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________________ मनोहर-मन्त्री (३) राजा बुध की रानी और अशोकलता की जननी । पपु० ८.१०४ (४) रावण की एक रानी । पपु० ७७.१५ मनोहर - (१) पुण्डरीकिनी नगरी का एक उद्यान मूर्ति यशोपर यहीं केवली थे । मपु० ६.८५-८६, हपु० ३३.१४५ हुए (२) कौशाम्बी का एक उद्यान । तीर्थंकर श्रेयांस ने यहाँ दीक्षा धारण कर मन:पर्ययज्ञान प्राप्त किया था । मपु० ५७.४८, ६९.४ (३) भोगपुर नगर का समीपवर्ती एक उद्यान । राजा पद्मनाभ यहाँ दीक्षित हुए थे । मपु० ६७.६३-६८ (४) एक वन । तीर्थंकर पद्मप्रभ ने यहाँ दीक्षा ली थी । मपु० ५२.५१, पापु० ४.१४ (५) महाबुद्धि और पराक्रमधारी अमररक्ष के पुत्रों द्वारा बसाये गये दस नगरों में एक नगर । पपु० ५.३७१ (६) नन्द्यावर्त विमान का एक देव । मपु० ९.१९१ (७) भरतक्षेत्र में विजयार्धं पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक देश । मपु० ४७२६१-२६२ (८) विदेहक्षेत्र के वत्सकावती देश का एक पर्वत । मपु० ५८.७ (९) गन्धर्व विद्या का एक शिक्षक । मपु० ७०.२६२ (१०) रौद्र, राक्षस गन्धर्व और मनोहर रात्रि के इन चार प्रहरों में चौथा प्रहर रात्रि का अवसान-काल । मपु० ७४. २५५ (११) ऋजुकूला नदी का तटवर्ती एक वन । महावीर इसी वन में केवली हुए थे । मपु ७४.३४८ ३५२, वीवच० १३.१००-१०१ (१२) एक सरोवर । नेमि और सत्यभामा के बीच वार्तालाप यहीं हुआ था । मपु० ७१.१३० (१३) राजतमालिका नदी का तटवर्ती एक वन, तीर्थकर वासुपूज्य की निर्वाणभूमि म० ५८.५१-५२ (१४) पाया नगरी के समीप स्थित एक वन तीर्थर महावीर ने इसी वन से निर्वाण पाया था । हपु० ६०.१५-१७ (१५) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१८२ मनोहरपुर - पश्चिम - विदेहक्षेत्र का एक नगर । भीम-वन इसी नगर के पास था । मपु० ५९.११६ मनोहरमुख - राम का एक योद्धा । पपु० ५८.१४, १७ मनोहरवन -- ( १ ) भरतक्षेत्र के सिहपुर नगर का समीपवर्ती एक उद्यान । सिंहपुर नगर के राजा सिंहचन्द्र की मुनि अवस्था में उनकी माता रामदत्ता ने यहीं वन्दना की थी । मपु० ५९.१४६, १९८-२०५ (२) गरुडवेग की पुत्री गंधदत्ता का स्वयंवर स्थल मपू० ७५.३२५ मनोहरा - जम्बूद्वीप के पूर्व विशेष में स्थित पुष्कलावती देश की पुडरी किणी नगरी के राजा घनरथ की रानी और मेघरथ की जननी । मपु० ६३.१४२-१४३, पापु० ५.५३-५४ (२) चौथे नारायण पुरुषोत्तम की पटरानी । पपु० २०.२२७ Jain Education International जैन पुराणको २०७ (३) पुष्करद्वीप में मंगलवती देश सम्बन्धी रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर की पत्नी । यह बलभद्र श्रीवर्मा और नारायण विभीषण की जननी थी। यह आयु के अन्त में समाधिपूर्वक शरीर छोड़ स्वर्ग में ललितांग देव हुई । मपु० ७.१३-१८ (४) राजपुर नगर के सेठ जिनदत्त की स्त्री । मपु० ७५.३१४३१५, १२१ मनोहरी - (१) विजयाचं पर्वत को उत्तरश्रेणी में मेघपुर नगर के राजा पवनवेग की रानी और मनोरमा की जननी । हपु० १५.२५-२७ (२) हरिवंशी राजा दक्ष और रानी इला की पुत्री और ऐलेय की बहिन । दक्ष ने प्रजा को छलपूर्वक अपनी ओर करके इसे पत्नी बना लिया था । इस कृत्य से दुःखी होकर इसकी माँ पुत्र ऐलेय को लेकर दुर्गम स्थान में चली गयी थी । हपु० १७.१-१७ (३) पातकीखण्ड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र में स्थित विजयार्थं पर्यंत की दक्षिणश्रेणी के नित्यालोक नगर के राजा चित्रचूल को रानी । चित्रांगद के सिवाय इसके युगल रूप में गरुडकान्त, सेनकान्त, गरुडध्वज, गरुडवाहन, मणिचूल तथा हिमचूल नामक छः पुत्र और हुए थे । इसके सातों पुत्र भूतानन्द जिनराज के समीप दीक्षित हो गये थे । हपु० ३३.१३१-१३३, १३९ मनोह्लाब – एक नगर । इसे राजा अमररक्ष के पुत्रों ने बसाया था । यहाँ राक्षस रहते थे । यह नगर लंका में था । देव भी यहाँ उपद्रव नहीं कर सकते थे । वानरद्वीप इस नगर की वायव्य दिशा में था । पपु० ५.३७१-१७२, ६.६६-६८, ७१ मन्ता - सौधर्मेन्द्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५८ मन्त्रकल्प - गर्भाधान आदि क्रियाओं के आरम्भ में वेदी के मध्य भाग में जिनेन्द्र देव की प्रतिमा और तीन छत्र, तीन चक्र तथा तीन अग्नियाँ विराजमान करके यथाविधि उनकी पूजा करना । इसमें जल से भूमि शुद्ध करते समय "नीरजसे नमः ", विघ्नों की शान्ति के लिए "दर्पमथनाय नमः", गन्ध समर्पण करने के लिए "शीलगन्धाय नमः", पुष्प अर्पण करते समय " विमलाय नमः", अक्षत अर्पण करते समय " अक्षताय नमः", धूप अर्पण करते समय "श्रुतधूपाय नमः”, दीपदान के समय " ज्ञानोद्योताय नमः” और नैवेद्य चढ़ाते समय "परमसिद्धाय नमः" मन्त्र बोले जाते हैं । मपु० ४०.३ ९ मन्त्रकृत् - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० २५.१२९ मन्त्रमूर्ति - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२९ मन्त्रवित सौपर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१२९ मन्त्रशक्ति - शत्रु को जीतने के लिए आवश्यक तीन शक्तियों मन्त्र, उत्साह और प्रभु में प्रथम शक्ति । इसके द्वारा सहायकों और साधनों के उपाय, देश-विभाग, काल-विभाग और बाधक कारणों का प्रतिकार इन पाँच अंगों का निर्णय किया जाता है । मपु० ६८.६०, हपु० ८.२०१ मन्त्री - (१) राजा का उसके कार्यों में मन्त्रणा दाता । इसके दो कार्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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