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________________ ४०६ जैन पुराणकोश शूरदत्त - मथुरा नगरी के सेठ भानु का छठा पुत्र । मपु० ७१.२०२२०४, हपु० ३३.९७ दे० शूर- ५ - शूरदेव सेठ भानुदत्त का पाँचवाँ पुत्र । ७१.२०२-२०४ दे० शूर- ५ शूरबाहु — राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का उन्यासीवाँ पुत्र । पापु० ८.२०२ शूरवीर - (१) शौर्यपुर के राजा सूरसेन का पुत्र । धारिणी इसकी रानी थी । इसके दो पुत्र थे - अन्धकवृष्टि और नरवृष्टि । इसने सुप्रतिष्ठ मुनि से धर्मोपदेश सुनकर अन्धकदृष्टि को राज्य तथा नरवृष्टि को युवराज पद देकर संयम ले लिया था । मपु० १०.९३-९४, ११९१२२ (२) काक-मांस के त्यागी खदिरसार भील का साला । यह सारसौख्य नगर का निवासी था। इसने खदिरसार से व्रत भंग कर स्वस्थ होने के लिए काकमांस खाने को कहा था किन्तु खदिरसार ने व्रत भंग नहीं किया अपितु पाँचों व्रत धारण कर लिए थे। अपने बहनोई की इस घटना से प्रभावित होकर इसने भी समाधिगुप्त मुनि से श्रावक के व्रत धारण कर लिये थे । मपु० ७४.४०१-४१५ शूरसेन -- ( १ ) मथुरा नगरी का राजा । मपु० ७१.२०१ २०२, हपु० ३३. ९६ पत्नी यमुना सेठानी (२) मथुरा नगरी के सेठ भानु और उसकी का सातवाँ पुत्र | चन्द्रकान्ता इसकी स्त्री थी । इसी नगर की वज्रमुष्टि की पत्नी मंगी की पति को मारने की चेष्टा देखकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और यह संयमी हो गया था । अन्त में यह अन्य भाइयों सहित संन्यासमरण कर प्रथम स्वर्ग में त्रास्त्रिश देव हुआ 1 मपु० ७१.२०४-२२८, २४३, २४८, हपु० ३३.९७-१३० दे० शूर (३) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक देश | वृषभदेव के समय में स्वयं इन्द्र ने इसकी रचना की थी। मपु० १६.१५५ पपु० १०१. ८३ शूरसेना- राजा वसुदेव की रानी पु० ३१.७ शूल - एक अमोघ अस्त्र । यह शत्रुओं का संहार करके लौट आता है । असुरेन्द्र ने यह अस्त्र मथुरा के राजा मधु को दिया था । पपु० १२. १२-१३, ८९. ५-६ शेमुषी - एक विद्या । इससे विद्याधर रूप बदलते थे । पपु० १०. १७ यो गोधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१७९ शेषवती - एक यादव कन्या । यह भीम पाण्डव की स्त्री थी । हपु० ४७.१८-१९, पापु० १६.६२ शेषा-पूजन के अन्त में ग्रहण की जानेवाली आशिका इसे अंजली में ग्रहण करके मस्तक पर स्थापित किया जाता है । पापु० ३.२९ शैल - राजा अचल का पाँचवाँ पुत्र महेन्द्र, मलय, सह्य और गिरि ये चार इसके बड़े भाई तथा नग और अचल छोटे भाई थे । हपु० ४८.४९ - Jain Education International सूरत-दयाला शैलनगर - भरतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ छठे नारायण पुण्डरीक ने पूर्वभव में निवास किया था । पपु० २० २०७ - २०८ शैलपुर – जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का एक नगर । तीर्थंकर पुष्पदन्त ने यहाँ पारणा की थी । मपु० ५५.४८ शैलन्ध्री पर्वतवासियों का वेष धारण करनेवाली द्रौपदी । इसे कोचक ने प्राप्त करना चाहा था किन्तु इसके कहते ही भीम ने इसके वेश में कीचक को मुक्कों से मारकर गिरा दिया था । हपु० ४६. ३२-३६ शोणनद - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की एक नदी । दिग्विजय के समय चक्रवर्ती भरतेश की सेना यहाँ आयी थी। मपु० २९.५२ शोभपुर - एक नगर । यहाँ का राजा अमल श्रावक धर्म का पालन करते हुए मरकर स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर राजा श्रीवद्धित हुआ । पपु० ८०.१९०-१९५ दे० अमल शोभानगर - एक नगर । यह पुष्कलावतो देश में विजयार्धं पर्वत के निकट 'धान्यकमाल' वन में स्थित था। प्रजापाल यहाँ का राजा था। मपु० ४६.९५ दे० प्रजापाल शोभापुर - विद्याधरों का एक नगर । यहाँ का राजा अपने मंत्र रावण की सहायतार्थ उसके पास आया था। पपु० ५५.८५ शौच -- (१) सातावेदनीय कर्म का एक आस्रव । जीवन, इन्द्रिय, आरोग्य और उपयोग इन चार प्रकार के लोभ के त्याग से उत्पन्न निर्लोभवृत्ति शौच है । हपु० ५८.९४ पापु० २३.६७ (२) उत्तम क्षमा आदि दस धर्मों में पाँचवाँ धर्मं । इसमें इन्द्रिय विषयों की लोलुपता का त्याग किया जाता है। इन्हीं दस धर्मों को धर्म ध्यान की दस भावनाएं भी कहा है मपु० ३६.१५७-१५८, वीवच० ६.९ शौरिपुर - भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक नगर । तीर्थंकर नेमिनाथ यहीं जन्मे थे। इसके अपर नाम सूरिपुरी, शौर्य और शौर्यपुर थे। पपु० २०.५८, पापु० ८.२९ शीर्य - ( १ ) एक देश । २०२० सौरिपुर शूरसेन यहाँ का नृप था । मपु० ७१.२०१ (२) वीरों का एक गुण । हपु० १९.५९ शीयंपुर - कुशद्य देश का एक नगर। इसे राजा शूर ने बसाया था । मपु० ७०.९२-९३, हपु० १८.९ १०, १९.७ दे० शौरिपुर इमसाननिलय - विद्याधरों की एक जाति । श्मसान की अस्थियों से निर्मित आभूषणचारी, भस्मपूर्ति से पूसरित स्ममानस्तम्भ के आव विद्यालय लाते है ० २६.१६ श्यामक्र - मध्यलोक के अन्तिम सोलह द्वीपों में चौथा एवं उसका आवतक समुद्र । पु० ५.६२३ श्यामलता - सेठ वैश्रवणदत्त और आम्रमंजरी की पुत्री सुरमंजरी की दामी । कुमार जीवन्धर के पास परीक्षा के लिए सुरमंजरी का चूर्ण यही लेकर गयी थी । मपु० ७५.३४८-३४९ श्यामला - (१) मगध देश के राजा की पुत्रा | इसका विवाह वसुदेव: के साथ हुआ था । मपु० ७०.२५० - २५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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