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________________ - २८२ : जैन पुराणकोश : मस्तक — भरतेश की अधीनता स्वीकार न कर उनके छोटे भाइयों द्वारा छोड़े गये जनपदों में भरतक्षेत्र के पूर्व आर्यखण्ड का एक जनपद । हपु० ११.६०-६१, ६८ मह - पूजा का एक पर्यायवाची नाम । दे० मख महतिमहावीर - महावीर का नाम उज्जयिनी के अतिमुक्तक मसान में एक स्थाणु रुद्र ने महावीर पर अनेक उपसर्ग करने के बाद उनके अविचल रहने से उन्हें यह नाम दिया था । मपु० ७४.३३१-३३६ महाद्रिद्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१४५ महर्षि - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५९ महसांधाम - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १५९ महसांपति सौधर्मेन्द्र द्वारा स्युपभदेव का एक नाम मपु० २५.१५८ महाकक्ष - विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्र ेणी का तीसवां नगर । हपु० २२.९७ महाकच्छ - (१) पूर्व विदेहक्षेत्र का एक जनपद । मपु०५.१९३ (२) एक राजा । ये राजा कच्छ के अनुज, यशस्वती और सुनन्दा के भाई और वृषभदेव के साले थे । विनमि विद्याधर इनके पिता थे । कच्छ और महाकच्छ वृषभदेव के साथ मुनि होकर छः मास के भीतर क्षुधा आदि कठिन परीषहों को न सह सके और तप से भ्रष्ट हो गये। पश्चात् पुनः दीक्षा लेकर में वृषभदेव के तहत गणधर हुए । मपु० १५.७०, १८.९१-९२, हपु० ९.१०४, १२.६८ महाकच्छा - पश्चिम विदेहक्षेत्र में सीता नदी और नील कुलाचल के मध्य प्रदक्षिणा रूप से स्थित आठ देशों में तीसरा देश । इसके छः खण्ड हैं । मपु० ६३.२०८, हपु० ५.२४५ - २४६ महाकर्णारिहासौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुतषभदेव का एक नाम म २५. १६२ महाकल्प - अंगबाह्य प्रकीर्णक ( श्रुतज्ञान) के चौदह भेदों में ग्यारहवाँ भेद । इसमें यति के द्रव्य, क्षेत्र तथा काल के योग्य कार्यों का वर्णन है । पु० २.१०४, १०.१२५, १३६ महाकल्याण भाजन- शारीरिक दृष्टि और पुष्टि का हेतु भरतेश का एक दिव्याशन (दिव्य भोजन) । मपु० ३७.१८७ महाकवि – सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५३ महाकांक्ष प्रथम नरक के प्रथम प्रस्तारवर्ती सीमन्तक इन्द्रक बिल की पश्चिम दिशा में विद्यमान नरक । हपु० ४.१५१-१५२ महाकान्ति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत नृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१५४ महाकान्तिघर - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५७ महाकाम - रावण का पक्षधर एक योद्धा सामन्त । पपु० ५७.५५-५६ महाकाय - किन्नर जाति के व्यन्तर देवों का छठा इन्द्र । यह तीर्थंकर वीवच० १४.६० वर्द्धमान के ज्ञानकल्याणक में आया था। Jain Education International मस्तक-महाक्षम महाकारुणिक - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५८ महाकाल -- ( १ ) उज्जयिनी का एक वन । हपु० ३३.१०२ (२) उज्जयिनी का एक श्मसान। मुनि वरधर्म ने यहाँ ध्यान किया था । हपु० ३३.१०९-११ (३) सातवाँ नरकभूमि के अप्रतिष्ठान इन्द्रक बिल की पश्चिम दिशा में स्थित महानरक । हपु० ४.१५८ (४) भरतेश की नौ निधियों में दूसरी निधि । इससे परीक्षकों द्वारा निर्णय करने योग्य पंचलौह आदि अनेक प्रकार के लोहों का सद्भाव रहता है । इसी निधि से उनके यहाँ असि, मषि आदि छः कर्मों के साधनभूत द्रव्य और सम्पदाएँ निरन्तर उत्पन्न की जाती थीं । म० २७.७२, ७०० ११.११०, ११५ (५) मधूलिका जीव एक असुर देव सगर और सुलसा को यज्ञ में होम दिया था। मेम, अजमेघ, गोमेव और राजसूय यज्ञ भी करके दिखाये थे। मपु० ६७.१७०-१७४, २१२, २५२, पु० १७.१५७, २३.१२६, १४११४२, १४५-१४६ इसने र राजा इसने माया से अश्व (६) कालोदधि द्वीप का रक्षक देव । हपु० ५.६३८ (७) काल गुफा का निवासी एक राक्षस । प्रद्युम्न ने इसे पराजित कर इससे वृषभ नाम का रथ तथा रत्नमय कवच प्राप्त किये थे । मपु० ७२.१११ (८) एक गुहा । प्रद्युम्न ने तलवार, ढाल, छत्र तथा चमर इसी में प्राप्त किये थे। हपु० ४७.३३ गुहा - (९) एक व्यन्तर देव । यह इसी नाम की गुहा में रहता था । इसने वैर वश श्रीपाल को इस गुहा में गिराया था । मपु० ४७.१०३१०४ (१०) व्यन्तर देवों का सोलहवाँ इन्द्र और प्रतीन्द्र । वीवच० १४.६१-६२ (११) छठा नारद । हपु० ६०.५४८ दे० नारद - महाकाली — धरणेन्द्र द्वारा नमि और विनमि विद्याधरों को दी गयी एक विद्या । पु० २२.६६ महाकाव्य प्राचीन इतिहास, प्रेसठ शलाका महापुरुषों का परिष और धर्म, अर्थ काम रूप त्रिवर्ग के फल का वर्णन करनेवाला प्रबन्ध काव्य । मपु० १.९९ महाकीति सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१५४ महाकूट -- विजयार्ध पर्वत को दक्षिणश्रेणी का उन्तालीसव नगर । मपु० १९.५१ महाकोषरिपु सोधर्मेद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० -- For Private & Personal Use Only २५.१६० महाक्लेशांकुश – सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६० महायक्षम सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। ० १५.१५६ www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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