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________________ ३४ : जेन पुराणकोश अरिष्वंती-अर्क (३) पूर्व विदेह क्षेत्र के महाकच्छ देश का एक नगर । मपु० प्रीतिकर प्रयत्न करने पर भी उसे मार न सका था क्योंकि वह दिखायी देकर भी मल में ही शीघ्र प्रवेश कर जाता था। पपु० ७७. ५७-७० (७) विजयार्घ पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित किन्नरोद्गीत नगर के स्वामी अचिमाली विद्याधर के दीक्षागुरु । हपु० १९.८०-८२ (८) राजा विनमि का पुत्र । हपु० २२.१०५ अरिष्वंसी-इस नाम की एक विद्या । यह विद्या रावण को प्राप्त थी। पपु० ७.३२९-३३२ अरिमर्दन-द्विपवाह के बाद हुआ लंका का राक्षसवंशी राजा । यह माया और पराक्रम से सहित, विद्या, बल और महाकान्ति का धारी और विद्यानुयोग में कुशल था । पपु० ५.३९६-४०० अरिषड्वर्ग–अन्तरंग के छः शत्रु-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य । हपु० १७.१ अरिष्ट-(१) ब्रह्मलोक के निवासी, शुभलेश्या एवं महाऋद्धिधारी लौकान्तिक देव । ये अभिनिष्क्रमण कल्याणक में तीर्थंकरों को सम्बोधने के लिए भूतल पर आते हैं। मपु० १७.४७-५०, वीवच० १२.२-८ (२) कृष्ण की शक्ति का परीक्षक एक असुर। मपु० ७०.४२७ (३) दक्षिण दिशा के स्वामी यम का विमान । हपु० ५.३२५ (४) रुचकवर नामक तेरहवें द्वीप के रुचकवर नाम के गिरि की पूर्व दिशा में स्थित आठ कुटों में इस नाम का एक कूट । इस कूट पर अपराजिता देवी निवास करती है । हपु० ५.७०५ (५) ब्रह्म युगल का प्रथम इन्द्रक विमान । हपु० ६.४९ दे० ब्रह्म (६) मद्यांग जाति के वृक्षों से प्राप्त होनेवाला रस । मपु० ९.३७ अरिष्टनगर-जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश का एक नगर, तीर्थंकर शीतलनाथ की प्रथम आहारस्थली । मपु० ५६. ४६, ७१.४०० अरिष्टनेमि-(१) हरिवंश में उत्पन्न बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ । इन्हें यह नाम इन्द्र द्वारा दिया गया था। राजा समुद्रविजय इनके पिता थे। पपु० १.१३, हपु० १.२४, ३४.३८, ३८.५५, ४८.४३ दे० नेमिनाथ (२) हरिवंशी नृप महोदत्त का ज्येष्ठ पुत्र, कुमार मत्स्य का अग्रज । मत्स्य ने अपना राज्य भी अन्त में इसे सौंप दिया था। पु० १७.२९-३१ अरिष्टपुर-(१) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक नगर । रोहिणी का। १ क आयखण्ड का एक नगर। रोहिणी का जन्म यहीं हुआ था। यह तीर्थंकर अनन्तनाथ के पूर्वभव की राजधानी थी। इसी नगर में रोहिणी ने स्वयंवर में वसुदेव का वरण किया था । राजा हिरण्याभ इसी नगर का नृप था। इसको पुत्री पद्मावती को कृष्ण ने विवाहा था। मपु०७०.३०७, पपु० २०.१४-१७, ३९. १४८, हपु० ३१.८, ४१-४३, ४४.३७-४३, पापु० ११.३१-३५ (२) जम्बूद्वीप की सीता नदी के उत्तरी तट पर स्थित कच्छकावती देश की राजधानी । मपु० ६३.२०८-२१३, हपु० ६०.७५ अरिष्टसेन-(१) भविष्यकालीन बारहवां चक्रवर्ती । मपु० ७६.४८४, हपु० ६०.५६५ (२) तीर्थकर धर्मनाथ के मुख्य गणधर । मपु० ६१४४, हपु० ६०.३४८ अरिष्टा-(१) घातकीखण्ड द्वीप के पूर्व मेरु से उत्तर की ओर स्थित एक नगरी । यह महाकच्छ देश की राजधानी थी। अपर नाम अरिष्टपुर । मपु० ६०.२, ६३.२०८-२१३ (२) धूमप्रभा पृथिवी का अपर नाम । हपु० ४.४४-४६ अरिसंज्वर-एक देव । इसने रावण और सहस्रार के पुत्र इन्द्र विद्याधर के बीच हुए युद्ध में इन्द्र का साथ दिया था। पपु० १२.२०० अरिसंत्रास-राक्षसवंशी नृप । बृहत्कान्त के पश्चात् लंका का राज्य इसे ही प्राप्त हुआ था। यह विद्या, बल, और महाकान्ति का धारी था। पपु० ५.३९८-४०० अरिसूदन-भरतक्षेत्र की गान्धारी नगरी के राजा भूति का पौत्र, योजनगन्धा का पुत्र । कलमगर्भ मुनिराज के दर्शन करने से उत्पन्न पूर्व-जन्म-स्मरण के कारण यह विरक्त हो गया था। यह जिनदीक्षा पूर्वक मरणकर शतार स्वर्ग में देव हुआ। पपु० ३१.४६-४७ अरिहा-भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.४० अरुण-(१) मध्य लोक का नवम द्वीप। इसे अरुणसागर घेरे हुए है। अरुण और अरुणप्रभ देव इसके स्वामी है । हपु० ५.६१७, ६४५ (२) मध्य लोक का नवम सागर । यह अरुण द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है। सुगन्ध और सर्वगन्ध नाम के देव इसके स्वामी हैं । हपु० ५.६१७, ६४६ (३) विजयावान् पर्वत का निवासी व्यन्तर देव । हपु० ५.१६११६४ (४) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों के इकतीस पटलों में छठा पटल । हपु० ६.४४-४७ (५) पंचम स्वर्ग के लौकान्तिक देवों का एक भेद । मपु० १७. ४७-५०, हपु०५५.१०१, वीवच०१२.२-८ (६) एक ग्राम । यहाँ कपिल का आश्रम था। राम वनवास के समय यहाँ आये थे । पपु० १.८३, ३५.५-७ (७) विजयाध पर्वत पर स्थित नगर । पपु० १७.१५४ अरुणप्रभ-नवम द्वीप अरुण का स्वामी एक देव । हपु० ५.६१७, ६४५ अवणा-भरतक्षेत्र के पूर्व खण्ड की एक नदी । मपु० २९.५० अरुणोद्भास-मध्यलोक का दसवाँ द्वीप । इसे अरुणोद्भाससागर घेरे हुए है। हपु० ५.६१७ अर्क-(१) राजा वसु का चौथा पुत्र । बृहद्वसु, चित्रवसु और वासव इसके बड़े भाई तथा महावसु, विश्वावसु, रवि, सूर्य, सुवसु और बृहद्ध्वज छोटे भाई थे । हपु० १७.३६-३७,५७-५९ (२) ब्रह्म स्वर्ग का देव । हपु० ५५.१०१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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