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________________ बचशाल-बच्चायुष जैन पुराणकोश : ३४५ युद्ध में यह रावण की सेना का विनाश देखकर युद्ध के लिए आया था। पपु० १२.१९६ वज्रशाल-दुर्लङध्यपुर नगर का एक कोट। यह सौ योजन ऊँचा तथा तिगुनी परिधि से युक्त है। लोकपाल नलकूवर ने इसका निर्माण कराया था। पपु० १२.८६-८७ वनशीला-वज्रपंजर-नगर के राजा विद्याधर वज्रायुध की रानी । यह खेचरभानु की जननी थी। इसका पुत्र आदित्यपुर के राजा विद्यामन्दिर की पुत्री श्रीमाला के स्वयंवर में गया था। पपु० ६.३५७ ३५८, ३९६ वज्रसंज्ञ-एक विद्याधर राजा। यह विद्याधर नमि के वंशज राजा वज्रांक का पुत्र और वजास्य का पिता था। इसका अपर नाम वज सुन्दर था । पपु० ५.१९, हपु० १३.२३ वज्रसुन्दर-एक विद्याधर राजा। यह नमि का वंशज था। हपु० १२.२३, दे० वज्रसंज्ञ वज्रसूरि-एक प्राचीन आचार्य । ये अपनी सूक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे । हपु० १.३२ वज्रसेन–(१) एक विद्याधर राजा। यह विद्याधर नमि के वंशज वज्र जंघ का पुत्र और वज्रदंष्ट्र का पिता था। पपु० ५.१७-१८, हपु० १३.२१-२२ (२) जम्बूद्वीप के कोसलदेश की अयोध्या नगरी का राजा। इसकी रानी का नाम शीलवती था। कनकोज्ज्वल का जीव स्वर्ग से चयकर इन्हीं राजा-रानी का हरिषेण नामक पुत्र हुआ था। मपु० ७४.२३१-२३२, वीवच० ४.१२१-१२३ (३) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा । श्रीकान्ता इसकी रानी और वजनाभि पुत्र था। मपु० ११.८-९ वजांक-(१) एक विद्याधर राजा । यह नमि विद्याधर के वंशज वज बाहु का पुत्र और वज्रसुन्दर का पिता था। पपु० ५.१९, हपु० १३.२३, दे० वज्रसंज्ञ (२) अयोध्या का एक धनिक । इसकी प्रिया का नाम मकरी था । इसके दो पुत्र थे-अशोक और तिलक । इसने मुनि द्यु ति से दीक्षा धारण कर ली थी तथा इसके दोनों पुत्र भी पिता के दीक्षागुरु से दीक्षित हो गये थे । मुनि द्युति के समाधिस्थ हो जाने के पश्चात् अपने दोनों पुत्रों के साथ इसने ताम्रचूडपुर की ओर विहार किया था। पिता और दोनों पुत्र ये तीनों मुनि निश्चित स्थान तक नहीं पहुँच पाये थे कि चातुर्मास का समय आरम्भ हो जाने से इन्हें एक वृक्ष के नीचे ही ठहर जाना पड़ा था। भामण्डल ने इन तीनों मुनियों की वन में आहार व्यवस्था को थी। भामण्डल मरकर इस व्यवस्था के फलस्वरूप मेरु पर्वत के दक्षिण में देवकुरू नामक उत्तर भोगभूमि में उत्पन्न हुआ था । पपु० १२३.८६-१४५ वञ्चांगद-त्रिपुर नगर का एक विद्याधर राजा। वजमालिनी इसकी रानी थी। मपु० ६३.१४-१५, दे० वजूमालिनी वता-प्रथम नरक के खरभाग का दूसरा पटल । हपु० ४.५२, दे० खरभाग वज्राक्ष-दशानन का अनुयायी एक विद्याधर राजा। राम की वानर सेना को इसने पीछे हटा दिया था । पपु० ८.२६९-२७१, ७४.६१ वज्ञाख्य-रावण का एक योद्धा। हस्त और प्रहस्त वीरों को मरा सुनकर इसने युद्धभूमि में वानरसेना के साथ भयंकर युद्ध किया था। पपु० ६०.१-७ बनाढ्य-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का चौदहवां नगर। मपु० १९.४२, ५३ वजाभ-एक विद्याधर राजा। यह विद्याधर नमि के वंशज राजा वज्रभृत् का पुत्र और वज्रबाहु का पिता था । पपु० ५.१८-१९, हपु० १३.२२-२३ वज्रायुष-(१) एक विद्याधर राजा। यह विद्याधर नमि के वंशज राजा वज्रध्वज का पुत्र और वज्र का पिता था । पपु० ५.१८, हपु० १३.२२ (२) वज्रपंजर नगर का एक विद्याधर । इसकी रानी वज्रशीला तथा पुत्र खेचरभानु था । पपु० ६.३९६, दे० बज्रपंजर (३) मुनि संजयन्त के दूसरे पूर्वभव का जीव-चक्रपुर नगर के राजा अपराजित के पौत्र और राजा चक्रायुध के पुत्र । इनकी रानी रत्नमाला तथा पुत्र रत्नायुध था। ये पुत्र को राज्य देकर मुनि हो गये थे। महापुराण के अनुसार किसी समय ये मुनि-अवस्था में प्रतिमायोग धारण कर प्रियंगुखण्ड वन में विराजमान थे। इन्हें व्याध दारुण के पुत्र अतिदारुण ने मार डाला था। इस उपसर्ग को सहकर और धर्मध्यान से मरकर ये सर्वार्थसिद्धि में देव हुए थे। मपु० ५९.२७३-२७५, हपु० २७.८९-९४ (४) भूमिगोचरी राजाओं में एक श्रेष्ठ राजा । यह सुलोचना के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ था। पापु० ३.३६-३७ (५) तीर्थकर शान्तिनाथ के चौथे पूर्वभव का जीव-जम्बूद्वीप में स्थित पूर्वविदेहक्षेत्र के मंगलावती देश में रत्नसंचयनगर के राजा क्षेमंकर और रानी कनकचित्रा का पुत्र । इसकी रानी लक्ष्मीमती तथा पुत्र सहस्रायुध था। इन्द्र ने अपनी सभा में इसके सम्यक्त्व की प्रशंसा की थी, जिसे सुनकर विचित्रचल देव परीक्षा लेने इसके निकट आया था। विचित्रचूल ने पण्डित का एक रूप धरकर इससे जीव सम्बन्धी विविध प्रश्न किये थे। इसने उत्तर देकर देव को निरुत्तर कर दिया था। एक समय सुदर्शन सरोवर में किसी विद्याधर ने इसे नागपास से बांधकर शिला से ढक दिया था किन्तु इसने शिला के टुकड़े-टुकड़े कर दिये थे और नागपाश को निकालकर फेंक दिया था। इसे चक्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। अन्त में यह अपने पोते का कैवल्य देखकर संसार से विरक्त हुआ और अपने पुत्र सहस्रायुध को राज्य देकर पिता क्षेमंकर के पास दीक्षित हो गया था। सिद्धगिरि पर इसने एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया तथा सहस्रायुध के साथ वैभार पर्वत पर देहोत्सर्ग कर ऊध्वंवेयक के सौमनस अघोविमान में Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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