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________________ ३६ : जैन पुराणकोश अर्जुनवृक्ष-अर्धस्वर्गोत्कृष्ट जैसी दृष्टि थी। युधिष्ठिर के दुर्योधन से जुआ में पराजित होने पर मनोवांछित सांसारिक सुख का दाता है। इसके त्याग से मुक्ति प्राप्त युधिष्ठिर के साथ सपत्नीक इसे भी भाइयों के साथ बारह वर्ष तक होती है । मपु० २.३१-३३, हपु० ९.१३७, पापु० ८३.७७, वीवच० का अज्ञातवास करना पड़ा था। द्वारका में सुभद्रा के साथ कृष्ण के परामर्श से इसका दूसरा विवाह हुआ था। दावानल नामक ब्राह्मण २. अग्रायणीपूर्व की चौदह वस्तुओं में आठवीं वस्तु । हपु० वेषी देव से इसे अग्नि, जल, सर्प, गरुण, मेघ, वायु नाम के बाण १०.७७-८० दे० अग्रायणीयपूर्व तथा मर्कट चिह्न से युक्त रथ प्राप्त हुए थे । अभिमन्यु सुभद्रा का पुत्र ___ अर्थज सम्यक्त्व-सम्यक्त्व का आठवां भेद, अपरनाम अर्थोत्पन्न सम्यक्त्वथा। अज्ञातवास की अवधि पूर्ण होते ही कौरवों के साथ युद्ध हुआ द्वादशांग श्रुत रूप समुद्र का अवगाहन करके और वचन-विस्तार को था। युद्ध में कर्ण और दुःशासन इससे पराजित हुए थे। भीष्म छोड़कर अर्थ मात्र का अवधारण करने से उत्पन्न श्रद्धा। मपु० पितामह का धनुष भी इसी ने छेदा था। अश्वत्थामा को इसने ही ७४.४३९-४४०, ४४७, वीवच० १९.१५८ दे० सम्यक्त्व मारा था। इसका पुत्र अभिमन्यु जयाद्रकुमार द्वारा मारा गया था। अर्थपद-पद तीन प्रकार के होते है-अर्थपद, प्रमाणपद और मध्यमपद । पुत्र-मरण से दुखी सुभद्रा के आगे इसने जयार्द्रकुमार का सिर न काट ___इनमें अर्थपद एक से सात अक्षर का होता है । हपु० १०.२२-२३ सकने पर अग्नि में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा की थी। प्रतिज्ञानुसार ____अर्थशास्त्र-विद्वत्ता, आर्थिक समृद्धि और उत्तम संस्कारों के लिए पठइसने शासनदेव से प्राप्त बाण से जयाद्रकुमार का मस्तक काटकर नीय शास्त्र । वृषभदेव ने भरत को अर्थशास्त्र पढ़ाया था। मपु० तप करते हुए उसके पिता की अंजलि में फेंका जिससे वह भी १६.११९, ३८.११९ तत्काल ही भूमि पर गिर गया । युद्ध के अठारहवें दिन इसने कर्ण से अर्थसिद्धा-तीर्थकर अभिनन्दननाथ द्वारा व्यवहृत पालकी । हपु० युद्ध किया और दिव्यास्त्र से उसका मस्तक काट दिया । दूसरे पूर्वभव ६०.२२१ में यह सोमभूमि नामक ब्राह्मण और पहले पूर्वभव में अच्युत स्वर्ग में अर्थस्वामिनी-धनमित्रा की पुत्री। यह नागदत्त की छोटी बहिन और देव हुआ था । वहाँ से च्युत होकर युधिष्ठिर का अनुज हुआ । पूर्वभव उज्जयिनी नगर-निवासी सेठ धनदेव की भार्या थी। मपु० में इसने विधिपूर्वक चरित्र का पालन किया था। इससे वह प्रसिद्ध ७५.