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________________ कनकपुंगव-कनकशान्ति कनकपुगव-भविष्यत् कालीन पाँचवाँ कुलकर । मपु० ७६.४६४, हपु० ६०.५५५ कनकपुंजश्री-विद्याधर नमि की पुत्री, कनकमंजरी की बहिन । हपु० २२.१०८ कनकपुर-विजयाधं पर्वत की उत्तरश्रेणी एवं दक्षिणश्रेणी में स्थित इसी नाम के दो नगर । मपु०६३.१६४-१६५, पपु० १५.३७ कनकप्रभ-(१) कुण्डलगिरि पर्वत की पूर्व दिशा में स्थित कूट । यह महाभुज देव की निवासभूमि था । हपु० ५.६९१ (२) भविष्यत् कालीन दूसरा कुलकर। मपु० ७६.४६३, हपु० जैन पुराणकोश : ७१ (५) विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित चन्द्रपुर नगर के राजा महेन्द्र और उसकी भार्या अनुन्दरी'अनुन्धरी की पुत्री। मपु० ७१.४०५-४०६, हपु० ६०.८१ (६) चम्पा नगरी के निवासो कुबेरदत्त की पत्नी, कनकधी की जननी । मपु० ७६.४६-५० (७) अमलकण्ठ नगर के राजा कनकरथ की पत्नी । मपु० ७२.४१ (८) राजा कालसंवर की रानी । हपु० ४३.४९ (९) पृथिवीनगर के राजा पृथु और उसकी रानी अमृतवती की पुत्री । राजा वनजंघ ने सीता के पुत्र मदनांकुश के लिए इसको राजा पृथु से चाहा था । निषेध करने पर वनजंघ ने पृथु को युद्ध में पराजित किया और इसका विवाह मदनांकुश के साथ हुआ। पपु० १०१. (१०) राजा प्रजापाल की रानी। इसने अपने पति के साथ शीलगुप्त मुनि से संयम धारण किया था। मपु० ४६.४९ कनकमालिका-चीतशोक नगर के राजा चक्रध्वज की रानी, कनकलता और पद्मलता की जननी । मपु० ६२.३६५ कनकमालिनी-गिरिनगर के राजा चित्ररथ की रानी । हपु० ३३.१५० कनकमेखला-मेघदल नगर के राजा सिंह की रानी, कनकावती की जननी । हपु० ४६.१४, १५ कनकरथ-(१) पद्म देश के कान्तपुर नगर का स्वामी, कनकप्रभा का पति तथा कनकप्रभ का पिता । मपु० ४७.१८१ (२) अश्वपुर नगर का स्वामी । मपु० ६२.६७ . (३) अमलकण्ठ नगर का राजा । मपु० ७२.४०-४१ कनकराज-भविष्यत् कालीन तीसरा कुलकर। मपु० ७६.४६४, हपु० (३) विदेह के मंगलावती देश संबंधी विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित नगर । मपु० ७४.२२०-२२१, वीवच० ४.७३-७५ (४) सनत्कुमार स्वर्ग का विमान । मपु० ६७.१४६ (५) मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर का राजा । कनकमाला इसकी रानी और पद्मनाभ इसका पुत्र था। इसने मनोहर वन में श्रीधर मुनि से धर्म का स्वरूप सुनकर पुत्र को राज्य दे दिया था और संयम धारण कर लिया था। मपु० ५४.१३०-१३१, १४३ (६) पद्म देश के कान्तपुर नगर के स्वामी कनकरथ और उसकी रानी कनकप्रभा का पुत्र । मपु० ४७.१८०-१८१ (७) एक विद्याधर । इसी विद्याधर की विभूति देखकर मुनि प्रभासनन्द ने देव होने का निदान किया था । पपु० १०६.१६५-१६६ (८) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १९७ कनकप्रभा-(१) राजा मरुत्वान् की पुत्री, रावण से विवाहिता । विवाह के एक वर्ष बाद इसके कृतचित्रा नाम की पुत्री हुई थी । पपु० ११.३०४-३१० (२) पद्म देश के कान्तपुर नगर के स्वामी कनकरथ की रानी, कनकप्रभ की जननी । मपु० ४७.१८१ (३) मथुरा के राजा चन्द्रप्रभ की द्वितीय रानी, अचल की जननी। पपु० ९१.१९-२१ (४) ललितांगदेव की चार महादेवियों में दूसरी महादेवी। मपु० ५.२८३ कनकप्राकार-समवसरण का चाँदी के चार गोपुरों से समन्वित स्वर्णाभा से युक्त कोट । हपु० ५७.२४ कनकमंजरी-नमि की पुत्री, कनकपुंजश्री की बहिन । हपु० २२.१०८ कनकमाला-(१) मंगलावतो देश के स्थित रत्नसंचय नगर के राजा कनकप्रभ की प्रिया, पद्मनाभ की जननी । मपु० ५४. १३०-१३१ (२) मंगलावती देश के रत्नसंचयपुर नगर के राजा क्षेमंकर की रानी । पापु० ५.११-१२ (३) मंगलावतो देश के ही कनकप्रभ नगर के राजा कनकपुंख को प्रिया, कनकोज्ज्वल की जननी । मपु०७४.२२२, वीवच० ४.७२-७६ (४) शिवमन्दिर नगर के राजा मेघवाहन की पुत्री, कनकशान्ति की भार्या । मपु० ६३.११६-११७ कनकलता-(१) चक्रध्वज और कनकमालिनी की पुत्री । मपु० ६२.३६५ (२) चम्पा नगरी के राजा श्रीषेण और उसकी रानी धनश्री की पुत्री । यह अपने फूफा के पुत्र महाबल के साथ सम्बद्ध हो गयी थी। महाबल के पिता ने इन दोनों को घर से निकाल दिया था। अंत में सर्प-दंश से इसके पति महाबल का प्राणान्त हो जाने पर इसने भी असि-प्रहार से आत्मघात कर लिया था। मपु० ७५.८१-९३ (३) ललितांग देव की चार महादेवियों में तीसरी महादेवी । मपु० ५.२८३ कनकवती-कनकोज्ज्वल की पत्नी। मपु० ७४.२२२, वीवच० १.७२ ७६ दे० कनकोज्ज्वल कनकशान्ति-जम्बुद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा सहस्रायुध और रानी श्रोषणा का पुत्र । इसकी दो रानियाँ थीं जिनमें विजया की दक्षिणश्रेणी में शिवमन्दिर नगर के राजा मेघवाहन और रानी विमला को पुत्री कनकमाला इसकी बड़ी रानी थी और वस्तोकसार नगर के राजा समुद्रसेन विद्याधर की पुत्री वसन्तसेना छोटी रानी। एक समय यह अपनी दोनों रानियों के साथ वन-विहार के लिए गया या । वहाँ मुनि विमलप्रभ से तत्त्वज्ञान प्राप्तकर इसने दीक्षा धारण कर ली थी और इसके दीक्षित होने पर इसकी Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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