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________________ कामधेनु-कायोत्सर्ग जैन पुराणकोश : ८१ (२) वृषभदेव का एक पुत्र । मपु० ४३.६६ (३) वृषभदेव के चौरासी गणधरों में तेरासीवां गणधर । मपु० ४३.६६, हपु० १२.७० (४) एक पद । चौबीस व्यक्ति इस पद के धारक थे। उनमें सर्वप्रथम बाहुबलि है। वे अनुपम सौन्दर्य के धारक थे। भपु० १६.९ कामधेनु-(१) इच्छानुकूल सुख-साधनों की पूरक गाय । मपु० ४६. (२) अभीसिप्त अर्थ प्रदायिनी एक विद्या । जमदग्नि की पत्नी रेणुका को यह विद्या एक मुनि से प्राप्त हुई थी। मपु० ६५.९८ (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६७ कामन-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७२ कामपताका-रंगसेना गणिका की पुत्री । हपु० २९.२६-२७ कामपुष्प-ऊँचे कोट और गोपुर से युक्त और तीन-तीन परिखाओं से आवृत, विजयार्घ पर्वत की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । मपु० १९. ४८, ५३ कामबाण-काम के पांच बाण-तपन, तापन, मोदन, विलापन और मरण | मपु० ७२.११९ कामराशि-रावण का एक योद्धा । पपु० ५७.५४-५६ कामरूप----भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक देश (असम)। मपु० २९.४२ कामरूपिणी-(१) इस नाम की एक मुद्रिका । इसे प्रद्युम्न ने राजकुमार सहस्र वक्त्र से प्राप्त का थी। मपु० ७२.११५-११७ (२) विद्याधरों की एक विद्या । मपु० ६२.३९१ कामलता-अवन्ती नगरी की एक वेश्या । पपु० ३३.१४६ कामवृष्टि-भरतेश का इस नाम का एक गृहपति-रत्न । मपु० ३७. ८३-८४, १७६ हरिवंश पुराण में इसे कामदृष्टि नाम दिया गया है। हपु० ११.२८ कामशास्त्र-काम पुरुषार्थ का विवेचक शास्त्र । मपु० ४१.१४३ कामशुद्धि-काम-रहित वृत्ति, जितेन्द्रियता, स्वदार-सन्तोष । मपु० जन्मभूमि । मपु० ५९.१४, २१, पपु० २०.४९, ८५.८५ दसवें, ग्यारहवें और बारहवें चक्रवर्ती यहीं जन्मे थे। राम आदि के गुरु एर भी इसी नगर के निवासी थे । पपु० २०.१८५-१९२, २५.४१-५९ काम्पिल्या-राजा द्रुपद की नगरी, द्रौपदी की जन्मभूमि । मपु०७२.१९८ काम्बोज-भरतेश के भाई द्वारा छोड़ा गया भरतक्षेत्र के उत्तर आर्य खण्ड में स्थित (काबुल का पार्श्ववर्ती) एक देश । यहाँ के अश्व प्रसिद्ध थे। मपु० १६.१४१-१४८, १५६, ३०.१०७, हपु० ११.६६-६७ कृष्ण के समय में लोग इसे इसी नाम से जानते थे। हपु० ५०.७२ ७३ महावीर की विहारभूमि । हपु० ३.३-७ काय-पंचभूतात्मक प्रतिक्षण परिवर्तनशील शरीर । मपु० ६६.८६ कायक्लेश-छः बाह्य तपों में एक प्रधान एवं कठोर तप । इसमें शारीरिक दुःख के सहन, सुख के प्रति अनासक्ति और धर्म की प्रभावना के लिए शरीर का निग्रह किया जाता है। योगी इसीलिए वर्षा, शीत और ग्रीष्म तीनों कालों में शरीर को क्लेश देते हैं । ऐसा करने से सभी इन्द्रियों का निग्रह हो जाता है और इन्द्रिय-निग्रह से मन का भी निरोध हो जाता है । मन के निरोध से ध्यान, ध्यान से कर्मक्षय और कर्मों के क्षय से अनन्त सुख की प्राप्ति होती है । मपु० २०.९१, १७८-१८०, १८३ यह भी कहा गया है कि शारीरिक कष्ट उतना ही सहना चाहिए जिससे संक्लेश न हो, क्योंकि संक्लेश हो जाने पर चित्त चंचल हो जाता है और मार्ग से भी च्युत होना पड़ता है अतः जिस प्रकार ये इन्द्रियाँ अपने वश में रहें, कुमार्ग की ओर न दौड़ें उस प्रकार मध्यमवृत्ति का आश्रय लेना चाहिए। मपु० २०.६, ८, पपु० १४.११४-११५, वीवच० ६.३२-४१ कायगुप्ति-किसी के चित्र को देखकर मन में विकार का उत्पन्न न होना, शरीर की प्रवृत्ति को नियमित रखना । मपु० २०.१६१, पापु० कामहा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६७ कामाग्नि-(१) आत्मयज्ञ सम्पन्न करने के लिए जिन तीन अग्नियों का शमन किया जाता है वे है-क्रोधाग्नि कामाग्नि, और उदराग्नि । इनमें कामाग्नि का शमन वैराग्य की आहुति से होता है। मपु० ६७.२०२ (२) रावण का एक योद्धा । पपु० ५७.५४-५६ कामारि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६५ कामावर्त-रावण का एक योद्धा । पपु० ५७.५४-५६ कामितप्रद–सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. कायनियन्त्रण-अहिंसावत की पाँच भावनाओं में एक भावना। इसे कायगुप्ति भी कहते हैं । मपु० २.७७, २०.१६१ कायबल-मनोबल, वचनबल और कायबल इन तीन ऋद्धियों में एक ऋद्धि । वृषभदेव इन तीनों ऋद्धियों के धारक थे। मपु० २.७२ कायमान–तम्बू । मपु० २७.१३२ काययोग-काय के निमित्त से आत्मप्रदेशों का संचार । यह सात प्रकार का होता है-औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिककाययोग, वैक्रियिक मिश्रकाययोग, आहारककाययोग, आहारकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग । मपु० ६२.३०९-३१० कायिकी क्रिया-दुर्भाव से युक्त होकर उद्यम करना । हपु० ५८.६६ कायोत्सर्ग-ध्यान का एक आसन । इसमें शरीर के समस्त अंग सम रखे जाते हैं और आचारशास्त्र में कहे गये बत्तीस दोषों का बचाव किया जाता है। पर्यकासन के समान ध्यान के लिए यह भी एक सुखासन है । इसमें दोनों पैर बराबर रखे जाते है तथा निश्चल खड़े रहकर एक निश्चित समय तक शरीर के प्रति ममता का त्याग किया जाता है। मपु० २१.६९-७१, हपु० ९.१०१-१०२, १११, २२.२४, ३४.१४६ काम्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६७ काम्पिल्य-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का एक नगर, तीर्थंकर विमलनाथ की Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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