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________________ शान्तिभाक्-शिक्षक जैन पुराणकोश : ४०१ शान्तिभाक्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२६ और शाल्मलिखण्ड इसके अपर नाम थे। मपु० ७१.४१६, पपु० शान्तिमति-जम्बद्वीप के विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी के शुक्रप्रभ नगर १०९.३५-३७, हपु०१८.१२७. ४३.९९, ६०.१०९ के राजा वायुवेग तथा रानी सुकान्ता की पुत्री। इसने मुनिसागर (२) जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर रम्य पर्वत पर विद्या सिद्ध की थी। राजा वज्रायुध से अपना पूर्वभव सुन- नामक क्षेत्र का एक ग्राम । महापुराण में इसे भरतक्षेत्र बताया गया कर यह संसार से विरक्त हो गयी और इसने सुलक्षणा आर्यिका से है। मपु० ७१.३९०, हपु० ६०.६२-६३ संयम धारण कर लिया था। अन्त में यह संन्यासमरण कर ऐशान शाल्मलि-जम्बद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित मगध देश का एक ग्राम । स्वर्ग में देव हुई । मपु० ६३.९१-९५, १११-११३ इसका अपर नाम शालिग्राम था । मपु० ७१.४४६ दे० शालिग्राम । शान्तिवर्धन-कुरुवंशी एक राजा । यह राजा नारायण का पुत्र और राजा शाल्मलिबत्ता-विजयाध पर्वत के किन्नरगीत नगर के राजा विद्याधर शान्तिचन्द्र का पिता था । हपु० ४५.१९, पापु० ६.२ अशनिवेग और रानी पवनवेगा की पुत्री। इसका विवाह कुमार शान्तिषेण-(१) कुरुवंशी एक राजा । यह शान्तिभद्र का पुत्र और शन्तनु वसुदेव के साथ हुआ था । मपु० ७०.२५४-२५५, पापु० ११.२०-२१ का पिता था । हपु० ४५.३०-३१ शाल्मलोखण्ड-भरतक्षेत्र के मगध देश का एक ग्राम । इसके अपर नाम (२) आचार्य जिनसेन के पश्चात् हुए एक आचार्य । हपु० ६६.२९ शाल्मलि और शालिग्राम थे। मपु० ७१.४६६, हपु० १८.१२७, शामली-भरतक्षेत्र का एक नगर । राजा रतिवर्धन के पुत्र प्रियंकर और ६०.१०९ दे० शालिग्राम हितंकर अपने चौथे पूर्वभव में इसी नगर में दामदेव ब्राह्मण के वसुदेव ___ शाल्मलीवृक्ष-(१) जम्बूद्वीप में स्थित वृक्ष । यह मेरु पर्वत की दक्षिणऔर सुदेव नामक गुणी पुत्र हुए थे। पपु० १०८.३९-४० पश्चिम दिशा में विद्यमान शाल्मली स्थल में पृथिवीकाय रूप से स्थित शाम्भ-कृष्ण का कनिष्ठ पुत्र । यह प्रद्युम्न का छोटा भाई था । पपु० हैं । इसकी चारों दिशाओं में चार शाखाएं है। दक्षिण-शाखा पर अकृत्रिम जिनमन्दिर बने हैं। शेष तीन शाखाओं पर भवन बने हुए १०९.२७ हैं, जिनमें वेणु और वेणुदारी देव रहते हैं। यह मूल में एक कोश शारंग-एक धनुष । कुबेर ने यह धनुष नारायण कृष्ण को दिया था। चौड़ा है । इसकी शाखाएं आठ योजन तक फैली है । मपु० ५.१८४, यह कृष्ण के सात रत्नों में दूसरा रल था। यह रत्न नारायण लक्ष्मण हपु० ५.१७७, १८७-१९० के पास भी था। मपु० १८.६७५-६७७, ७१.१३५, हपु० ४१.३४ (२) विक्रिया ऋद्धि से निर्मित कृत्रिम, लौह-निर्मित, कण्टकाकीर्ण ३५, ५३.४९-५० नरक के वृक्ष । इन वृक्षों को धौंकनी से प्रदीप्त कर नारकियों को शारंगपाणि-कृष्ण का अपर नाम । हपु० ४२.९७ बलपूर्वक उन पर चढ़ने के लिए बाध्य किया जाता है। वृक्षों पर शार्दूल-(१) राजा समुद्रविजय का तीसरा मंत्री । इसने समुद्रविजय चढ़ते समय उन्हें कोई नारकी नीचे की ओर घसीटता है, कोई ऊपर को जरासन्ध के साथ सामनीति का प्रयोग करने की सलाह दी थी। की ओर । इस प्रकार इन वृक्षों के द्वारा नारकियों को दुःख सहन हपु० ५०.४९ करने पड़ते हैं। मपु० १०.५२-५३, ७९, पपु० २६.७९-८०, (२) राम के पक्ष का एक योद्धा । इसने रावण के वजोदर योद्धा ३२.९२ को मारा था । पपु० ६०.१८ शावरी-एक विद्या। यह रूप बदलने में सहायक होती है। हप० शार्दूलविक्रीडित-रावण का एक सामन्त । इसने गजरथ पर बैठकर राम की सेना से युद्ध किया था । पपु० ५७.५७ शाश्वत-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०२ शालकायन-भरतक्षेत्र के मन्दिर-ग्राम का एक ब्राह्मण । मदिरा स्त्री शासिता-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का नाम । मपु० २५.२०१ और भारद्वाज ऋषि इसके पुत्र थे । मपु० ७४. ७८-७९ शास्ता-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११५ शाल-(१) नगर का कोट । हपु० २.११ शास्त्र-आगम ग्रन्थ । ये सर्वज्ञ भाषित, पूर्वापर विरोध से रहित, हिंसा (२) हरिवंशी राजा मूल का पुत्र और सूर्य का पिता । हपु० आदि पापों के निवारक, प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाणों से अबाधित हेय १७.३२ और उपादेय तत्त्वों के प्रकाशक होते हैं। इनका श्रवण, मनन और (३) तीर्थङ्कर शंभवनाथ का बोधिवृक्ष । पपु० २०.३९ चिन्तन शुद्धबुद्धि का कारण कहा है । मपु० ५६.६८,७३-७४ शालगहा-भरतक्षेत्र की एक नगरो। वसुदेव ने यहाँ पद्मावती को शास्त्रवान-दान का एक भेद । सत्पुरुषों का उपकार करने की इच्छा विवाहा था । हपु० २४.२९-३० से शास्त्र का व्याख्यान करना या पठन-सामग्री देना शास्त्रदान है। शालवन-तीर्थकर धर्मनाथ की दीक्षाभूमि-एक उद्यान । मपु० ६१.३८-३९ इसके देने और लेनेवाले दोनों के कर्मों का संवर-निर्जरा और पुण्य शालि-आदिनाथ के समय का एक धान्य-चावल । मपु० ४.६०-६१ होता है। यह निजानन्द रूप मोक्ष-प्राप्ति का कारण है। मपु० शालिग्राम-(१) जम्बद्वीप में भरतक्षेत्र के मगध देश का एक ग्राम । ५६.६६-६७, ६९, ७२-७३, ७६ वसदेव पर्वभव में इसी नगर के एक दरिद्र ब्राह्मण के पुत्र थे । शाल्मलि शिक्षक-श्रुताभ्यास करानेवाले मुनि । हपु० १२.७३, ५९.१२८ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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