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________________ ३१४ : जैन पुराणकोश यशोधरा-युगादिस्थितिदेशक (६) एक केवली । ये राजा वज्रदन्त के पिता थे। कैवल्य अवस्था में इन्हें प्रणाम करते ही ववदन्त को अवधिज्ञान प्राप्त हो गया था । गुणधर मुनि इनके शिष्य थे। मपु० ६.८५, १०३, ११०, ८.८४ यशोधरा-(१) रूचकपर्वत के विमलकुट की एक दिक्कुमारी देवी । हपु०५.७०९ (२) पूर्णभद्र का जीव । अलका नगरी के राजा सुदर्शन और रानी श्रीधरा की पुत्री। यह विजया की उत्तरश्रेणी में प्रभाकरपुर के राजा सूर्यावर्त के साथ विवाही गयी थी। रश्मिवेग इसका पुत्र था। इसने अपनी माँ के साथ गुणवती आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । अन्त में इसका पति और पुत्र दोनों दीक्षित हो गये थे। मपु० ५९.२३०, हपु० २७.७९-८३ (३) जम्बूद्वीप के सुकच्छ देश में स्थित विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी के शुक्रप्रभनगर के राजा इन्द्रदत्त विद्याधर की रानी । यह वायुवेग विद्याधर की जननी थी। मपु० ६३.९१-९२ (४) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रदन्त को रानी । यह सागरदत्त की जननी थी। मपु० ७६.१३९-१४२ यशोबाहु-आचारांग के ज्ञाता चार आचार्यों में तीसरे आचार्य । सुभद्र और यशोभद्र इनके पूर्ववर्ती तथा लोहाचार्य परवर्ती आचार्य थे। हरिवंशपुराण के अनुसार इनके पूर्ववर्ती आचार्य सुभद्र और जयभद्र थे। मपु० ७६.५२५-५२६ हपु० १.६५,६६.२४, वीवच० १.४१-५० यशोभद्र-महावीर के निर्वाणोपरान्त हुए आचारांग के ज्ञाता चार मुनियों में दूसरे मुनि । इनके पूर्व सुभद्र और बाद में क्रमशः यशोबाहु जयबाहु और लोहाचार्य हुए थे। इनका अपर नाम जयभद्र था। मपु० २.१४९, ७६.५२५, हपु० १.६५, ६६.२४, वीवच० १.४१- ५० दे० यशोबाहु यशोवती-(१) तीर्थकर वृषभदेव की रानी और भरत की जननी। इसका अपर नाम यशस्वती था। मपु० १५.७०, पपु० १.२४ दे० यशस्वती (२) काम्पिल्यनगर के राजा विजय की रानी और ग्यारहवें चक्रवर्ती जयसेन की जननी । पपु० २०.१८९ ।। यष्टि-(१) कुलकर क्षेमन्धर द्वारा क्रूर पशुओं से रक्षा करने के लिए बताया गया एक शस्त्र-लाठी । मपु० ३.१०५, पपु० ६२.७ (२) मोती और रत्नों से निर्मित हार। यह शीर्षक, उपशीर्षक, अवघाटक, प्रकाण्डक और तरलप्रबन्ध के भेद से पाँच प्रकार का होता है । लड़ियों के भेद से इसके पचपन भेद होते हैं। मपु० १६.४६ ४७, ६३-६४ यांचा-याचना । बाईस परीषहों में एक परीषह । इसमें मौन रहकर याचना सम्बन्धी बाधाएँ सहर्ष सहन की जाती है । मपु० ३६.१२२ यागहस्ती-तालपुर नगर के राजा नरपति का जीव-एक हाथी । पूर्वभव में यह मिथ्याज्ञानी था। इस पर्याय में इसने तीर्थकर मुनिसुव्रत से अपना पूर्वभव सुनकर संयमासंयम धारण कर लिया था। इसकी यह प्रवृत्ति तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ के वैराग्य की निमित्त हुई थी। मपु० ६७.३१-३८ याज्ञवल्क्य-एक परिव्राजक । बनारस के सोमशर्मा ब्राह्मण की पुत्री सुलसा परिवाजिका को शास्त्रार्थ में पराजित करने यह बनारस आया था। उसमें यह सफल हुआ। सुलसा इसकी पत्नी हुई। इसके एक पुत्र हुआ जिसे यह एक पीपल के पेड़ के नीचे छोड़कर पत्नी के साथ अन्यत्र चला गया था। सुलसा की बड़ी बहिन भद्रा ने इसका पालन किया और उसका नाम 'पिप्पलाद' रखा था। अपनी मौसी भद्रा से अपना जन्म वृत्त ज्ञातकर पिप्पलाद ने मातृपितृ सेवा नाम का यज्ञ चलाकर तथा उसे कराकर अपने जन्मदाता इस पिता और माता सुलसा दोनों को मार डाला था । हपु० २१.१३१-१४६ यादव वंश-हरिवंशी राजा यदु के द्वारा संस्थापित वंश । हपु० १८.६ यान-(१) राजा के छ: गुणों में चौथा गुण-अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति किया गया उद्यम-शत्रु पर चढ़ाई करना । मपु० ६८.६६, ७० (२) देवों का एक वाहन । मपु० १३.२१४ याम्य-समवसरण के तीसरे कोट में दक्षिणी-द्वार के आठ नामों में एक नाम । हपु० ५७.५८ युक्ति-पदार्थों को सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त हेतु अथवा साधन । हपु० ७.१५, १७.६६ युक्तिक-राजा उग्रसेन का तीसरा पुत्र । धर और गुणधर इसके बड़े भाई तथा सगर और चन्द्र इसके छोटे भाई थे। हपु० ४८.३९ युक्त्यनुशासन-आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित एक स्तोत्र । हपु० १.२९ युगज्येष्ठ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९३ युगन्त-समुद्रविजय के भाई राजा विजय का चौथा पुत्र । निष्कम्प, अकम्पन और बलि इसके बड़े भाई तथा केशरिन् और अलम्बुष छोटे भाई थे । हपु० ४८.४८ युगन्धर-(१) तीर्थंकर सुविधिनाथ (पुष्पदन्त) के पिता । पपु० २०.२६ (२) पुष्कराध द्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्लसंचयनगर के राजा अजितंजय और रानी वसुमती का पुत्र । मपु. ७.९०-९४ (३) पुष्कराई द्वीप के मनोहर वन में विराजमान मुनि । रत्नपुर नगर के राजा पद्मोत्तर ने इनकी उपासना की थी। मपु० ५८.२-७ युगपुण्य-साधमन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदव का एक नाम । मपु० २५.१९३ युगावि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४७ युगाविकृत्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४७ युगादिपुरुष-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१०५ (२) युग के आदि में होने से इस नाम से विख्यात कुलकर । मपु० ३.१५२,२१२ युगमावास्थातवशक साधमन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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