलिंग माना जाता है । ग्रामीणः कुक्कुरे ग्राम्यशूकरे वायसे पुमान् । ग्रामोत्पन्ने त्रिलिंगोऽथस्त्रियां पालंक्य नीलयोः॥ ५२१ ।। ग्राम्यो ग्रामेयकेऽश्लीले भण्ड्यादि वचने त्रिषु । ग्रावा पुमान् मेघ शैल-प्रस्तरेषु दृढे त्रिषु ॥ ५२२ ॥ हिन्दी टीका-ग्रामीण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. कुक्कुर (कुत्ता) २. ग्राम्यशूकर (गांवरिया शूकर) और ३. वायस (काक-कौवा) किन्तु ग्रामोत्पन्न (ग्राम में उत्पन्न) अर्थ में तो ग्रामीण शब्द त्रिलिंग माना जाता है। स्त्रीलिंग ग्रामीणा शब्द के तो दो अर्थ कहे गये हैं१. पालंक्य (पालक साक) और २. नील (नोलरङ्ग या गरी)। ग्राम्य शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. ग्रामेयक (ग्राम में होने वाला या रहने वाला इत्यादि) २. अश्लोल (बोभत्स-गम्दा) किन्तु भण्ड्यादि वचन (भण्डी-मजीठा रङ्ग) वगैरह का वाचक । इस अर्थ में तो ग्राम्य शब्द त्रिलिंग माना गया है । ग्रावन शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. मेघ (बादल) २. शैल (पहाड़) और ३. प्रस्तर (पत्थर) किन्तु दृढ़ (मजबूत) अर्थ में तो ग्रावा शब्द त्रिलिंग माना जाता है। इस प्रकार ग्रावन् (ग्रावा) शब्द के चार अर्थ जानना। ग्राहोऽवहारे ग्रहणे शिशुमारेऽपि कीर्तितः। ग्राहको हिस्रविहगे ग्रहीतरि सितावरे ॥ ५२३ ॥ व्याल ग्राहिण्यथो ग्रीष्मो निदाघेऽप्युष्ण आतपे। घटोहस्तिशिरः कूटे कुम्भेराश्यन्तरे स्मृतः ॥ ५२४ ॥ हिन्दो टोका-ग्राह शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. अवहार (घड़ियाल-मगर) २ ग्रहण (ग्रहण करना, लेना) ३. शिशुमार (उद्र-जलचर मकर आदि)। ग्राहक शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. हिंस्रविहग (घातक पक्षी बाज वगरह) २. ग्रहीता (ग्रहण करने वाला), ३. सितावर और ४. व्यालग्राही (सपेरिया, सर्प को पकड़ने वाला) । ग्रीष्म शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. निदाघ (उनाला, गरमो ऋतु) २ उष्ण (गर्मा) और ३. आतप (तड़का, धूप)। घट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. हस्तिशिरः (हाथी का मस्तक कुम्भ) २. कूट (पहाड़ की चोटी) ३. कुम्भ (घड़ा) और ४. राश्यन्तर (कुम्भ राशि) को भी घट कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016062
Book TitleNanarthodaysagar kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherGhasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore
Publication Year1988
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size22 MB
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