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________________ ४३४ : जैन पुराणकोश सहस्रवक्त्र – एक नागकुमार इसने प्रयम्नकुमार को मकरचिह्न से चिह्नित ध्वजा, चित्रवर्णं धनुष, नन्दक खड्ग और कामरूपिणी अंगूठी दी थी । मपु० ७२.११५-११७ सही (१) सोर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम म २५,१२१ ( २ ) धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिम विदेहक्षेत्र में हुआ एक राजा । इसने वन में किसी केवली से अपने दोनों सेवकों के साथ दीक्षा ले ली थी। दोनों सेवक तप कर स्वर्ग गये और इसने मोक्ष प्राप्त किया। पपु० ५.१२८- १३२ सहस्राक्ष - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२१ सहस्रानीक - विनमि विद्याधर के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु० २२.१०५ सहस्रान्तक — एक शूलरत्न । चमरेन्द्र ने यह शूलरत्न राजा मधु को भेंट में दिया था । पपु० १२.६७ सहस्रायुधजम्बूद्वीप में पूर्वविदेहक्षेत्र के रत्नसंचय - नगर के राजा क्षेमंकर का पौत्र तथा चक्रवर्ती वज्रायुध का पुत्र । लक्ष्मीमती इसकी माता, श्रीषेणा रानी और कनकशान्त पुत्र तथा कनकमाला पुत्रवधू थी । इसका यह पुत्र दीक्षित हो गया था। पिता के दीक्षित होने के पश्चात् यह भी शतबली को राज्य सौंपकर पिहितास्रव मुनि के पास दीक्षित हुआ और वैभार पर्वत पर संन्यासमरण कर ऊर्ध्वग्रैवेयक के सौमनस विमान में ऋद्धिधारी देव हुआ । मपु० ६३.३७-३९, ४५४६, ११६-११७, १२३, १३८-१४१, पापु० ५.५०-५२ सहार (१) बार स्वर्ग १० १०५.१६६-१६९, ह० ४.११, ६, १८, ०५.११७ (२) एक विमान । सहस्रार इन्द्र इसी विमान में रहता है । मपु० ५९.१० (३) अलंकारपुर के राजा अशनिवेग का पुत्र । अशनिवेग इसे राज्य देकर निर्ग्रन्थ हो गया था । पपु० ६.५०२-५०४ (४) रथनूपुर का एक विद्याधर राजा । इसकी रानी मानससुन्दरी थी । गर्भावस्था में पत्नी को स्वर्गीय सुख भोगने का दोहद होने के कारण इसने अपने इस पुत्र का नाम इन्द्र रखा था। इस पुत्र ने लंका के राजा रावण के दादा माली को युद्ध में मार डाला था। इस प्रकार पुत्र का रावण से विरोध होने पर इसने पुत्र को रावण से सन्धि करने के लिए कहा था । सन्धि न करने के कारण रावण ने "इसे बाँध लिया था जिसे इसके निवेदन करने पर ही रावण ने मुक्त किया था । पपु० ७.१-२, १८, ८८, १२.१६८, ३४६-३४७, १३.३२ - सहलान - ( १ ) मलय देश के भद्रिलपुर नगर का एक वन । तीर्थंकर नेमिनाथ ने इसी वन में दीक्षा ली थी। पु० ५९.११२, पापु० २२.४५ (२) अयोध्या नगरी का एक वन । यहाँ मुनिराज विमलवाहन का एक हज़ार मुनियों के साथ आगमन हुआ था। राजा मधु और Jain Education International सहस्रवक्त्र - सागर उसके भाई कैटभ ने इन्हीं से दीक्षा ली थी । हपु० ४३.२००-२०२ (३) अरिष्टपुर नगर का वन । रानी सुमित्रा के पति राजा वासव मुनि सागरसेन से यहाँ दीक्षित हुए थे । हपु० ६०.७६-८५ (४) पुष्करार्ध द्वीप में सुकच्छ देश के क्षेमपुर नगर का वन । क्षेमपुर के राजा नलिनप्रभ ने अनन्त मुनि से धर्मोपदेश सुनकर इसी वन में दीक्षा ली थी। मपु० ५७.२, ८ (५) भरतक्षेत्र में कुरुजांगल देश का वन । यहाँ तीर्थंकर शान्तिनाथ ने दीक्षा ली थी । मपु० ६३.३४२, ४७०, ४७६ सहायवन -- भरतक्षेत्र का एक वन । यहाँ वनवास के समय पाण्डव आये ये दुर्योधन ने यहाँ उन्हें मारने का प्रयत्न किया किन्तु वह उसमें सफल नहीं हो सका । पापु० १७.७३-७४ सहिष्णु - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०९ सहेतुकजम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित साकेत नगर का समीपवर्ती वन । तीर्थंकर अजितनाथ ने यहीं दीक्षा ली थी । मपु० ४८.३८-३९ सह्य- (१) भरतक्षेत्र में मलयगिरि के समीप स्थित पर्वत । दिग्विजय के समय चक्रवर्ती भरतेश यहाँ आये थे । मपु० ३०.२७, ६५ (२) राजा अचल का पुत्र । हपु० ४८.४९ सांकाश्यपुर - एक नगर । यहाँ का राजा सीता के स्वयंवर में आया था । पपु० २८.२१९ साकारमन्त्रभैव - सत्याणुव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार-संकेतों से दूसरे के रहस्य को प्रकट कर देना । हपु० ५८.१६९ साकेत - अयोध्या का अपर नाम । तीर्थंकरों के जन्मोत्सव के समय सुरअसुर आदि तीनों जगत के जीव यहाँ एकत्रित हुए वे इसीलिए यह साकेत इस नाम से प्रसिद्ध हुआ । तीर्थंकर आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ और जगन्नाथ इन पांच तीर्थकरों ने इसी नगर में जन्म लिया था । मपु० १२.८२, ४८.१९, २७, ५०. १६-१९, ५१.१९-२४, ६०.१६-२२, पपु० २०.३७, ३८, ४०, ४१, ५० हपु० ८.१५०, ९.४२, १८.९७ वीवच० २.१०७ साक्षी - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१४१ सागर - (१) सूर्यवंश में हुआ एक राजा । यह सुभद्र का पुत्र और भद्र का पिता था। पपु० ५.६, हपु० १३.९ (२) राजा उग्रसेन के छः पुत्रों में पाँचवाँ पुत्र । वसुदेव ने कृष्ण जरासन्ध युद्ध में इसे राजा भोज का रक्षक नियुक्त किया था । हपु० ४८.३९, ५०.११८ (३) तीर्थंकरों की गर्भावस्था में उनकी माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में एक स्वप्न समुद्र । पपु० २१.१२-१५ (४) राम का एक योद्धा । पपु० ५८.२२ (५) दस कोड़ाकोड़ी पल्य प्रमाण काल । पपु० २०.७७ (६) एक मुनि । राजा हेमाभ की रानी यशस्वती ने इनसे सिद्धार्थ वन में व्रत लिये थे । मपु० ७१.४३५-४३६ (७) राजगृह नगर का एक श्रावक । यह राजा सत्यंधर का पुरोहित था श्रीमती इसकी स्त्री और बुद्धिषेण पुत्र था। ७५.२५७-२५९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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