९५-९७ धनुर्वेदज्ञ हुआ । पूर्वभव में इसका नागश्री से स्नेह था। वहीं इस अर्धगुच्छ—एक हार। इसमें मोतियों की चौबीस लड़ियाँ होती हैं। भव में द्रौपदी हुई और उसकी पत्नी बनी । अन्त में इसमे मुनि होकर ___मपु० १६.६१ आराधनाओं की आराधना की थी। दुर्योधन के भानजे कुर्यधर ने अर्धचक्रवर्ती-१६ चक्रवर्ती की अर्ध सम्पदा का स्वामी । मपु० १६.५७, वरवश शत्रुजय गिरि पर ध्यानस्थ पाँचों पाण्डवों को तप्त लौह के २३.६० आभूषण पहनाये थे । युधिष्ठिर भीम और यह तीनों अनुप्रेक्षाओं का अर्धचन्द्र-एक बाण । अनन्तसेन द्वारा जयकुमार पर आक्रमण होने के चिन्तन करते रहे, ध्यान से किंचित् भी विचलित न हुए । फलस्वरूप समय देवयोनि को प्राप्त उसके मित्र के द्वारा यह उसे दिया गया समस्त कर्मों का विनाश कर तीनों ने मोक्ष प्राप्त किया । मपु० १०. था। मपु० ४४.३३४-३३५ १९९-२६९, हपु० ४५.१-५७, १२०-१५०, ४६.१-६, ४७.२-३ (२) राम का योद्धा । पपु० ५८.२१-२३ पापु० ८.१७०-१७२, २१३-२१५, १०.१६३-१८०, १९९-२६९, अर्घनारीस्वर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० १५.१०९-११४, १६.३०-७०, १०१, १८.८४-१४२, २६१-२६३, २५.७३ २०.३०-३६, ६२-६३, ८१-९३, १७४-१७६, २४.७४-७६, ८७- अर्धमण्डलेश्वर-चार चवर का स्वामी राजा। मपु० २३.६० ८८, २५.१०, ५२-१३७ अर्घमाणव-हार । इसमें दस लड़ियाँ होती है । मपु० १६.६१ अर्जुनवृक्ष-लक्ष्मण और उनकी रानी वनमाला का पुत्र । पपु० ९४.३३ अर्धमागधी-सब भाषाओं में परिणमनशील भाषा । यह भाषा सर्व अक्षरअर्जनी-विजयाध पर्वत की उत्तरवेणी का एक नगर । मपु० १९.७८, रूप, दिव्य अंगवाली, समस्त अक्षरों की निरूपक, सभी को आनन्द ८७ दे० विजया देनेवाली और सन्देह नाश करनेवाली है। इस भाषा में तीर्थंकरों ने धर्म अर्णव-(१) आठवें बलभद्र पद्म (राम) के पूर्वजन्म सम्बन्धी दीक्षा- और तत्वार्थ को प्रकट किया है । हपु० ३.१६, वीवच० १९.६२-६३ गुरु । पपु० २०.२३५ अर्घबर्बर-विजया पर्वत के दक्षिण और कैलाश पर्वत के उत्तर की ओर (२) विद्याधरों का स्वामी, महारथी, विद्या-वैभव से सम्पन्न राम का मध्य में स्थित असंयमी और म्लेच्छों द्वारा सेवित देश । पपु० सहायक । पपु० ५४.३५-३६ २७.५-६ अर्त-पाँचवीं धूमप्रभा पृथिवी का नगराकार चतुर्थ इन्द्रक बिल । हपु० अर्धरथ-किसी दूसरे के साथ रथ पर बैठकर युद्ध करनेवाला योद्धा । ४.८३ ___हपु० ५०.८४-८५ अर्थ-(१) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में दूसरा अर्धस्वर्गोत्कृष्ट-महाबुद्धि और पराक्रमधारी अमररक्ष के पुत्रों द्वारा पुरुषार्थ । यह धर्म का फल है। यह चंचल है, कष्ट से प्राप्य और बसाये गये दस नगरों में एक नगर । पपु० ५.३७१-३७२, ६.६६-६८ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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