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________________ महाक्षान्ति-महाधर जैन पुराणकोश : २८३ महाक्षान्ति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० इस पृथिवी के मध्य में पैतीस कोस के विस्तारवाले पाँच बिल है। २५.१५३ इसमें एक ही प्रस्तार और उसके मध्य एक अप्रतिष्ठान नामक इन्द्रक महागन्ध-इक्षुवर समुद्र का रक्षक देव । हपु० ५.६४४ है, जिसकी चारों दिशाओं में चार श्रेणीबद्ध बिल हैं। एक इन्द्रक महागन्धवती-गन्धमादन पर्वत से निकली एक नदी। इसके किनारे और चार घणीबद्ध दोनों मिलकर इसमें पांच बिल है । इस भूमि भीलों की भल्लंकी पल्ली थी। मपु० ७१.३०९ के अप्रतिष्ठान इन्द्रक की पूर्व दिशा में काल, पश्चिम दिशा में महागिरि-हरिवंशी राजा हरि का पुत्र और हिमगिरि का पिता। महाकाल, दक्षिण दिशा में रौरव और उत्तर दिशा में महारौरव नाम मपु० ६७.४२०, पपु० २१.७-८, हपु० १५.५८-५९ के चार प्रसिद्ध नरक है। यहाँ का इन्द्रक बिल संख्यात योजन महागुण-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५४ विस्तारवाला और चारों दिशाओं के बिल असंख्यात योजन विस्तारमहागुणाकर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० वाले हैं। अप्रतिष्ठान इन्द्रक का विस्तार एक लाख योजन तथा २५.१६१ अन्तर ऊपर-नीचे तीन हजार नौ सौ निन्यानवें योजन और एक महागौरी-धरणेन्द्र द्वारा नमि और विनमि विद्याधरों को दी गयी कोस प्रमाण है। यहाँ की जघन्य आयु बाईस सागर तथा उत्कृष्ट आयु एक विद्या । हपु० २२.६२ तैतीस सागर है। यहाँ नारकियों की ऊँचाई पाँच सौ धनुष होती महाघोर तपश्चरण का एक भेद-कठोर तप । बाहुबली ने ऐसा ही तप है । वे उत्कृष्ट कृष्णलेश्यावान् होते हैं । इस पृथिवी से निकला हुआ किया था। मपु० ३६.१५० प्राणी नियम से संज्ञी तिथंच होता है तथा संख्यात वर्ष की आयु महाघोष-(१) पश्चिम विदेहक्षेत्र के रत्नसंचय नगर का राजा । इसकी का धारक होकर फिर से एक बार नरक जाता है। मपु० १०.३१रानी चन्द्रिणी और पुत्र पयोबल था। पपु० ५.१३६-१३७ ३२, ९३-९४, ९८, हपु० ४.४५-४६, ५७, ७२-७४, १५०, १५८, (२) असुरकुमार आदि दस जाति के भवनवासी देवों का अठार- १६८, २१७, २४७, २९३-२९४, ३३९, ३७५, ३७८ हवाँ इन्द्र और प्रतीन्द्र । वीवच० १४.५६-५७ महातेज-तीर्थकर अजितनाथ के पूर्वभव के पिता । पपु० २०.२५ (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० महातेजा-सोधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१५८ २५.१५१ महाघोषा-अच्छे स्वरवाली वीणा । देवों ने यह वीणा भूमिगोचरियों ___ महात्मा-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० को दी थी। हरिवंशपुराण के अनुसार यह वीणा किन्नर देवों द्वारा २५.२५९ सिद्धकूटवासी विद्याधरों को दी गयी थी। मपु० ७०.२९५-२९६, । (२) क्षमाधारी पुरुष । अपराधियों के अपराध क्षमा करना ही हपु० २०.६१ इनका स्वभाव होता है । मपु० ४५.१२ महाचन्द्र-आगामी दूसरा बलभद्र । मपु० ७६.४८५ महावम-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५६ महाजठर-रावण का पक्षधर एक राक्षस विद्याधर । यह कवचधारी महादान-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५४ था। इसके पास अनेक शस्त्र थे । पपु० १२.१९७ महादु:ख-तीसरी पृथिवी में प्रथम प्रस्तार के तप्त इन्द्रक की पश्चिम महाजय-(१) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३८ दिशा का महानरक । हपु० ४.१५४ (२) भरतेश चक्रवर्ती का पुत्र । यह चरमशरीरी जयकुमार के महादेव-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० साथ दीक्षित हो गया था। मपु० ४७.२८२-२८३ २५.१६२ महाजाल-एक शंख । प्रद्युम्न को वाराह पर्वत की गुफा में वहाँ को (२) वृषभदेव के दर्शाये चारित्र में स्थिर रहनेवाले एक राजा। एक देवी से यह प्राप्त हुआ था। मपु० ७२.१०७-११० मपु० ४२.३५-३६ महाज्योति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० महादेवी-(१) राजाओं की प्रधान रानियाँ । मपु० ४२.३७ २५.१५२ (२) रावण की अठारह सहस्र रानियों में एक सामान्य रानी का महाज्वाल-विजया की उत्तरश्रेणी का उन्तालीसा नगर । मपु० नाम । पपु० ७७.१२ १९.८४, ८७ हपु० २२.९० (३) पट्टरानी । हपु० १.११५ महाज्वाला-समस्त विद्याओं को छेदनेवाली एक विद्या । रथनूपुर के महाध ति-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० राजा अमिततेज ने यह विद्या सिद्ध की थी। मपु० ६२.२७३ २५.१५२ महाज्ञान-सीधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० (२) रावण का पक्षधर एक सामन्त । पपु० ५७.५३ २५.१५४ (३) एक यादव नृप । समुद्रविजय की रक्षा के लिए इसकी महातपा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५१ नियुक्ति की गयी थी। हपु० ५०.१२१ महातमःप्रभा-नरक की सातवी भूमि, अपरनाम माधवी। यह घनोद- महाधनु-बलदेव का पुत्र । हपु०४८.६८ धिवातवलय पर स्थित है। इसकी मोटाई आठ हजार योजन है। महाधर-राम का पक्षधर एक योद्धा । पपु० ५८.१५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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